लेख
04-Dec-2025
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भारत में डिजिटल क्रांति की रफ्तार जितनी तेज़ है, उतनी ही तेजी से साइबर अपराध, ऑनलाइन धोखाधड़ी और मोबाइल चोरी की घटनाएँ भी बढ़ी हैं। इसी चुनौती से उपजे समाधानों में से एक है ,संचार साथी ऐप, जिसे दूरसंचार विभाग ने वर्ष 2023 में लॉन्च किया था। इसका प्रमुख उद्देश्य मोबाइल उपयोगकर्ताओं को सुरक्षा के औज़ार उपलब्ध कराना, खोए या चोरी हुए फोन को ट्रैक और ब्लॉक करने में मदद करना, तथा साइबर फ्रॉड से बचाव को मजबूत करना है। बीते दो वर्षों में इस ऐप ने अपनी उपयोगिता भी सिद्ध की।वेब पोर्टल के आँकड़ों के अनुसार 1.14 करोड़ से अधिक डाउनलोड और 42 लाख से अधिक मोबाइल ब्लॉक होने का दावा इसकी विश्वसनीयता और व्यापक उपयोग की कहानी खुद कहता है।लेकिन हाल ही में यह ऐप अचानक राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गया है। सरकार ने मोबाइल कंपनियों को निर्देश दिए कि नए हैंडसेट खरीदने वाले ग्राहकों को संचार साथी ऐप डाउनलोड कर इसकी जानकारी देना सुनिश्चित करें। बस, फिर क्या था,विपक्ष ने इसे तुरंत जासूसी का टूल करार दे दिया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इसे निजता पर सीधा हमला बताया, जबकि कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल और सीपीआईएम सांसद जॉन ब्रिटास ने भी सरकार के इस कदम को नागरिक अधिकारों का उल्लंघन कहा। वहीं सरकार का कहना है कि ऐप पूरी तरह वैकल्पिक है।जिसे डाउनलोड करना है करे, जिसे नहीं करना है न करे। इस तरह संचार साथी को लेकर छिड़ी राजनीतिक बहस तकनीक, पारदर्शिता, निजता और सुरक्षा के बीच संघर्ष को उभार रही है।सुरक्षा का नया औज़ार ‘संचार साथी’ का मूल उधेश्य है।भारत में हर साल लाखों मोबाइल चोरी या गुम हो जाते हैं। कई बार इन्हीं चोरी हुए मोबाइलों का इस्तेमाल अपराधी साइबर फ्रॉड, फिशिंग और अवैध गतिविधियों में करते हैं। टेलीकॉम कंपनियों और सुरक्षा एजेंसियों के पास भी चोरी हुए मोबाइलों का डेटा सीमित मात्रा में ही पहुँच पाता था।इसी कमी को दूर करने के लिए संचार साथी ऐप विकसित किया गया। इसके तीन प्रमुख उद्देश्य हैं। मोबाइल चोरी-गुम होने पर तुरंत ब्लॉक कराने की सुविधा है। फर्जी या अनजान मोबाइल कनेक्शन की पहचान हो सकती है।साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग और सुरक्षा जागरूकता की उपब्धता। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि लाखों लोग इसकी मदद से अपने फोन ब्लॉक करा चुके हैं। इससे चोरों के लिए चोरी का फोन उपयोग करना जोखिम भरा हो गया है। कई राज्यों की पुलिस ने भी माना है कि इससे मोबाइल-चोरी गैंग पकड़ने में मदद मिली है।सरकार का पक्ष सुरक्षा का सवाल सबसे बड़ा है। सरकार का तर्क है कि संचार साथी ऐप नागरिक सुरक्षा का साधन है, न कि निगरानी का औज़ार।टेलीकॉम विभाग कहता है।ऐप केवल आईएमईआई आधारित कार्य करता है, किसी व्यक्ति की निजी चैट, लोकेशन, फोटो या कॉल डेटा एकत्र नहीं करता है।यह केवल वही जानकारी उपयोग करता है जो मोबाइल नेटवर्क में पहले से मौजूद रहती है।डिजिटल फ्रॉड के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए यह ऐप आवश्यक है। सरकार ने स्पष्ट कहा है कि यह अनिवार्य नहीं है।चाहें तो डाउनलोड करें, नहीं तो कोई बाध्यता नहीं।सरकार के अनुसार संचार साथी आने वाले समय में डिजिटल इंडिया के सुरक्षा मॉडल का आधार बन सकता है, जैसे आधार और यूपीआई ने पहचान और भुगतान व्यवस्था को मजबूत किया।विपक्ष का बेमतलब आरोप है कि यह ऐप सुरक्षा नहीं, जासूसी का माध्यम है।विपक्ष इस मुद्दे को निजता और सरकारी नियंत्रण के नजरिए से देख रहा है।कांग्रेस और अन्य विपक्षी नेताओं के प्रमुख आरोप हैं।सरकार ऐप के बहाने नागरिकों की डिजिटल गतिविधियों पर नजर रखना चाहती है।यह निजता के अधिकार का संभावित उल्लंघन है।जनता को जबरन निगरानी के दायरे में लाने की कोशिश की जा रही है।टेलीकॉम कंपनियों के जरिए ऐप डाउनलोड करवाना अप्रत्यक्ष दबाव है।प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि सरकार डिजिटल जीवन में अनावश्यक दखल बढ़ा रही है। सीपीआईएम के जॉन ब्रिटास ने इसेस्टेट सर्वेलेन्स का नया रूप बताया। जनता किस तरफ?आज का दौर ऐसा है, जहाँ हर नागरिक दो बड़े सवालों के बीच खड़ा है। क्या सुरक्षा के लिए कुछ निजता त्यागनी पड़ेगी?क्या सरकार को बिना अनुमति डिजिटल हस्तक्षेप करने की सीमा तय होनी चाहिए?संचार साथी ऐप के मामले में यही संघर्ष दिखाई दे रहा है।एक तरफ भारत में साइबर अपराध जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए सुरक्षा उपकरणों की ज़रूरत स्पष्ट है। डिजिटल इंडिया में मोबाइल फोन अब केवल एक गैजेट नहीं, बल्कि पहचान, बैंकिंग, वित्तीय लेनदेन और व्यक्तिगत डाटा का केंद्र बन चुका है। सुरक्षा मजबूत करना समय की मांग है। दूसरी तरफ, कई नागरिकों के मन में यह भी डर है कि कहीं सुरक्षा के नाम पर उनकी निजी जिंदगी का दायरा सीमित न हो जाए। दुनिया भर में ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ सुरक्षा ऐप्स पर निगरानी के आरोप लगे। ऐसे में आशंका होना स्वाभाविक है।क्या राजनीति तकनीक के रास्ते में बाधा बन रही है?संचार साथी को लेकर हुआ विवाद बताता है कि देश में साइबर सुरक्षा भी राजनीतिक चश्मे से देखी जाने लगी है। यदि सरकार कोई सुरक्षा उपाय लाती है, विपक्ष उसे निगरानी बताता है।यदि विपक्ष कोई डिजिटल अधिकारों से जुड़ा कदम उठाता है, सरकार उसे अवसरवाद कहती है। हकीकत यह है कि तकनीक का मनुष्य से कोई राजनीतिक रिश्ता नहीं होता, लेकिन उसकी नीयत और उपयोग निश्चित रूप से राजनीति से प्रभावित हो सकता है।यहाँ समस्या ऐप नहीं, बल्कि विश्वास की है।क्या आवश्यक है?एक पारदर्शी डेटा नीति। संचार साथी पर विवाद से एक स्पष्ट संदेश निकलता है। भारत को अपनी सार्वजनिक डिजिटल सेवाओं के लिए एक स्पष्ट, कड़ा और पारदर्शी डेटा नीति चाहिए।डेटा कहाँ स्टोर होगा?किस तरह उपयोग होगा? सरकार डेटा तक कब पहुँच सकती है? और नागरिक का डेटा मिटाने का अधिकार क्या होगा? इन सवालों का उत्तर स्पष्ट होना चाहिए। यदि सरकार इन पहलुओं पर मजबूत और भरोसेमंद नीति प्रस्तुत करे, तो किसी भी डिजिटल उपकरण पर संदेह स्वतः कम हो जाएगा। देशहित क्या कहता है?यदि देखा जाए, तो संचार साथी ऐप सुरक्षा के लिहाज से उपयोगी है। लाखों लोगों के मोबाइल ब्लॉक होना, डाउनलोड की बढ़ती संख्या, और पुलिस जांच में मदद मिलना इसके फायदे साबित करते हैं। लेकिन सुरक्षा किसी भी कीमत पर नहीं मिल सकती। यदि नागरिकों को लगता है कि उनके अधिकार खतरे में आ रहे हैं, तो यह चिंता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।इसलिए जरूरी है कि सरकार और विपक्ष तकनीक को राजनीतिक हथियार न बनाएं, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा और निजता दोनों को संतुलित करते हुए आगे बढ़ें।बहस से समाधान निकले, सनसनी नहीं।संचार साथी ऐप को लेकर मचा शोर तकनीकी बहस के बजाय राजनीतिक तूफान ज्यादा लगता है। वास्तविकता यह है कि यह ऐप देश को एक सुरक्षित डिजिटल वातावरण देने की दिशा में एक पहल है।लेकिन डिजिटल सुरक्षा और नागरिक निजता दो पहिये हैं दोनों में तालमेल होना आवश्यक है। सरकार को पारदर्शिता के साथ विश्वास बढ़ाना होगा, और विपक्ष को प्रत्येक तकनीकी पहल को निगरानी का डर बताने से बचना चाहिए।देश के लिए सबसे अच्छा वही है, जिसमें सुरक्षा भी मिले और निजता भी सुरक्षित रहे। संचार साथी ऐप इसी दोराहे पर खड़ा है।यह बहस हमें बताती है कि डिजिटल भारत को आगे बढ़ाने के लिए सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि विश्वास की राजनीति भी उतनी ही जरूरी है। (L 103 जलवन्त टाउनशिप पूणा बॉम्बे मार्केट रोड नियर नन्दालय हवेली सूरत मो 99749 40324 वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार स्तम्भकार) ईएमएस / 04 दिसम्बर 25