नई दिल्ली। (ईएमएस)। केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अत्यंत कम समय में विशेष संशोधन अभियान (एसआईआर) कराए जाने को लेकर अब राजनीतिक हलकों में लोकसभा के समयपूर्व चुनाव की अटकलें तेज हो गई हैं। जिन राज्यों में आयोग यह अभियान चला रहा है, उनमें अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, पुदुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। वैसे आगामी वर्ष 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन 12 राज्यों में एसआईआर प्रक्रिया की जा रही है। इस तेजी ने न सिर्फ राज्य सरकारों बल्कि बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर्स) में भी चिंता बढ़ा दी है। बीएलओ का कहना है कि इतने कम समय में मतदाता सूची का संशोधन कराना संभव नहीं है, क्योंकि आयोग ने इसके लिए 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाया है, जिसे अपडेट करने में व्यापक समय और संसाधन की जरूरत होती है। विरोध इतना बढ़ गया है कि कई राज्यों में बीएलओ नौकरी छोड़ने की स्थिति में पहुंच चुके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, अत्यधिक दबाव, लगातार काम और तनाव की वजह से दो दर्जन से अधिक बीएलओ की मौत भी हो चुकी है। कई मृतकों ने अपने अंतिम संदेश में चुनाव आयोग को अपनी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। केरल और पश्चिम बंगाल की सरकारें भी इस प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग पर दबाव बना रही हैं और जल्दबाजी को अनुचित बता रही हैं। इसके बावजूद चुनाव आयोग समयसीमा बढ़ाने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है, जिससे विरोध और असंतोष बढ़ता जा रहा है। इस असामान्य तेजी ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों के बीच यह धारणा और मजबूत कर दी है कि केंद्र सरकार लोकसभा को भंग कर समय से पहले चुनाव कराने की तैयारी में है। उधर, अगले वर्ष असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुदुचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनका कार्यकाल मार्च से मई 2026 के बीच पूरा हो रहा है। चुनाव आयोग को अनिवार्य रूप से इन राज्यों में उसी अवधि के दौरान चुनाव कराना होगा। ऐसे में चर्चाएं हैं कि केंद्र सरकार इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव भी करा सकती है, ताकि राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में पूर्ण बहुमत की सरकार की राह आसान हो सके। केंद्र में एनडीए सरकार का सहयोगी दलों पर निर्भर होना और बिहार में चुनाव के बाद से चल रहे राजनीतिक संघर्ष ने भी इस संभावना को और मजबूत किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हाल के महीनों में देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और युवाओं में नाराजगी ने सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ाई हैं। कई शहरों में धरना-प्रदर्शन बढ़ने से भी प्रशासनिक दबाव बना है। ऐसे माहौल में भाजपा के लिए समयपूर्व चुनाव एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है, जिससे वह दोबारा स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में लौटने की कोशिश कर सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन के बावजूद चुनाव आयोग की निष्क्रियता और मतदाता सूची से लाखों नाम हटाने जैसी घटनाओं ने विपक्ष के संदेह को और गहरा किया है। सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर से जुड़े मामले की सुनवाई जारी रहने के बावजूद बिहार चुनाव कराने को लेकर भी आयोग की आलोचना होती रही है। वहीं विपक्षी दलों का न्याय पालिका पर विश्वास खत्म हो रहा है। इन सभी परिस्थितियों ने यह धारणा बना दी है कि चुनाव आयोग की जल्दबाजी केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि संभवतः आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी का हिस्सा है। राजनीतिक गलियारों और मीडिया में यह चर्चा अब तेज है कि देश कभी भी मध्यावधि चुनाव की ओर बढ़ सकता है, और 12 राज्यों में चल रही तेज एसआईआर प्रक्रिया इसी संभावित रणनीति की शुरुआत है। चुनाव आयोग जादूगर पिछले कुछ वर्षों से चुनाव आयोग निर्वाचन प्रक्रिया में लगातार बदलाव कर रहा है। राजनैतिक दलों को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा रहा है। पिछले वर्षों में सारी चुनावी प्रक्रिया का केन्द्रीयकरण कर लिया गया है। मतदाता सूची, मतदान एवं मतगणना को लेकर जो जानकारी पहिले सार्वजनिक होती थी, अब वह गुप्त कर दी गई है। 45 दिन के अंदर मतदान एवं मतगणना का रिकॉर्ड नष्ट किया जा रहा है। मतदान के दिन तक मतदाता सूची में बदलाव हो रहा है। बीएलओ को ऐप के जरिये अधिकार दिये जा रहे हैं। चुनाव आयोग जिस तरह की कलाबाजी चुनावों में दिखा रहा है, उससे विपक्षी दल अब चुनाव आयुक्त को जादूगर कहने लगे हैं। आरोप है कि चुनाव आयोग वही परिणाम देता है, जो भाजपा चाहती है। जादूगर जैसे दर्शकों को सम्मोहित करके रखता है, उसी तरह से चुनाव आयोग की डिजिटल प्रक्रिया ने सभी राजनैतिक दलों को अपने जादू से सम्मोहित कर रखा है। एसजे / 25 नवम्बर 25