बिहार की राजनीति में एक बार फिर इतिहास दोहराया गया है। नीतीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर यह साबित कर दिया कि राज्य की राजनीति में उनकी पकड़, उनका अनुभव और उनका संतुलन आज भी उतना ही मजबूत है जितना दो दशक पहले हुआ करता था। शपथ ग्रहण समारोह में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गमछा हिलाकर उत्साह जताया उससे उपस्थित भावविभोर हो गए।इस बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और भाजपा के हजारों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। उसने न केवल बिहार की राजनीति बल्कि आने वाले वर्षों के राष्ट्रीय चुनावी समीकरणों को भी एक संदेश दिया है।इस समारोह में डिप्टी सीएम के रूप में सम्राट चौधरी और विजय मिश्रा ने शपथ ली। कुल मिलाकर 26 मंत्रियों की टीम बनी जिसमें 14 भाजपा कोटे से, 8 जदयू से, लोजपा, हम और कुशवाहा की पार्टी से एक-एक मंत्री शामिल किए गए। खास बात यह रही कि मंत्रिमंडल में एक मुस्लिम मंत्री को भी स्थान दिया गया, जिसे संतुलन और सामाजिक प्रतिनिधित्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हरियाणा, राजस्थान, मेघालय,यूपी,गुजरात, नागालैंड, ओडिशा, दिल्ली सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी ने इस आयोजन को राष्ट्रीय स्तर पर विशेष महत्व दिया। स्पष्ट है कि भाजपा-जदयू गठबंधन न केवल बिहार को लेकर, बल्कि आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीतिक प्रबंधन के लिए भी नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। नई सरकार के गठन के बाद बिहार के सामने बड़ी चुनौतियाँ भी है। आर्थिक संतुलन जरूरी है। आय और खर्च को संतुलित करने की कठिन चुनौती भी मुह फाडे खड़ी है। बिहार लंबे समय से आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में गिना जाता रहा है। राज्य का राजस्व संग्रह कम, केंद्र पर निर्भरता अधिक और कल्याणकारी योजनाओं पर भारी खर्च इसकी आर्थिक संरचना को अस्थिर बनाता है। नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।जिसमे आय के नए स्रोत बनाना,निवेश आकर्षित करनाऔरऔद्योगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना महत्वपूर्ण होगा। बिहार की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि यहाँ उद्योग-धंधों की कमी के कारण राजस्व का मजबूत आधार नहीं बन पाया। नई सरकार को डोमेस्टिक और ग्लोबल निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए प्रशासनिक सुधार, भूमि सुधार और तेज मंजूरी प्रणाली बनानी होगी। शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार में भी सरकार को ध्यान देना होगा। बिहार की युवा आबादी बड़ी है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था की कमियाँ और स्वास्थ्य अधोसंरचना की खामियाँ अब भी चुनौती बनी हुई हैं। नीतीश कुमार की सरकार ने वर्षो में कई सुधार किए, लेकिन अपेक्षाओं के हिसाब से अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। नई सरकार को शिक्षकों की कमी दूर करनी होगी।स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं बेहतर करनी होंगी।जबकि विश्वविद्यालयों में शोध और तकनीकी शिक्षा पर जोर देना होगा।जिला अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या और सुविधाओं को बढ़ाना होगा। कानून-व्यवस्था हमेशा से बिहार के लिए एक निर्णायक राजनीतिक मुद्दा रहा है। हाल के वर्षों में सुधार के दावे हुए, लेकिन अब भी अपराध, भूमि विवाद, अवैध शराब कारोबार और सामुदायिक तनाव की घटनाएं सामने आती रहती हैं। नीतीश-भाजपा सरकार के सामने लक्ष्य बड़ा है। पुलिस आधुनिकीकरण, अपराध नियंत्रण में तकनीकी उपयोगऔर तेज न्याय प्रणाली के साथ प्रशासनिक जवाबदेही बढ़ानी होगी।बिहार में सड़कों, पुलों और ग्रामीण कनेक्टिविटी में पिछले दो दशकों में काफी काम हुआ है, लेकिन औद्योगिक गलियारों, बड़े हाईवे नेटवर्क, बिजली वितरण और जल प्रबंधन की दिशा में अभी भी बड़े निवेश की जरूरत है। नई सरकार को केंद्र के साथ मिलकर इन क्षेत्रों में तेज़ी लानी होगी, ताकि रोजगार और औद्योगिक विकास दोनों को गति मिल सके। नीतीश की वापसी से बिहार को क्या राजनीतिक लाभ?नीतीश कुमार का राजनीतिक अनुभव और प्रशासनिक क्षमता बिहार के लिए एक संतुलनकारी भूमिका निभाती रही है। भाजपा और जदयू का तालमेल फिर मजबूत हुआ है, जो राज्य में स्थिरता का संकेत देता है।निर्णय लेने की गति बढ़ाता है औरविकास योजनाओं की निरंतरता बनाए रखता है।अब केंद्र और राज्य की एक जैसी विचारधारा वाली सरकार के कारण केंद्र से मिलने वाली सहायता बढ़ेगी। बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को तेजी मिलेगी।निवेशकों का भरोसा और मजबूत होगा। यह तालमेल आने वाले वर्षों में बिहार को आर्थिक मजबूती की दिशा में आगे ले जा सकता है। *बिहार के चुनाव का 2026 के पाँच राज्यों पर असर* बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन की बड़ी जीत ने राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के लिए एक मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक बढ़त पैदा की है। 2026 में होने वाले पाँच प्रमुख राज्यों असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और एक केंद्रशासित प्रदेश के चुनाव पर इसके स्पष्ट प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। असम में भाजपा की स्थिति और मजबूत होगी।बिहार की जीत से पूर्वोत्तर में भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ेगा। असम में भाजपा पहले से मजबूत है, लेकिन गठबंधन समीकरण और बेहतर अभियान के लिए इसके मनोवैज्ञानिक फायदे होंगे। पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए प्रेरक परिणामदेखने को मिल सकते है।पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण राज्य है। बिहार की जीत से भाजपा को यह संदेश मिलेगा कि पूर्वी भारत में जनाधार तेजी से बढ़ रहा है। इससे बंगाल में कैडर सक्रिय होंगे।हिंदुत्व व विकास दोनों मुद्दों पर नई रणनीति बनेगी।नेतृत्व को मजबूती मिलेगी। तमिलनाडु और केरल में नए अवसर दिखाई देंगे।भले ही दक्षिण भारत भाजपा के लिए कठिन क्षेत्र रहा है, लेकिन बिहार जैसी जीतें पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश भरती हैं। इससे दक्षिण भारत में संगठन का विस्तार होगा।स्थानीय सहयोगियों की खोजऔर नए मुद्दों के साथ चुनावी रणनीति सुगठित हो सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का मनोबल कमजोर हुआ है।जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिलेगा।बिहार में विपक्ष की हार का देशव्यापी प्रभाव होगा। इससे विपक्ष की एकजुटता कमजोर होगी।क्षेत्रीय दलों का आत्मविश्वास डगमगाएगा।भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर और सशक्त स्थिति में आएगी। 2026 के चुनावों में भाजपा का जनाधार बढ़ने की संभावनाहै। बिहार की जीत भाजपा को एक बड़ी कथा देती है।स्थिरता, सुशासन, विकास और अनुभव का गठजोड़।यह कथा 2026 के चुनावों में भाजपा के लिए उपयोगी होगी। साथ ही मोदी-शाह नेतृत्व का अभियान केंद्र-राज्य सहयोग मॉडलऔर नई आर्थिक और सामाजिक योजनाएँ फलीभूत होगी। इन राज्यों में भाजपा के जनाधार को विस्तार दे सकती हैं। उम्मीदें, चुनौतियाँ और भविष्य का बिहार पर नजरें गाढ़े हुए है।नीतीश कुमार का दसवीं बार मुख्यमंत्री बनना केवल किसी एक नेता की उपलब्धि नहीं है, बल्कि बिहार की राजनीतिक परिपक्वता का प्रतीक भी है। भाजपा-जदयू गठबंधन की यह जीत बिहार के लिए विकास, स्थिर राजनीतिक वातावरण और मजबूत प्रशासन का संकेत देती है। लेकिन इसके साथ ही आर्थिक संतुलन, रोजगार, शिक्षा सुधार, स्वास्थ्य क्षेत्र और कानून-व्यवस्था जैसी बड़ी चुनौतियों को भी गंभीरता से सुलझाना होगा।बिहार का यह चुनाव परिणाम अब केवल राज्य की राजनीति तक सीमित नहीं है। यह 2026 के बड़े चुनावों के लिए भाजपा के लिए ऊर्जा का स्रोत बनेगा और कई राज्यों में नए समीकरणों को जन्म देगा। बिहार की नई सरकार के सामने अब अवसर भी बड़ा है और जिम्मेदारी भी। अगर सरकार अर्थव्यवस्था, रोजगार, निवेश और सुशासन पर तेजी से काम करती है, तो आने वाले वर्षों में बिहार न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि विकास के मामले में भी देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो सकता है। विकास पर ध्यान देना होगा। (वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार स्तम्भकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 21 नवम्बर/2025