लेख
04-Dec-2025
...


देश में जब नवनिर्माण की जगह पुराने स्थलों के नाम बदलने का उपक्रम किया जाने लगे तब सियासी माहौल गर्मा ही जाता है। दरअसल इन दिनों राजनीतिक विमर्श काफी हद तक नाम बदलने की राजनीति पर केंद्रित नजर आ रहा है। शहरों और मोहल्लों के साथ ही अब सरकारी भवनों, परिसरों और उच्च पदों से जुड़े स्थलों के नाम बदलने की कवायद तेज है। प्रधानमंत्री आवास को सेवातीर्थ और राजभवनों को लोक भवन कहने की पहल, कागज़ पर आकर्षक भले लगे, लेकिन इससे जुड़े असल सवाल और भी गहरे हैं। क्या केवल नाम बदल देने से संस्थाओं की प्रकृति बदल जाती है? क्या शब्दों के आवरण से व्यवस्था की खामियाँ ढक सकती हैं? यही वे प्रश्न हैं जिन पर समाज और विशेषज्ञ अब खुलकर चर्चा कर रहे हैं। दरअसल एक कार्यक्रम में बोलते हुए दिनेश केवरा ने कहा, नाम बदलने से काम नहीं बदलते। उनका यह कथन सही मायने में इस पूरे प्रतीकात्मक राजनीतिक विमर्श का सार कहा जा सकता है। यहां समझना होगा कि इस तरह की तमाम आपत्तियां नामों से नहीं, बल्कि उन नामों के पीछे छिपे वास्तविकता विरोध से है। लोक भवन कहे जाने वाले राजभवन वास्तविक अर्थों में चाहे कुछ भी हों, परन्तु जनता के लिए वे कितने खुले हैं? इसी प्रकार सेवातीर्थ जैसे आध्यात्मिक और पवित्र शब्द का प्रयोग क्या उस स्थान को तीर्थ बना देता है? क्या भव्य सुरक्षा, प्रतिबंधित प्रवेश और सत्ता का केन्द्रीयकरण जनता के लिए सेवा की भावना को प्रतिबिंबित करता है? इन प्रश्नों के उत्तर सहज ही स्पष्ट कर देते हैं कि नाम और वास्तविकता के बीच की खाई कितनी गहरी है। लोकतंत्र में मूल सवाल पूर्व नामों को बदलने का नहीं, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही का है। जनता यह देखना चाहती है कि सरकारी संस्थाएँ उनके लिए कितनी सुलभ, संवेदनशील और उत्तरदायी हैं, न कि उनका नाम कितना आध्यात्मिक या आकर्षक है। जब महंगाई और बढ़ते अपराध के आकंड़े समेत शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि और न्याय जैसी बुनियादी समस्याएँ जस की तस बनी हुई हों, तो नाम बदलकर उत्पन्न की गई चमक केवल मुद्दों से ध्यान भटकाने का तरीका ही प्रतीत होती है। ऐसे में यह कहना कहां गलत साबित होता है, कि आध्यात्मिक शब्दों का प्रयोग राजनीतिक ब्रांडिंग का साधन बनता जा रहा है। यह प्रवृत्ति केवल नाम बदलने तक सीमित नहीं, बल्कि भाषणों, कार्यक्रमों और सरकारी अभियानों तक फैली हुई है। शब्दों की चमक बढ़ने से शासन की गुणवत्ता नहीं बढ़ती; और जनता अब इस अंतर को भलीभाँति समझ रही है। इसलिए नामकरण की राजनीति पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जनता दो-जून की रोटी के लिए त्रस्त है, छोटी-छोटी समस्याएं भी अब पहाड़ सरीखी हो चुकी हैं लेकिन सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है। जनता समझ रही है कि नाम बदलने से काम नहीं बदल जाते, इसलिए अब वो भी मुखर हो रही है। प्रधानमंत्री की जीवनशैली और सरकारी भव्यता को लेकर जनता द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं, जो कहीं न कहीं सोशल मीडिया से अन्य मंचों पर बहस का कारण बने हुए हैं। गौर करने वाली बात तो यह है कि जब लोक कल्याण मार्ग के नाम के साथ करोड़ों की लागत वाला हाई-टेक परिसर, आधुनिक विमान और सुरक्षा तंत्र जुड़ जाता है, तो सादगी का संदेश निष्प्रभावी हो जाता है। यह केवल विरोधियों की आलोचना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के दृष्टिकोण से उठे तर्कसंगत प्रश्न हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक भी मानने लगे हैं कि इस प्रकार से नाम बदलना प्रतीकात्मक राजनीति का हिस्सा है, जो जनता को यह आभास देने का प्रयास है कि सरकार सक्रिय है, जबकि वास्तविक सुधारों पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। किसी संस्थान की आत्मा उसके नाम में नहीं, उसके कार्य और व्यवहार में होती है। यदि सरकारी प्रक्रियाएँ पारदर्शी नहीं हैं, यदि आम नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित नहीं है, तो भव्य नामों का कोई वास्तविक महत्व नहीं। इतिहास गवाई है कि शासकों की पहचान उनके राजमहलों के नामों से नहीं, बल्कि उनके कार्यों से होती रही है। जनता उस शासन को याद रखती है जिसने उसके जीवन को बेहतर बनाया हो, न कि उस शासन को जिसने केवल नामों की अदला-बदली की हो। आज जरूरत इस बात की है कि सरकार प्रतीकवाद से अपने आप को निकाले और वास्तविक धरातल पर कार्य करते हुए आमजन का दिल जीते। नाम बदलना आसान है, पर व्यवस्था बदलना कठिन। जनता उन बदलावों की अपेक्षा करती है जो उसके जीवन में प्रत्यक्ष सुधार लाएँ, महंगाई से राहत जिसका मोदी सरकार ने वादा किया हुआ है, बेहतर स्कूल, सस्ता इलाज, सुरक्षित रोजगार, किसानों को राहत और न्याय की सुगम पहुँच। यदि ये मूलभूत मुद्दे उपेक्षित रहेंगे, तो नामकरण की राजनीति जनता के असंतोष को बढ़ाने के अलावा कुछ नहीं करेगी। सरकार को यह समय रहते समझना होगा, कि शब्दों से नहीं, कार्यों से परिवर्तन आता है। और जब तक यह अंतर नहीं मिटेगा, तब तक नाम बदलने से काम नहीं बदलते जैसी आवाजें और बुलंद होती जाएँगी। ईएमएस / 04 दिसम्बर 25