लेख
11-Dec-2025
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फ़िल्म गीतकार शंकर सिंह शैलेंद्र की स्मृति में रुड़की के तत्कालीन साहित्य एवं फ़िल्म प्रेमियों ने शैलेंद्र सम्मान समिति रुड़की का गठन कर प्रतिवर्ष शैलेंद्र परम्परा के गीतकारों व साहित्यकारों को सम्मानित करने का बीड़ा उठाया था।जिसके तहत शैलेन्द्र सम्मान से विभूषित हो चुकी हस्तियों में फिल्म निर्माता व गीतकार सम्पूर्ण सिंह गुलजार,मशहूर शायर कैफी आजमी,जाने माने कवि गोपाल दास नीरज,गीतकार योगेश,उत्तराखण्ड की वादियों से तारे जमीं पर फिल्म में कालजयी गीत देने वाले प्रसून जोशी, राष्टृभक्ति के गीतो के लिए मशहूर गीतकार सन्तोषानन्द,डा0 कन्हैया लाल नन्दन,जय प्रकाश भारती समेत अनेक फिल्मी गीतकार शामिल है। लेकिन समय बीतने के साथ यह सम्मान देने का सिलसिला अनियमित होंकर रह गया है और यदि कोई आयोजन हुआ भी तो वह रुड़की से बाहर होने के कारण स्थानीय लोग उसमे भागीदारी से वंचित रह गए।लेकिन वास्तव में आज भी हिन्दी फिल्मों में साहित्य की मशाल जलाकर उसे जिन्दा रखने वालों में सबसे पहला नाम शंकर सिंह शैलेन्द्र का आता है।फांकाकसी के संघर्षों में तपे और मजदूरों की पीड़ा से जन्मे उनके गीतों ने शंकर सिंह शैलेन्द्र को एक फिल्म गीतकार के रूप में अमर किया है। वे एक कवि,एक साहित्यकार और एक लेखक और मजदूरों के एक नेता के रूप में भी अपनी पहचान रखते थे।उनका अमर गीत सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होश्यारी,सच है दुनिया वालो कि हम है अनाडी। आज भी हर किसी की जुबान पर गुनगुनाया जाता है । शंकर सिंह शैलेन्द्र ने फ़िल्मी दुनिया में सिर्फ शैलेन्द्र नाम से ही अपनी पहचान बनाई । मई सन 1955 में उनके द्वारा लिखी गई गैर फिल्मी रचना काव्य संग्रह के रूप में न्यौता और चुनौती भी प्रकाशित हुई जो प्रगतिवादी साहित्य की कालजयी रचना मानी जाती है। 30 अगस्त 1932 को रावलपिंडी अब पाकिस्तान में जन्में शंकर सिंह शैलेन्द्र ने सन 1949 में फिल्म बरसात के गीत ’बरसात में हमसे मिले तुम सजन’ से अपने फिल्म कैरियर की शुरूआत की थी। अपने जमाने के मशहूर मजदूर नेता शंकर सिंह शैलेन्द्र का चर्चित गीत हर जोर जुल्म की टक्कर में हडताल हमारा नारा है, आज भी प्राय हर आन्दोलन में जोर शोर से गाया जाता है।जो शोषित और पीडित मजदूरों को न्याय दिलाने में आज भी मदद करता है। सन 1958 में बनी फिल्म यहूदी में उनका गीत ’ये मेरा दीवानापन है....व फिल्म ब्रहमचारी के गीत मैं गांउ तुम सो जाओं...। शैलेन्द्र की याद को अमर बनाये हुए है।उन्होंने आवारा,श्री420,जिस देश में गंगा बहती है,आह,जागते रहो,पतिता,गुमनाम,मेरी सूरत तेरी,आंखे,संगम,कालाबाजार,साहब,सीमा,मधुमति,गाईड,बूट पालिस,यहूदी,बरसात,बन्दिनी,अनाडी, जैसी चर्चित फिल्मों में अपने गीतों का योगदान किया। हमेशा सदाबहार रहे शैलेन्द्र में जनवादी सोच गहराई तक थी। आजादी के बाद रावलपिन्डी से भारत में आ बसे शैलेन्द्र के परिवार के कारण शैलेंद्र ने अपना बचपन मथुरा में बिताया था। फिर वे रेलवे में नोकरी करने मुम्बई चले गए। मुम्बई वे एक टृेड यूनियन नेता के रूप में उभरे और उनका लिखा गाना हर जोर जुल्म की टक्कर में संधर्ष हमारा नारा है हमेशा के लिए अमर हो गया। शैलेन्द्र के गीतों में कही संदेश नजर आता है तो कही उनके गीत हर दिल में जोश भरते नजर आते है। आध्यात्मिक सीख देने वाले उनके गीत सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है वहां हाथी है न धोडा है वहां पैदल ही जाना है,को आज भी सन्मार्ग दिखाने वाला गीत कहा जाता है। वही उनके गीत ,तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत में यकीन कर अगर कही है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर ।को सुनकर हर किसी के अन्दर कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा होता है। अपनी प्रसिद्ध फिल्म तीसरी कसम के लिए अपना सबकुछ लूटा देने वाले शैलेन्द्र को सर्वाधिक शोहरत भी उनके इस दुनिया से कूच करने के बाद ही सही किन्तु फिल्म तीसरी कसम से ही मिली। इस फिल्म की बदोलत उन्हे राष्ट्रपति पदक भी प्राप्त हुआ। शैलेन्द्र ने कई फिल्मों जैसे नया घर ,बूट पालिस, मुसाफिर व श्री 420 में अभिनय भी किया था। साथ ही फिल्म परख के लिए संवाद भी लिखे। उन्हे फिल्म यहूदी,अनाडी व ब्रहमचारी में गीत लेखन के लिए फिल्म फेयर पुरूस्कार भी मिले। लेकिन उन्होने कभी भी पुरूस्कार को कोई विशेष महत्व नही दिया। अपने जीवन में करीब एक हजार गीत लिखने वाले और लगभग 200 फिल्मों के लिए अपने गीत देने वाले शैलेन्द्र ने अपना जीवन संघर्षपूर्ण तरीके से बिताया और संधर्ष करते करते ही इस दुनिया से चले भी गए। उनका घर ज्यादातर अभाव का घर रहा,घर में कभी चाय की पत्ती नही तो कभी चीनी नही। फाका कसी के दिनों में भी शंकर सिंह शैलेन्द्र हमेशा हरफनमौला बने रहे और यार दोस्तो के बीच सिगरेट के लम्बे लम्बे कस खींचते हुए जीवन की गाडी चलाते रहे। 14 दिसम्बर 1966 में इस जीवन को अलविदा कहने वाले शैलेन्द्र की अब यादे ही बाकी है। फ़िल्म गीतकार शैलेन्द्र के पुत्र फिल्म निर्देशक दिनेश शैलेन्द्र के सहयोग से उनके प्रशंसक डा0 इन्द्रजीत सिंह ने ही रूडकी में शैेलेन्द्र सम्मान समिति का गठन कराकर सन 2000 से शैलेन्द्र को नियमित श्रद्धाजंलि अर्पित करने का बीडा उठाया था ।प्रसिद्ध साहित्यकार भीष्म साहनी ने अपने जीवनकाल में इस लेखक के साथ एक बातचीत में माना था कि शंकर सिंह शैलेन्द्र जैसा कविराज फिल्म क्षेत्र में कोई दूसरा नही हुआ जिसने आम लोगो के दर्द को अपने गीतो में पिरोकर फिल्मो के माध्यम से जनता के सामने परोसा।फणीश्वर नाथ रेणु ने एक बार शैलेन्द्र को पत्र लिखकर उनके गीत चिठिठया हो तो हर कोई बाचे भाग न बाचे कोई की जमकर तारीफ की थी। फिल्म निर्माता व नायक रहे राजकपूर तो शैलेन्द्र के दिवाने थे। एक कवि सम्मेलन में शैलेन्द्र के गीतो को सुनकर अपनी फिल्म के लिए गीत लिखने का न्योता देने वाले राजकपूर का न्योता भी शैलेन्द्र ने उस समय ठुकरा दिया था। परन्तु जब उनके जीवन में आर्थिक तंगी आई तो उन्हे काम मांगने के लिए राजकपूर के पास जाना पडा फिर भी राजकपूर ने उन्हे खुशी खुशी गले लगाकर उन्हे अपनी फिल्मों में काम दिया। शैलेन्द्र की मृत्यु के बाद राजकपूर ने अपने इस दोस्त को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि मेरे दोस्त, तुम अपने गीतो के कारण हमेशा अमर रहोगे।कथाकार कमलेश्वर भी गीतकार शंकर सिंह शैलेन्द्र के फैन थे। उन्होने कहा था कि शैलेन्द्र के गीत जनसरोकार की मनोभूमि पर सृजित है। इसीइसी कारण शैलेन्द्र को जन कवि के रूप में भी मान्यता मिली। जो उनके कालजयी गीतो से भी प्रमाणित होता है। जबकि मशहूर शायर कैफी आजमी शैलेन्द्र के न्योता और चुनौती काव्य संग्रह को विकासशील साहित्य का एक खास दस्तावेज मानते थे। फिल्म निर्माता गुलजार का तो साफ कहना है कि फिल्मी गीतों में शैलेन्द्र के गीत अदभुत है। जिनकी जगह कोई नही ले सकता। वही डा0 कन्हैया लाल नन्दन कहते थे कि शैलेन्द्र के गीतो में लोक मानस का पक्ष प्रतिम्बित होने से ही शैलेन्द्र महान गीतकार बन पाए। निदा फाजली के शब्दों में ,शैलेन्द्र के गीतों में कबीर और नजीर जैसी सादगी व जीवन दर्शन दिखाई पडता है। गोपाल दास नीरज भी शैलेन्द्र को दिल से साहित्यिक सरोकारो का रचनाकार मानते थे।बहुत कम उम्र में ज्यादा गीत लिखकर अमर हुए शंकर सिंह शैलेन्द्र आज भी अपने अमर फ़िल्मी गीतो के कारण जिंदा है ।उनकी याद में एक बार फिर अब 14 दिसम्बर को रुड़की के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान में वर्षों बाद रुड़की लौटकर आई शैलेंद्र सम्मान समिति एक आयोजन कर रही है,जिसमे फ़िल्म गीतकार समीर अनजान को शैलेंद्र सम्मान से विभूषित किया जा रहा है। ( लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति है) ईएमएस / 11 दिसम्बर 25