वैश्विक स्तरपर दुनियाँ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का प्रमुख मंच जी-20 इस वर्ष एक ऐसे दौर में बैठक कर रहा है,जब वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पहले से कहीं अधिक जटिल, बहुस्तरीय और अनिश्चितता से घिरा हुआ है। 21 से 23 नवंबर 2025 तक दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित होने वाला यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है,जब जलवायु परिवर्तन,ऊर्जा संक्रमण,वैश्विक मंदी का खतरा, तकनीकी प्रभुत्व की जंग और भू-राजनीतिक अविश्वास जैसे मुद्दे विश्व व्यवस्था को पूर्णतः पुनर्परिभाषित कर रहे हैं। भारत की ओर से माननीय पीएम की उपस्थिति न सिर्फ औपचारिकता है, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा और एक उभरती हुई निर्णायक शक्ति के रूप में उसकी अनिवार्य भूमिका को रेखांकित करती है।अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इस संवेदनशील मोड़ पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सम्मेलन का बहिष्कार करना वैश्विक शक्ति संरचना और सामूहिक सहयोग की भावना पर गहरा प्रभाव डालता है।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं क़ि वस्तुतः 2025 का यह सम्मेलन केवल जी-20 एजेंडा का नहीं, बल्कि विश्व प्रणाली में हो रहे बड़े परिवर्तन का प्रतीक बन चुका है और इस परिवर्तन के केंद्र में भारत अभूतपूर्व रूप से उभर रहा है। बहरहाल, जोहानिसबर्ग का यह शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के लिए कूटनीतिक कसौटी है उसे अमेरिकी अनुपस्थिति की चुनौती के बीच सम्मेलन को सफलता पूर्वक संपन्न करना है। वहीं भारत के लिए यह अवसर है अपने नेतृत्व की निरंतरता दिखाने का। जब ट्रंप वैश्विक सहयोग से दूरी बना रहे हैं, तब मोदी उसी सहयोग को एक नई दिशा देने जा रहे हैं।यही विरोधाभास आज के वैश्विक परिदृश्य का सार भी है। इसलिए जोहानिसबर्ग का सम्मेलन केवल जी-20 का आयोजन नहीं, बल्कि विश्व व्यवस्था के पुनर्संतुलन का प्रतीक है और इस पुनर्संतुलन में भारत की भूमिका न केवल केंद्रीय है,बल्कि प्रेरक भी। साथियों बात अगर हम जी-20 सम्मेलन में अमेरिका की अनुपस्थिति और वैश्विक बहुपक्षवाद की चुनौती को समझने की करें तो, जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन का सबसे विवादास्पद और महत्वपूर्ण पहलू है, अमेरिका का स्पष्ट बहिष्कार। ट्रंप प्रशासन द्वारा दक्षिण अफ्रीका पर लगाए गए आरोपों और अमेरिका फर्स्ट नीति को आगे बढ़ाते हुए इस मंच से दूरी बनाना उस व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है, जिसमें चरणबद्ध ढंग से अमेरिका अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, वैश्विक समूहों और बहुपक्षीय समझौतों से खुद को अलग कर रहा है।ट्रंप की यह नीति केवल कूटनीति नहीं, बल्कि एक विचारधारा है जो वैश्विक सहयोग को अमेरिका के राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध मानती है। इसके परिणामस्वरूप,जी-20 की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठ रहे हैं (1) वैश्विक आर्थिक सहयोग कमजोर हो रहा है (2) वैश्विक दक्षिण के उभार का मार्ग और स्पष्ट हो रहा है (3) अमेरिका की नैतिक और नेतृत्वकारी भूमिका कमजोर पड़ रही है,सबसे गंभीर आरोप यह है कि अमेरिका अन्य सदस्य देशों पर दबाव डाल रहा है कि वे जी-20 घोषणा- पत्र पर हस्ताक्षर न करें। यदि ऐसा होता है, तो यह जी- 20 की सामूहिकता विश्वास और कूटनीतिक शक्ति को गहराई से कमजोर कर देगा। इससे 2026 में अमेरिका की जी-20 अध्यक्षता भी सवालों के घेरे में आ सकती है, क्योंकि एक नेतृत्वकर्ता की नैतिक स्थिति उसी समय मजबूत होती है जब वह सहयोग की संस्कृति में विश्वास रखता हो। साथियों बात अगर हम 20 वें जी20 सम्मेलन के मेजबान दक्षिण अफ्रीका के सामने कूटनीतिक परीक्षा, नेतृत्व का प्रश्न खड़ा हुआ है इसको समझने की करें तो, दक्षिण अफ्रीका के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती है अमेरिका की अनुपस्थिति के बावजूद सम्मेलन को सफल बनाना, और जी-20 के भीतर नेतृत्व की निरंतरता को प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाना। परंपरा के अनुसार, सम्मेलन के समापन पर जी- 20 की अध्यक्षता का बैटन अगले मेज़बान देश को सौंपा जाता है।लेकिन जब अमेरिका स्वयं बैठक में मौजूद ही नहीं, तो यह प्रश्न गंभीर है कि: (1) दक्षिण अफ्रीका अमेरिकी प्रतिनिधि को बैटन सौंपे या (2) किसी वैकल्पिक व्यवस्था के तहत किसी विशेष देश को यह जिम्मेदारी दे, यह स्थिति जी-20 के इतिहास में लगभग अभूतपूर्व है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि वैश्विक शक्ति-संतुलन अब पूर्ववत नहीं रहा, पश्चिमी दुनिया की केंद्रीयता कमजोर हो रही है और वैश्विक दक्षिण की भूमिका निर्णायक बनती जा रही है।दक्षिण अफ्रीका इस सम्मेलन के माध्यम से दुनियाँ को यह संदेश देना चाहता है कि एक विकसित न होने वाला देश भी वैश्विक आर्थिक और कूटनीतिक विमर्शों को नेतृत्व दे सकता है।अमेरिकी दबाव, राजनीतिक ध्रुवीकरण और आंतरिक आर्थिक चुनौतियों के बावजूद इस सम्मेलन को सफल बनाना उसके लिए एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि होगी। साथियों बात अगर हम भारत के लिए यह अवसर वैश्विक नेतृत्व का स्वर्णिम क्षण होगा इसको समझने की करें तो, अमेरिका की अनुपस्थिति ने भारत के लिए एक अप्रत्याशित लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर तैयार कर दिया है।भारत पहले ही 2023 में जी- 20 की मेजबानी करके अपनी कूटनीतिक क्षमता, संवाद कौशल और वैश्विक नेतृत्व की शक्ति का प्रदर्शन कर चुका है। एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य का मंत्र दुनिया में नई सोच और नए सहयोग का आधार बन चुका है।2025 के जोहान्सबर्ग सम्मेलन में भारत इन कारणों से केंद्रीय भूमिका निभा सकता है (1) वैश्विक दक्षिण का स्वाभाविक नेता (2) अमेरिका और वैश्विक दक्षिण के बीच पुल का कार्य (3) वैश्विक ऊर्जा और तकनीकी बहसों में निर्णायक आवाज (4) जलवायु न्याय और विकासशील देशों की मांगों को मंच प्रदान करना (5) वैश्विक व्यापार में स्थिरता का प्रस्ताव,भारत का नेतृत्व आज इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि वह शक्ति संतुलन की राजनीति नहीं, बल्कि सहयोग और समावेशन की राजनीति को प्राथमिकता देता है।जब ट्रंप वैश्विक संस्थाओं से दूरी बना रहे हैं, तब भारत का आगे आना दुनिया को एक नए नेतृत्व मॉडल से परिचित कराता है,जहां शक्ति संवाद से आती है, न कि वर्चस्व से। साथियों बात अगर हम वैश्विक परिप्रेक्ष्य नई विश्व व्यवस्था का पुनर्संतुलन इसको समझने की करें तो,आज का वैश्विक परिदृश्य ऐसे मोड़ पर है,जहां (1) अमेरिका और यूरोप के भीतर राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा है (2) रूस- यूक्रेन युद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को कमजोर कर रहा है (3) चीन और अमेरिका की प्रतिद्वंद्विता वैश्विक अर्थव्यवस्था को दो ध्रुवों में विभाजित कर रही है (4) जलवायु संकट दुनिया को नई आपदाओं की ओर धकेल रहा है (5) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नई भू-आर्थिक लड़ाई का केंद्र बन चुका है,ऐसे में जी-20 की भूमिका केवल आर्थिक मंच तक सीमित नहीं रही।यह आज वैश्विक प्रशासन का वैकल्पिक ढांचा बन चुका है।और ठीक इसी समय भारत की उपस्थिति, जिम्मेदारी और दृष्टिकोण वैश्विक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।जोहान्सबर्ग का सम्मेलन वास्तव में विश्वव्यवस्था का पुनर्संतुलन है।ऐसा पुनर्संतुलन जिसमें,अमेरिका केंद्र में नहीं,बहुध्रुवीय नेतृत्व उभर रहा है,एशिया-अफ्रीका-लैटिन अमेरिका की आवाज़ मजबूत हो रही हैवैश्विक गणना में भारत की भूमिका सर्वाधिक प्रभावी है साथियों बात अगर हम भारतीय पीएम का एजेंडा, तीन सत्रों क़े भारत-केन्द्रित दृष्टिकोण को समझने की करें तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि पीएम जोहान्सबर्ग में तीनों प्रमुख सत्रों को संबोधित करेंगे, जिनके विषय न सिर्फ वैश्विक चिंताओं से जुड़े हैं बल्कि भारत की नीतिगत प्राथमिकताओं का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। (अ) समावेशी और सतत आर्थिक वृद्धि-भारत लंबे समय से यह कहता रहा है कि विकास तभी सार्थक है जब वह, समावेशी हो,सतत हो,गरीब देशों के लिए न्यायपूर्ण हो,डिजिटल तकनीक का दुरुपयोग न हो।दुनियाँ आज यही सुनना चाहती है कि अगली सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था कैसी होगी और उसमें भारत जैसे देशों का क्या योगदान होगा। (ब) आपदा जोखिम न्यूनीकरण और जलवायु परिवर्तन-जलवायु परिवर्तन अब ‘भविष्य का संकट’ नहीं, बल्कि वर्तमान की आपदा है।भारत ने क्लाइमेट जस्टिस और लाइफ लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट के माध्यम से एक वास्तविक समाधान दिया है।यह मॉडल विकसित देशों की अत्यधिक खपत आधारित आर्थिक प्रणाली को चुनौती देता है। (क़) न्यायपूर्ण और संतुलित भविष्य-यह वह विषय है जो वैश्विक दक्षिण की दशकों पुरानी मांग का सार है,दुनियाँ में न्यायपूर्ण संसाधन वितरण, डिजिटल समानता, तकनीकी लोकतंत्रीकरण और वैश्विक संस्थाओं में न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व। भारतीय पीएम का एजेंडा जी-20 के भविष्य को न केवल नई संरचना देता है बल्कि यह भी बताता है कि 21वीं सदी की वैश्विक सोच भारत से होकर गुजरे बिना अधूरी है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि जोहान्सबर्ग 2025,विश्व नेतृत्व की नई परिभाषा-जोहान्सबर्ग जी-20 शिखर सम्मेलन केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि दुनिया के बदलते चेहरे का प्रतीक है।अमेरिका की अनुपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक नेतृत्व अब किसी एक महाशक्ति के हाथ में नहीं, बल्कि कई उभरती शक्तियों के बीच साझा हो रहा है।दक्षिण अफ्रीका के सामने यह अवसर है कि वह वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को मजबूती दे और अपनी कूटनीतिक परिपक्वता दिखाए।भारत के लिए यह सम्मेलन एक ऐसी जिम्मेदारी है, जो उसे वैश्विक राजनीति के केंद्र में खड़ा करती है।ट्रंप जब वैश्विक सहयोग से दूरी बना रहे हैं, तब मोदी वैश्विक सहयोग को नए स्वरूप में आकार दे रहे हैं।यही विरोधाभास आज की विश्व व्यवस्था का सबसे बड़ा सत्य है।जोहान्सबर्ग 2025 एक निर्णायक क्षण है,जहां नया नेतृत्व उभर रहा है,नई विश्व व्यवस्था आकार ले रही है,और भारत विश्व राजनीति के केंद्र में अपनी जगह सुनिश्चित कर रहा है। (संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 21 नवम्बर/2025