अंतर्राष्ट्रीय
21-Nov-2025
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-60 लाख यहूदियों के कत्ल का था आरोपी, नाम बदल कर अर्जेंटीना में रह रहा था यरुशलम,(ईएमएस)। खूंखार तानाशाह एडोल्फ हिटलर की तरह ही नाजी आर्मी में एक और हैवान था, जिसे दुनिया की सबसे खुफिया एजेंसी मोसाद ने खौफनाक सजा दी थी। इस शख्स को पकड़ना इतना मुश्किल था कि वह तीन बार कैद से भाग चुका था। इस शख्स के माथे पर 60 लाख यहूदियों के कत्ल का इल्जाम था। ये हैवान था लेफ्टिनेंट कर्नल एडोल्फ आइशमन, नाजी जर्मनी के सबसे कुख्यात अपराधियों में से एक। इसने यहूदियों के नरसंहार को ‘होलोकॉस्ट’ का नाम दिया था। दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी के हारने के बाद आइशमन तीन बार पकड़ा गया, लेकिन वह हर बार भागने में सफल रहा। कई अन्य प्रमुख नाजियों की तरह, आइशमन भी ‘रैटलाइन’ नाम के रास्ते से यूरोप से निकल भागा था। 1950 में वो एक फर्जी नाम ‘रिकार्डो क्लेमेंट’ से अर्जेंटीना में रहने लगा और एक नॉर्मल जिंदगी जीने लगा। यहूदियों के हत्यारे को पकड़ने के लिए ‘ऑपरेशन फिनाले’ लॉन्च किया गया। इस ऑपरेशन के तहत दुनिया के कोने-कोने में एजेंट्स फैला दिए गए। मोसाद प्रमुख ने रफी ऐतान को पता चला कि आइशमन अर्जेंटीना में बसा है और हुकुम था उसे जिंदा पकड़ने का। बताया जाता है कि आइशमन के ठिकाने की पुष्टि मुख्य रूप से जर्मन-यहूदी एजेंट फ्रिट्ज बाउर और एक अर्जेंटीनाई-यहूदी व्यक्ति लोथर हरमन ने की थी। हरमन की बेटी ने ये जानकारी आइशमन के बेटे को फंसाकर निकाली थी। मोसाद की टीम, ब्यूनस आयर्स पहुंची और एक घर किराए पर लेकर रहने लगी। सैन फर्नांडो में आइशमन अपने घर के पास ही पकड़ा गया। वह 11 मई, 1960 की शाम को जब बस से उतर रहा था तब मोसाद ने उसका अपरहण कर लिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इजराइल ने अर्जेंटीना की स्वतंत्रता की 150वीं वर्षगांठ समारोह में हिस्सा लेने के बहाने एक इजराइली विमान ब्यूनस आयर्स भेजा था। आइशमन को ड्रग्स देकर बेहोश किया गया और इजराइली एयरलाइन कर्मचारियों की वर्दी पहनाकर फर्जी दस्तावेज के साथ विमान में सवार कराया गया। आइशमन पर 1961 में यरुशलेम में मुकदमा चलाया गया, जो होलोकॉस्ट की भयावहता को दुनिया के सामने लाने के लिए मील का पत्थर बन गया। इस दौरान आइशमन पर मुख्य रूप से मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध, और यहूदी लोगों के खिलाफ अपराध के 15 आरोप लगाए गए थे। दिसंबर 1961 में उन्हें सभी 15 मामलों में दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई। फिर 31 मई, 1962 की मध्यरात्रि में फांसी दे दी गई। सिराज/ईएमएस 21 नवंबर 2025