राष्ट्रीय
20-Nov-2025
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पटना,(ईएमएस)। कहते हैं कि दो लोगों के झगड़े में तीसरा फायदा उठा लेता है। बिहार में तीसरा कोई और नहीं बल्कि प्रशांत किशोर उर्फ पीके हैं। पीके लालू परिवार के झगड़े का पूरा पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने इसकी शुरु महिला हेल्पलाइन से शुरु कर दी है। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद जहां महागठबंधन के नेता सार्वजनिक मंचों से लगभग गायब हैं, वहीं जन सुराज प्रमुख प्रशांत किशोर (पीके) खुलकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। चुनावी हार के बावजूद पीके ने न सिर्फ लड़ाई जारी रखने का ऐलान किया, बल्कि खुद को विपक्ष की मुख्य धुरी की तरह स्थापित भी किया। पीके ने महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर- 9121691216 जारी किया और कहा कि जन सुराज के कार्यकर्ता हर महिला की मदद करेंगे ताकि वे सरकारी दफ्तरों में जाकर अपने हक की मांग कर सकें। पीके ने कहा कि हमने भले गलती की हों, लेकिन हमने विभाजनकारी राजनीति या गरीबों का वोट खरीदने जैसा अपराध नहीं किया। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें चुनाव से पहले ही मुश्किल नतीजों का अंदाजा था- यही कारण था जब उन्होंने कहा था कि जन सुराज चुनाव के बाद या तो अर्श पर होगी या फर्श पर। 20 नवंबर को पीके वहीं लौटेंगे जहां से उन्होंने 2 अक्टूबर 2022 को जन सुराज आंदोलन की शुरुआत की थी- पश्चिम चंपारण। शपथ ग्रहण के दिन उनका मौन उपवास उन्हें गांधीवादी संघर्ष की राह पर रखने का प्रतीक माना जा रहा है। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि जन सुराज का प्रदर्शन उम्मीद से काफी कमजोर रहा। करीब 3.34प्रतिशत वोट शेयर मिलने के बावजूद पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और 238 में से 236 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। फिर भी एक महत्वपूर्ण तथ्य यह रहा कि 129 सीटों पर जन सुराज तीसरे स्थान पर और एक सीट पर दूसरे स्थान पर रही। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत किशोर ने कहा कि अगर नीतीश कुमार की नई एनडीए सरकार अपने चुनावी वादे के अनुसार 1.5 करोड़ महिलाओं को 2-2 लाख रुपये दे देती है, तो वे- राजनीति छोड़ देंगे। यहां तक कि बिहार छोड़ देंगे। उन्होंने एनडीए सरकार को 6 महीने की समय सीमा दी है और दावा किया कि इस वादे को चुनाव प्रचार में सरकारी मशीनरी की मदद से बढ़ा-चढ़ाकर बेचा गया। चुनाव परिणाम आने के बाद से आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी दोनों ही मंच से दूर हैं। 14 नवंबर के बाद से न तो उन्होंने कार्यकर्ताओं से मुलाकात की, न ही हार की जिम्मेदारी पर सार्वजनिक बयान दिया। तेजस्वी यादव पारिवारिक विवादों में घिरे बताए जा रहे हैं, जबकि राहुल गांधी ने केवल एक्स पर एक पोस्ट लिखकर चुनाव को चौंकाने वाला और अनुचित करार दिया था। इन परिस्थितियों में पीके का सक्रिय रुख उन्हें स्वाभाविक रूप से सबसे प्रमुख विपक्षी नेता की भूमिका में ला खड़ा करता है। चुनावी हार के बाद भी पीके की रणनीति, सक्रियता और जनता से जुड़े मुद्दे उठाने की शैली ने उन्हें बिहार में सबसे दिखाई देने वाला विपक्षी नेता बना दिया है। उन्होंने जिस तरह महिलाओं के मुद्दों को सीधे उठाया और एनडीए सरकार को खुली चुनौती दी, उससे यह साफ है कि वे विपक्ष की खाली पड़ी जगह को भरने के लिए पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं। 20 नवंबर को जहां पटना के गांधी मैदान में नीतीश कुमार मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण होगा, वहीं प्रशांत किशोर पश्चिम चंपारण के भीतिहरवा स्थित गांधी आश्रम में 24 घंटे का उपवास और मौन रखेंगे। यह वही स्थान है जहां से 1917 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी। पीके ने इस जगह को चुनकर यह संदेश दिया है कि उनकी राजनीति संघर्ष और आत्मशुद्धि से प्रेरित है। वीरेंद्र/ईएमएस/20नवंबर2025