नई दिल्ली (ईएमएस)। भारतीय सेना का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि वह भारत की आत्म-प्रतिबद्धता, आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की उद्घोषणा थी। हमने दुनिया को दिखाया कि भारत लड़ाई नहीं चाहता, लेकिन यदि मजबूर किया गया तो भारत लड़ाई से भागता भी नहीं है। यह बात रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को कही। उन्होंने कहा कि अगर शांति को जीवित रखना है तो उसके भीतर शक्ति का ताप अनिवार्य है। यदि निर्दोषों की रक्षा करनी है तो बलिदान देने का साहस भी आवश्यक है। जो लोग हमारी सहिष्णुता को हमारी कमजोरी समझ बैठे थे, उन्हें ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने ऐसा जवाब दिया जिसे वे आज तक नहीं भूल पाए हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सोमवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता सम्मेलन में बोल रहे थे। यहां उन्होंने कहा कि भारत गीता का देश है, जहां करुणा भी है और युद्धभूमि में धर्म की रक्षा की प्रेरणा भी है। गीता हमें यह भी सिखाती है कि शक्ति और शांति एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। आज भारत विश्व में शांति का संदेश देता है। पूरी दुनिया भारत को शांति का प्रतीक मानती है, परंतु वास्तविकता यह है कि शांति तभी टिकती है, जब उसके पीछे आत्मविश्वास और बल का सहारा हो। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमने इस ज्ञान को हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखा, पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाया और आज यह दुनिया के लिए प्रेरणा बन चुका है। अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स अपने साथ गीता लेकर अंतरिक्ष में जाती हैं। यह बताता है कि इस ग्रंथ का प्रभाव कितना व्यापक है। रक्षा मंत्री ने कहा, “दुनिया के तमाम विचारक और बड़े लोग जैसे आइंस्टीन, थोरो, टी.एस. इलियट, और एल्डस हक्सल इन सबको गीता पढ़कर लगा कि यह मानव विकास का यूनिवर्सल मैनुअल है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी पांडवों को यही समझाया था कि युद्ध बदले की भावना या महत्वाकांक्षा के लिए नहीं, बल्कि धर्मपूर्ण शासन की स्थापना के लिए भी लड़ा जा सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमने भगवान श्रीकृष्ण के संदेश का ही पालन किया। इस ऑपरेशन ने विश्व को संदेश दिया कि भारत आतंकवाद के विरुद्ध न तो मौन रहेगा और न ही कमजोर पड़ेगा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में समझाया था कि धर्म की रक्षा केवल प्रवचन से नहीं होती, उसकी रक्षा कर्म से होती है और ऑपरेशन सिंदूर वही ‘धर्मयुक्त कर्म’ था। सुबोध/२४-११-२०२५