लेख
06-Dec-2025
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नींव केवल ईंट-गारे से नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, वैज्ञानिक दृष्टि और राजनीतिक संकल्प से बनती है, तभी वह भविष्य को वहन करने योग्य होती है। मोदी सरकार का सुजलम भारत विजन ऐसा ही एक राष्ट्रीय प्रयत्न है। जहाँ पानी का प्रवाह केवल पाइपों में नहीं, बल्कि नीतियों, प्राथमिकताओं और जनचेतना में बदलता दिखाई देता है। यह वह समय है जब भारत पानी को सिर्फ एक प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि सामाजिक सम्मान, स्वास्थ्य, समानता और समृद्धि की साझा धरोहर के रूप में देखना शुरू कर चुका है। भारत मंडपम में 2025 के सुजलम भारत शिखर सम्मेलन ने इस सोच को और स्पष्ट किया। देश जिस तीव्र गति से शहरीकरण, औद्योगिक विस्तार, भू-जल दोहन और जलवायु अनिश्चितताओं से जूझ रहा है, वह केवल तकनीकी समाधान से नहीं सुलझ सकता। इसे सुलझाने के लिए समाज को, सरकार को और समुदायों को एक साझा भविष्य पर सहमत होना पड़ता है। यही कारण है कि यह शिखर सम्मेलन किसी औपचारिक सरकारी आयोजन की तरह नहीं, जल सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय संकल्प जैसा प्रतीत हुआ। मोदी सरकार के इन प्रयासों की सबसे बड़ी शक्ति यह है कि यह जल को विकास की धुरी से जोड़ता है, न कि महज़ भौतिक सुविधा के रूप में। उदाहरण के लिए, जल जीवन मिशन ने 2019 में जहाँ ग्रामीण घरों में मात्र 3.23 करोड़ परिवारों को ही नल-जल उपलब्ध था, वहीं 2025 तक यह संख्या बढ़कर 15 करोड़ से अधिक हो गया। यह परिवर्तन किसी एक प्रशासनिक आदेश से नहीं, लाखों किलोमीटर पाइप बिछाने, हजारों जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने तथा समुदायों के साथ सक्रिय भागीदारी से संभव हुआ। आँकड़े सिर्फ उपलब्धि नहीं हैं। वे ग्रामीण जीवन की दिशा बदलने का प्रमाण हैं, लेकिन बात केवल संख्या की नहीं है। इस बदलाव का सामाजिक अर्थ कहीं अधिक व्यापक है। जब एक ग्रामीण परिवार के आँगन में नल से पानी बहता है, तो सबसे पहले मुक्त होती है महिला, जो दशकों से पानी लाने का बोझ ढोती रही। जल तक पहुंच, महिलाओं के समय, श्रम, सुरक्षा और अवसरों को दोगुना करती है। यह किसी कल्याणकारी योजना का हिस्सा नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया कदम है। बच्चे अधिक समय स्कूल में बिताते हैं, खेतों में फसल चक्रीकरण के नए अवसर खुलते हैं, परिवारों में स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं यानी पानी केवल सुविधा नहीं, परिवर्तन का इंजन है। यही दृष्टि नमामि गंगे कार्यक्रम में भी दिखाई देती है। नदी मात्र जलधारा नहीं, एक पारिस्थितिक और सांस्कृतिक इकाई है। गंगा से लेकर देश की अन्य नदियों तक, यह सरकार पहली बार जल की गुणवत्ता, प्रदूषण नियंत्रण और नदी-आधारित विकास को एकीकृत करने का प्रयास कर रही है। यह सोच बताती है कि भारत अपने जल-संस्कृति को केवल पूजनीय परंपरा नहीं, बल्कि जीवंत पारिस्थितिकी के रूप में पुनर्स्थापित कर रहा है। जल शक्ति अभियान, ‘कैच द रेन’ पहल और प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए चार आर रिड्यूस, रीयूज, रीसाईकल, रिचार्ज आधुनिक भारत के जल प्रबंधन का नया व्याकरण हैं। यह व्याकरण समाज के हर वर्ग को, हर औद्योगिक इकाई को और हर स्थानीय निकाय को यह याद दिलाता है कि पानी कोई शाश्वत संसाधन नहीं। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी का दर्पण है। केवल कम उपयोग या पुनर्उपयोग से ही भविष्य सुरक्षित नहीं होगा; हमें जल को पुनर्भरण योग्य बनाना होगा, ताकि हर बूंद कल की तरफ एक निवेश हो सके। सुजलम भारत विशन का सबसे गहरा संदेश यही है कि जल प्रबंधन किसी एक मंत्रालय की सीमित जिम्मेदारी नहीं। यह राष्ट्रीय चरित्र, सामाजिक दायित्व, स्थानीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का सम्मिलित परिणाम है। यही कारण है कि इस दृष्टि में जल संरक्षण तकनीक के साथ-साथ उन पारंपरिक भारतीय बुद्धियों को भी स्थान दिया गया है जिन्होंने सदियों तक जल का संतुलन बनाए रखा। आज जब विज्ञान सेंसर-आधारित वितरण प्रणाली, भू-जल मैपिंग, और ड्रोन सर्वेक्षण दे रहा है, वहीं समुदाय श्रमदान, परंपरागत जल संरचनाएँ और स्थानीय जल-ज्ञान जोड़कर एक स्थायी भविष्य का निर्माण कर रहे हैं। मोदी सरकार जिस “बेहतर कल” की बात करती है, वह केवल नए जलस्रोतों या नई पाइपलाइनों पर आधारित नहीं है; वह नागरिकों के मन में जल के प्रति नई संवेदनशीलता और सामूहिक जिम्मेदारी के भाव पर आधारित है। बेहतर कल तब बनता है जब बच्चे अपने गाँव में जल उपलब्धता के कारण भविष्य की योजना बनाते हैं, किसान विविध फसलों का सपना देखता है, और महिलाएँ अपनी ऊर्जा को श्रमसाध्य यात्राओं के बजाय शिक्षा, उद्यम और परिवार के विकास में लगा पाती हैं। इस देश के इतिहास में कई योजनाएँ आईं, लेकिन कुछ ही ऐसी हुईं जिन्होंने सामाजिक संरचना को भीतर से बदला। जल जीवन मिशन, नमामि गंगे, जल शक्ति अभियान और सुजलम भारत विजन ये सभी मिलकर भारत को एक ऐसे रास्ते पर ले जा रहे हैं जहाँ पानी केवल सरकारी फाइलों का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा बनता जा रहा है। भारत की जल यात्रा अभी पूरी नहीं हुई है; चुनौतियाँ हैं, कमी भी है। लेकिन आज यह कहने का समय आ गया है कि भारत ने नींव रख दी है, एक ऐसे कल की जहाँ जल सुरक्षा सिर्फ लक्ष्य नहीं, जीवन का अधिकार होगी; जहाँ जल प्रबंधन सिर्फ नीति नहीं, संस्कृति होगी; और जहाँ सुजलम भारत सिर्फ कल्पना नहीं, एक निर्मित वास्तविकता होगी और यही वह परिवर्तन है जो हम सबको सोचने, ठहरने और दिशा बदलने पर मजबूर करता है क्योंकि पानी का प्रश्न, अब केवल पानी का प्रश्न नहीं रहा; यह हमारे भविष्य का प्रश्न है। ईएमएस / 06 दिसम्बर 25