रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर आ चुके हैं। एयरपोर्ट पर खुद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका स्वागत किया है। पुतिन का यह दौरा व्यापार से लेकर रक्षा सौदों तक बेहद खास है। खासतौर पर ऐसे समय जब अमेरिका के राष्ट्रपित डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत और अमेरिका के रिश्तों को बिगाड़ने पर लगे हुए हैं। रूसी राष्ट्रपति के सम्मान में आज (5 दिसंबर) प्राइवेट डिनर भी रखा गया है। इस वार्ता पर पश्चिमी देशों की पैनी निगाह है। के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन गुरुवार 4 दिसंबर 2025 को दो दिवसीय भारत दौरे पर आ गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर हो रही यह यात्रा चार साल बाद पुतिन की पहली भारत यात्रा है। इस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग, व्यापार को बाहरी दबावों से बचाने और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों में साझेदारी पर खास ध्यान दिया जाएगा। शुक्रवार 5 दिसंबर की सुबह पुतिन को औपचारिक स्वागत दिया जाएगा। इसके बाद 23वां भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन होगा, जहां दोनों नेता प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करेंगे। समिट के बाद पुतिन आरटी के नए इंडिया चैनल का शुभारंभ करेंगे। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु उनके सम्मान में राजकीय भोज आयोजित करेंगी। पुतिन की यह यात्रा भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने के मौके पर हो रही है। यह साझेदारी अक्टूबर 2000 में शुरू हुई थी। दिसंबर 2010 में इसे बढ़ाते हुए ‘स्पेशल एंड प्रिविलेज्ड स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप’ का दर्जा दिया गया था। पीएम मोदी और पुतिन की आज होने वाली बैठक कई मायनों में अहम है क्योंकि इसमें तेल सप्लाई बढ़ाने, न्यूक्लियर एनर्जी क्षेत्र में सहयोग के नए विकल्प खोजने और S-400 एयर डिफेंस सिस्टम व Su-57 फाइटर जेट जैसी डिफेंस डील्स पर चर्चा होने की उम्मीद है। बदलते भू-राजनीतिक माहौल में पुतिन का यह दौरा भारत-रूस की रणनीतिक साझेदारी की मजबूती और उसकी निरंतर अहमियत को दर्शाता है। आज रूस के रोसाटॉम के साथ छोटे मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर (SMR) की डील पर भी मुहर लग सकती है। भारतीय राजनयिक वीना सीकरी ने कहा, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संकेत था कि हमारे प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत करने के लिए स्वयं हवाई अड्डे जाने का निर्णय लिया। मुझे विश्वास है कि यह एक अत्यंत सफल यात्रा होगी। चर्चा के तीन-चार प्रमुख क्षेत्र रक्षा सहयोग होंगे। हम जानते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर में भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस मिसाइल और एस-400 वायु रक्षा प्रणाली वास्तव में मुख्य आकर्षण थे। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि वह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए तैयार हैं। ये बहुत महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिन पर हमारी सरकार निश्चित रूप से बहुत ध्यान से विचार करेगी। व्यापार के क्षेत्र में मुझे लगता है कि यह भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत को सोवियत संघ को अपना निर्यात बढ़ाना है। इन सभी पर व्यापार के संदर्भ में चर्चा की जाएगी। आपको बता दें कि वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों विशेषकर शेषकर यूक्रेन युद्ध और एशिया में शक्ति संतुलन के बीच उनका यह दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसलिए पुतिन का यह दौरा बदलते वैश्विक समीकरणों, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था और भारत-रूस संबंधों के नए अध्याय की ओर इशारा है। सर्वविदित है विश्व राजनीति गहरे परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। एक ओर अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा चरम पर है, दूसरी ओर यूरोप-रूस संबंध यूक्रेन युद्ध के कारण अभूतपूर्व तनाव में हैं। ऐसे में पुतिन का भारत आना यह दर्शाता है कि भारत वैश्विक शक्ति राजनीति के केंद्र में है और रूस के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बना हुआ है। पुतिन की यह यात्रा इसलिए भी खास मानी जा रही है, क्योंकि जब पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं, तब भारत गर्मजोशी से रूसी राष्ट्रपति का स्वागत कर रहा है। यह दिखाता है कि भारत अपनी विदेश नीति के फैसले खुद लेता है और किसी के दबाव में नहीं आता। इसे ही रणनीतिक स्वायत्तता कहते हैं। पुतिन के इस दौरे को भारत और रूस के बीच रणनीतिक रिश्तों की मजबूती के तौर पर देखा जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस दौरे से रूस की वैधता को मजबूती मिलेगी। इस दौरे के दौरान, दोनों देशों का मुख्य फोकस डिफेंस, एनर्जी, ट्रेड सेक्टर में सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाना होगा। इसमें डिफेंस सेक्टर में सहयोग, रियायती रूसी तेल की सप्लाई, स्थानीय मुद्राओं (रुपया-रूबल) में व्यापार पर चर्चा की जा सकती है। अमेरिका की ओर ओर से भारत पर लगाए टैरिफ के बाद इस दौरे को अहम् माना जा रहा है। आपको पता है रूस और भारत के रिश्ते महत्वपूर्ण रहे हैं, वैश्विक राजनीति की बदलती तस्वीर के बावजूद भारत और रूस लगातार एक-दूसरे के और करीब आ रहे हैं। कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा पर गए थे, अब पुतिन भारत आ रहे हैं और इस दौरे पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। विशेषकर वैश्विक मंच पर जहां अमेरिका और चीन आपस में लगातार शक्ति संतुलन की प्रतिस्पर्धा में लगे हैं, वहीं भारत ऐसे समय में अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए बहुपक्षीय संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। भारत और रूस के बीच संबंध कोई नया नहीं है लगभग 70 वर्षों से यह रिश्ता सामरिक, कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर निरंतर मजबूती के साथ आगे बढ़ा है। 1971 की भारत सोवियत मैत्री संधि ने दोनों देशों के बीच विश्वास को वह नींव रखी, जो वैश्विक राजनीति के बदलते समीकरणों के बीच भी कायम रही। आज जब दुनिया नए शक्ति संतुलन, नए क्षेत्रीय तनावों और नई आर्थिक प्रतिस्पर्धाओं से गुजर रही है, ऐसे समय में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा अत्यंत त्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यह यात्रा न सिर्फ सामरिक साझेदारी को मजबूत करेगी, बल्कि अमेरिका, चीन और यूरोपीय देशों के बदलते रुख के बीच भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के संदेश को भी दोहराएगी। साथ ही दो कारणों से खास मायने रखता है। पहला, अमेरिका की ओर से भारत को लेकर रणनीति में बदलाव दिख रहा है, चाहे वह पाकिस्तान को बढ़ाया गया महत्व हो या भारत के लिए बढ़ाए गए टैरिफ हों, स्पष्ट संकेत देते हैं कि वाशिंगटन अब नई प्राथमिकताएं तय कर रहा है। डोनाल्ड ट्रंप की नई नीतियां भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य को जटिल बना रही हैं। दूसरा, रूस पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहा है और नई आर्थिक साझेदारियों की तलाश में है। इस बदलती परिस्थिति ने भारत और रूस को एक-दूसरे के और करीब आने की वास्तविक जरूरत पैदा की है। रक्षा क्षेत्र में भारत और रूस का सहयोग दशकों से अत्यंत मजबूत रहा है। भारतीय सेना के 60 एवं 70 प्रतिशत उपकरण रूसी तकनीक पर आधारित हैं। एस-400 मिसाइल सिस्टम, ब्रहमोस सुपरसोनिक मिसाइल, टी-90 टैंक, मिग और सुखोई फाइटर जेट, अकुला क्लास न्यूक्लियर सबमरीन ये सभी इस साझेदारी के प्रमाण हैं। अब जबकि वैश्विक राजनीति में तकनीकी श्रेष्ठता निर्णायक बन चुकी है, पुतिन की यात्रा से रक्षा के क्षेत्र में नए अध्याय जुड़ने की उम्मीद है। एस-500 जैसे अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम, ब्रह्मोस के नए वेरिएंट, नए हेलिकॉप्टर और जेट्स पर संभावित समझौते भारत की सैन्य क्षमता को नई ऊंचाई दे सकते हैं। लेकिन इस दौरे का महत्व सिर्फ रक्षा तक सीमित नहीं है। रूस भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा का भी एक प्रमुख स्तंभ बन चुका है। यूक्रेन युद्ध के दौरान जब पश्चिमी देश रूस से दूरी बना रहे थे, भारत ने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए रूसी तेल खरीदना जारी रखा। अमेरिका से कडवाहट रूस से कच्चा तेल खरीदने से शुरू हुई भारत रूस से कच्चा तेल खरीदने वाले प्रमुख देशों में शामिल है। ऊर्जा क्षेत्र में यह सहयोग न सिर्फ आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि भू-राजनीतिक स्तर पर भारत की स्वतंत्रता और संतुलन की की नीति का भी प्रतीक है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कुडनकुलम न्यूक्लियर प्लांट जैसे प्रोजेक्ट दोनों देशों की साझेदारी को और गहराई देते हैं। व्यापार और उद्योग के लिए भी यह यात्रा नए अवसर लेकर आ रही है। पश्चिमी कंपनियों के रूस से हटने के बाद अब भारतीय एक्सपोर्टर्स के लिए व्यापक संभावनाएं खुल रही हैं। फूड प्रोसेसिंग, कृषि, फार्मा, मशीनरी, डिजिटल सर्विसेज और एजुकेशन ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भारत की कंपनियों को रूस में नई जगह मिल सकती है। विशेष रूप से, छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए नए शिपिंग रूट, वेयरहाउसिंग सुविधाएं और सहज पेमेंट सिस्टम जैसे समाधान इस दौरे के बाद संभव हैं। सीआईएस देशों तक पहुंच भी भारत के व्यापार को बड़ा भूगोल दे सकती है। जब अमेरिका भारत पर टैरिफ बढ़ा रहा है और यूरोप ऊर्जा संकट से जूझ रहा है, ऐसे समय में रूस से बढ़ता व्यापार भारत को स्थिरता और विविधता प्रदान करेगा। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौते होंगे। ये समझौते केवल दस्तावेज नहीं होंगे, बल्कि भारत एवं रूस संबंधों के भविष्य की दिशा तय करेंगे। नई तकनीक, नई रणनीति और नई अर्थव्यवस्था के इस दौर में दोनों देशों के बीच सहयोग न सिर्फ आज की जरूरत है, बल्कि आने वाले दशकों की मजबूती का आधार भी दे सकता है। इसलिए पुतिन की यह यात्रा दुनिया को यह संदेश भी देती है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध केवल शक्ति के समीकरणों पर नहीं टिके होते, बल्कि भरोसे, इतिहास और साझा रणनीतिक सोच पर भी आधारित होते हैं। यह यात्रा अमेरिका के लिए भी एक संदेश बनेगी और भारत अपनी राजनीतिक स्वायत्तवता को बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रमाणित करने में कामयाब रहेगा। ईएमएस / 06 / 12 / 2025