क्षेत्रीय
13-Dec-2025
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-गौरझामर रेंज में बेखौफ कटाई, वन अमला बना मूक दर्शक सागर/गौरझामर (ईएमएस)। दक्षिण वन मंडल की गौरझामर रेंज इन दिनों वन माफियाओं के कब्जे में नजर आ रही है। जंगलों की पहचान रहे बहुमूल्य सागौन के पेड़ों पर खुलेआम कुल्हाड़ी चल रही है, लेकिन वनों की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाला वन अमला न तो समय पर कार्रवाई करता दिख रहा है और न ही माफियाओं पर कोई ठोस शिकंजा कस पा रहा है। हालात यह हैं कि हरे-भरे जंगल तेजी से उजड़ रहे हैं और जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। वन परिक्षेत्र मुख्यालय से लगे जंगलों में ही सागौन के पेड़ धड़ल्ले से काटे जा रहे हैं। इससे वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। यह वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी अपनी मनमानी करते नजर आ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, यहां कई वन अधिकारी वर्षों से एक ही स्थान पर जमे हुए हैं। इसके पीछे उनका कथित संगठित नेटवर्क और राजनीतिक संरक्षण को बड़ी वजह बताया जा रहा है। लंबे समय तक एक ही स्थान पर टिके रहने के कारण इन अधिकारियों की वन माफियाओं से गहरी सांठगांठ बन गई है, जिसका खामियाजा जंगल और पर्यावरण दोनों भुगत रहे हैं।गौरझामर क्षेत्र की पहाड़ियों और जंगलों में माफिया दिन दहाड़े सागौन के पेड़ों को चिन्हित कर कटाई कर रहे हैं। रात के अंधेरे में इमारती लकड़ी वाहनों के जरिए सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचा दी जाती है। हैरानी की बात यह है कि यह सब वनरक्षक चौकियों की मौजूदगी वाले इलाके में हो रहा है। सूत्रों के अनुसार, सागौन माफिया अब स्वचलित आरी जैसे हाईटेक संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वर्षों से सक्रिय यह नेटवर्क इतना मजबूत हो चुका है कि अवैध सागौन की तस्करी केवल जंगलों तक सीमित नहीं, बल्कि गांव-गांव चल रहे अवैध फर्नीचर निर्माण के जरिए प्रदेश कई स्थानों पर अवैध फर्नीचर का निर्यात किया जा रहा है। लंबे समय से जारी यह कारोबार अब अवैध कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है।स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों का आरोप है कि इतनी बड़ी मात्रा में अवैध कटाई विभागीय मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। या तो गश्त नहीं होती, या फिर सब कुछ जानते हुए भी जानबूझकर अनदेखी की जा रही है। कमजोर सूचना तंत्र और संसाधनों की कमी का हवाला देकर वन अमला अपनी लाचारी छिपाने में जुटा है। बुद्धिजीवियों का कहना है कि सागौन की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। इससे भू-क्षरण, जल संकट और तापमान वृद्धि जैसी समस्याएं बढ़ेंगी, वहीं वन्यजीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।स्थानीय लोगों का कहना है एक समय था जब दक्षिण वन मंडल के अंतर्गत आने वाली गौरझामर रेंज अपने हरे-भरे जंगलों और बहुमूल्य सागौन की लकड़ी के लिए जानी जाती थी। लेकिन वन विभाग की उदासीनता और ढीली कार्यप्रणाली के चलते अब यही क्षेत्र वन माफियाओं की खुली शरणस्थली बनता जा रहा है। हालात ऐसे हैं कि गौरझामर रेंज इन दिनों माफियाओं के कब्जे में नजर आ रही है। जब मुख्यालय के आसपास के जंगल सुरक्षित नहीं हैं, तो दूरस्थ वन क्षेत्रों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों ने वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कर दोषी कर्मचारियों और माफियाओं पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में गौरझामर के जंगल केवल सरकारी रिकॉर्ड और नक्शों तक ही सिमट कर रह जाएंगे।