एम्स भोपाल में सफलतापूर्वक संपन्न हुई ‘सारांश 2.0’ राष्ट्रीय कार्यशाला भोपाल(ईएमएस)। एम्स भोपाल के बाल रोग विभाग द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से 2 से 5 दिसंबर 2025 तक चार दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला ‘सारांश 2.0’ का सफल आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य देश में स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक सटीक, विश्वसनीय और साक्ष्य-आधारित बनाना था, ताकि आम नागरिकों को बेहतर और सुरक्षित उपचार उपलब्ध हो सके। कार्यशाला का उद्घाटन कार्यपालक निदेशक एवं सीईओ प्रो. (डॉ.) माधवानन्द कर ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने समय पर तैयार किए गए साक्ष्य-आधारित क्लिनिकल दिशानिर्देशों की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से साबित किया। उन्होंने यह भी बताया कि वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली ही विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को साकार करने में सहायक होगी। कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञों ने बताया कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) भारत में पारंपरिक सहमति-आधारित पद्धति से आगे बढ़कर मजबूत साक्ष्य-आधारित क्लिनिकल दिशानिर्देश विकसित कर रहा है। इससे इलाज के तरीकों में अधिक स्पष्टता, पारदर्शिता और वैश्विक विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है। जिस प्रकार यूनाइटेड किंगडम की एनआईसीई, ऑस्ट्रेलिया की एनएचएमआरसी और अमेरिका की एएचआरक्यू अपने देश के अनुरूप दिशानिर्देश तैयार करती हैं, उसी प्रकार भारत भी अपने वैज्ञानिक साक्ष्य, जनसंख्या और स्वास्थ्य जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अपने दिशानिर्देश तैयार कर रहा है। इस पहल के तहत 8 राष्ट्रीय स्टेम सेल दिशानिर्देश प्रकाशित किए जा चुके हैं और 16 दिशानिर्देश विकास प्रक्रिया में हैं। डीएचआर के 27 तकनीकी संसाधन केंद्र और 6 तकनीकी संसाधन हब इस कार्य को उच्च वैज्ञानिक मानकों के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। चार दिवसीय ‘सारांश 2.0’ में देशभर के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ—प्रो. (डॉ.) जोसेफ मैथ्यू, डॉ. विकास धीमन, डॉ. जितेन्द्र मीना, डॉ. ए. जी. राधिका और डॉ. रूपा हरिप्रसाद—ने साक्ष्य-आधारित दिशानिर्देशों के विकास पर विशिष्ट सत्र और व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया। कार्यक्रम का समापन प्रो. (डॉ.) गिरीश सी. भट्ट (प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर, डीएचआर-टीआरसी) और डॉ. गरिमा दुबे (रिसर्च एसोसिएट-III) द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। ‘सारांश 2.0’ भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य में उपचार के निर्णय वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित हों। इससे आम नागरिकों को और अधिक सुरक्षित, प्रभावी और भरोसेमंद स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध होंगी—और विकसित भारत 2047 की दिशा में देश का स्वास्थ्य ढांचा और मजबूत होगा। हरि प्रसाद पाल / 06 दिसम्बर, 2025