लेख
06-Dec-2025
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नई आर्थिक चुनौती का बिगुल बजा भारत की अर्थव्यवस्था इस समय एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है, जहां सरकार की आय घट रही है, खर्च बढ़ रहा है। भारत सरकार का कर्ज बोझ ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच चुका है। आने वाले 2026-27 के बजट से पहले की इस स्थिति ने वित्त मंत्रालय की चिंता बढ़ा दी है। भारत की अर्थव्यवस्था ने पूरे आर्थिक ढांचे को हिला दिया है। रिजर्व बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंक एवं भारत की वित्तीय संस्थानों के सामने सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया है। कर्ज पर भारत सरकार की बढ़ती ब्याज देनदारी से रिजर्व बैंक ओर वित्त मंत्रालय में बजट के पहले हड़कंप मचा हुआ है। पहली बार देश के इतिहास में 14 से 15 लाख करोड़ रुपये के बीच ब्याज राशि पहुंचने का अनुमान है। केवल ब्याज चुकाने में ही भारत सरकार को अपने कुल टैक्स संग्रह का 40 प्रतिशत से अधिक खर्च करना होगा। यह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़े खतरे की घंटी बजने वाली स्थिति है। पिछले 30 वर्षों में पहली बार सरकार के टैक्स राजस्व में गिरावट देखने को मिल रही है, जो संकट को और गंभीर बना देती है। सामान्य वर्षों में प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष करों की ग्रोथ 10–15 प्रतिशत के बीच रहती है। पिछ्ले कुछ वर्षों में यह 17 से 18 प्रतिशत तक पहुंची है। इस बार स्थिति उलटी है। सरकार के राजस्व में टैक्स ग्रोथ 7 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच पा रही है। जीएसटी कलेक्शन तमाम प्रयासों के बाद भी सुस्त है। आयकर में केवल 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह स्पष्ट संकेत है, आर्थिक गतिविधियों की वास्तविक गति, सरकारी दावों के अनुकूल नहीं है। इसी बीच आरबीआई द्वारा अचानक 25 बेसिस पॉइंट की ब्याज-दर कटौती ने, नई चिंता खड़ी कर दी है। जब आर्थिक विकास दर 8.2 प्रतिशत बताई जा रही है, तब रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती का तर्क सरकार के दावे को कमजोर करता है। इससे साफ दिखता है, सरकार को सस्ते कर्ज की जरूरत है। सरकार को खर्च के लिए राजस्व कम पड़ रहा है। खर्च को पूरा करने के लिए सरकार को उधारी बढ़ानी ही होगी। बैंकिंग तंत्र पहले ही भारी आर्थिक दबाव झेल रहा है। बैंकों के लिए ब्याज की दर कम होने से डिपॉजिट जमा करना मुश्किल होगा। बैंकों में अभी जो डिपाजिट है वह भी बैंकों से निकलना शुरू हो जाएगा। जनता बैंकिंग सिस्टम से पैसा निकालने लगेगी। पिछले कुछ महीने से बैंक से पैसा निकाल कर लोग सोने और चांदी में निवेश कर रहे हैं। वहीं, उद्योगपतियों को सस्ते कर्ज देने का सरकारी दबाव बैंकों की लाभ और उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर रहा है। इसके साथ ही भारत के निर्यात करोबार में लगातार गिरावट और आयात में लगातार बढ़ोतरी ने व्यापार घाटा को 42 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंचा दिया है। डालर के मुकाबले कमजोर रुपया आयात को और महंगा बना रहा है। कच्चा तेल हो, दालें हों इलेक्ट्रॉनिक और रोजमर्रा की वस्तुएं, दवाइयों के कारोबार पर बढ़ता शुल्क महंगाई पर नया दबाव बना रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट आने से आयात में जहां ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा है, वहीं निर्यात करने में वस्तुएं महंगी हो गई है। अमेरिका ने टेरिफ बढाकर भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। टेरिफ के कारण निर्यात कम हो रहा है। सरकार और कारोबारी के ऊपर विदेशी कर्ज का भुगतान डॉलर मुद्रा में होने के कारण कारोबारियों को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। इन सारी परिस्थितियों का निचोड़ यही है, सरकार की वित्तीय स्थिति ऑक्सीजन के स्तर पर पहुंचे चुकी है। पिछले वर्षों की तुलना में आय घट रही और खर्च बढ़कर अनियंत्रित स्थिति पर पहुंच चुका है। खर्च, किस्तें और ब्याज का बोझ भविष्य की विकास संभावनाओं पर पूरी तरीके से पलीता लगा रहा है। आगामी वर्ष का बजट केवल आंकड़ों की कलाबाजी से तैयार नहीं हो सकता है। सरकार द्वारा आंकड़ों में हेरा-फेरी करके जो अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की बात कही जा रही थी अब उस ढोल की पोल खुल गई है। अगले वित्तीय वर्ष का बजट सरकार के लिए एक कठिन परीक्षा होगी। सरकार इस वित्तीय संकट से कैसे बाहर निकलती है। इसको लेकर अर्थशास्त्रियों में गहरी चिंता देखी जा रही है। भारत सरकार अभी तक बड़े-बड़े सपने दिखाती रही है। सरकार की छवि ऐसी बना ली गई है, सरकार जो चाहे वह कर सकती है। आम नागरिकों की आशा पिछले 12 वर्षों में इस सरकार ने काफी बढाई हैं। भारत सरकार को अब राजस्व बढ़ाने, व्यर्थ के खर्च घटाने, दीर्घकालिक सुधारों पर गंभीरता से ध्यान देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। आगामी बजट में सरकार को सत्य स्वीकार करना होगा। वर्ष 2026-27 के बजट में 14 से 15 लाख करोड़ का ब्याज आने वाले वर्षों में और भी बढ़ेगा। सरकार का खर्च साल दर साल बढ़ेगा। समय रहते सरकार ने इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया तो ऐसी स्थिति में आने वाले समय में बड़ा तूफान अर्थव्यवस्था को लेकर आना तय है। जिस तरह की स्थिति 2008 में अमेरिका की हुई थी, वही स्थिति 2026 में भारत के बैंकों और वित्तीय संस्थानों की हो सकती है। पिछले 12 वर्षों में सरकार ने हर सेक्टर में बड़े पैमाने पर टैक्स बढ़ाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी टैक्स की मार से आम जनता परेशान है। महंगाई, बेरोजगारी और कर्ज के बोझ से आम जनता बुरी कराह रही है। भारत में सबसे ज्यादा टैक्स आम जनता से वसूल किया जा रहा है। इससे ज्यादा टैक्स का बोझ आम जनता पर डाला जाएगा तो बगावत जैसी स्थितियां भी भारत में देखने को मिल सकती हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ और सामाजिक चिंतक वर्तमान स्थिति को देखकर चिंतित हैं। सरकार इस भयावह स्थिति से कैसे निपटती है। फरवरी माह में जो बजट पेश होगा, उसमें अर्थव्यवस्था की वास्तविकता का पता चलेगा। एसजे/ 6 ‎दिसम्बर /2025