राष्ट्रीय
20-Nov-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। दुनिया में मौत की सजा का इस्तेमाल लगातार कम हो रहा है, लेकिन कुछ देशों में यह अब भी कानून का हिस्सा है और कई मामलों में राजनीतिक परिस्थितियों से जुड़ी हुई दिखाई देती है। एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2024 में दुनिया के सिर्फ 15 देशों में 1,518 फांसियों को अंजाम दिया गया, जो 2015 के बाद सबसे अधिक हैं फिर भी कुल देशों में से करीब 70 प्रतिशत ने मृत्युदंड को पूरी तरह समाप्त किया है। इसके बावजूद, कई बार नेताओं को दी गई ऐसी सजाएं राजनीतिक प्रतिशोध और सत्ता संघर्ष की पृष्ठभूमि से जुड़ी मानी जाती हैं। शेख हसीना का मामला भी इन्हीं विवादों के केंद्र में है। इतिहास में कई नेता हुए हैं जिन्हें अपने शासनकाल के दमन, भ्रष्टाचार या हिंसा के कारण मौत की सजा भुगतनी पड़ी। सद्दाम हुसैन (इराक): तानाशाही का हिंसक अंत इराक पर 1979 से 2003 तक शासन करने वाले सद्दाम हुसैन को उनकी क्रूर नीतियों और कुर्द समुदाय पर रासायनिक हमलों के लिए मशहूर रहा है। 2003 में अमेरिकी हमले के बाद वे गिरफ्तार हुए और 1982 के दजैल नरसंहार केस में 2006 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 30 दिसंबर 2006 को उनकी फांसी का वीडियो लीक होने के बाद दुनिया भर में बहस छिड़ गई। मुअम्मर गद्दाफी (लीबिया): विद्रोह की आग में अंत 1969 से 2011 तक लीबिया के निरंकुश शासक रहे गद्दाफी ने तेल से मिली संपत्ति का इस्तेमाल सत्ता मजबूत करने में किया, लेकिन विरोधियों पर दमन किया। 2011 के अरब स्प्रिंग आंदोलन में उनका शासन ढह गया। सिरते में पकड़े जाने के बाद विद्रोहियों ने बिना मुकदमे के उनकी हत्या कर दी। भले ही यह कानूनी फांसी नहीं थी, लेकिन वास्तविक रूप से यह मौत की सजा ही साबित हुई। चार्ल्स टेलर (लायबेरिया): ब्लड डायमंड्स का काला इतिहास लायबेरिया के पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स टेलर को 2012 में स्कॉटलैंड की विशेष अदालत ने युद्ध अपराधों का दोषी माना। लाखों लोगों की हत्या और ब्लड डायमंड्स की तस्करी से जुड़े आरोपों के कारण उन्हें 50 साल की सजा मिली। यह भले ही मृत्युदंड नहीं था, लेकिन आजीवन कैद जैसा ही माना गया है। परवेज मुशर्रफ (पाकिस्तान): गैर-हाजिर में सुनाई गई सजा पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ को 2019 में राजद्रोह मामले में फांसी की सजा सुनाई गई, वह भी उनकी गैर-हाजिरी में। वे तब दुबई में थे, इसलिए सजा लागू नहीं हो सकी। 2023 में उनका निधन हो गया। हसीना के मामले से यह समानता खास है दोनों नेताओं को देश से बाहर रहते हुए सजा सुनाई गई। जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान, 1979) सैन्य शासन के दौर में हत्या की साजिश के आरोप में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को 1979 में रावलपिंडी में फांसी दी गई। वर्तमान में भी इस पाकिस्तान के इतिहास की सबसे विवादित सजाओं में गिना जाता है। निकोलस चाउशेस्कु (रोमानिया): एक साम्यवादी साम्राज्य का आखिरी अध्याय 1965 से 1989 तक रोमानिया पर शासन करने वाले चाउशेस्कु ने देश को गरीबी में धकेल दिया, जबकि खुद आलीशान जीवन जीते रहे। 1989 की क्रांति के दौरान सेना उनके खिलाफ हो गई। त्वरित मुकदमे में उन्हें भ्रष्टाचार और जनता पर अत्याचार जैसे आरोपों में मौत की सजा सुनाई गई और 25 दिसंबर 1989 को उन्हें गोली मार दी गई। यह दुनिया का पहला टेलीविजन पर दिखाया गया फांसी ट्रायल था। विदकुन क्विस्लिंग (नॉर्वे): इतिहास में दर्ज एक गद्दार नाजी जर्मनी के साथ मिलकर नॉर्वे पर कब्जा करवाने वाले क्विस्लिंग को 1945 में राजद्रोह के मामले में फांसी दी गई। उनका नाम आज “क्विस्लिंग” शब्द का पर्याय बन गया है, जिसका अर्थ है देशद्रोही। आशीष/ईएमएस 20 नवंबर 2025