लेख
18-Dec-2025
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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को ग्रामीण भारत के लिए जीवनरेखा माना गया था। इस योजना का मूल उद्देश्य था, हर ग्रामीण परिवार को साल में कम से कम 100 दिन का गारंटीड रोजगार और समय पर मजदूरी मिले। जमीनी हकीकत पिछले वर्षों में इससे बिल्कुल उलट दिखाई देती है। आज स्थिति यह है, 100 दिन की कानूनी गारंटी होने के बावजूद मजदूरों को औसतन 40 से 50 दिन का औसत से अधिक काम नहीं मिल पा रहा है। जो काम मिलता भी है, उसकी मजदूरी समय पर नहीं मिल रही है। मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी में देरी अब अपवाद नहीं, बल्कि एक व्यवस्था बन चुकी है। कई राज्यों में मजदूरों को कई महीनों तक भुगतान का इंतजार करना पड़ता है। इसका सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। खपत घटती है, कर्ज बढ़ता है, और पलायन बढ़ता है। गांवों में रोजगार नहीं मिल रहा है, लेकिन शहरों में भी अब मजदूरों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। इस विफलता की जिम्मेदारी तय करने एवं व्यवस्था में सुधार करने के बजाय सरकार की ओर से विकसित भारत गारंटी फॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी वीबी- जी राम जी बिल में 125 दिनों के रोजगार देने का जो वायदा किया जा रहा है उसे विपक्षी दल, सरकार का “125 दिन का झुनझुना” कह रहे हैं। नए प्रस्ताव में एक ओर रोजगार के दिनों की संख्या बढ़ाने की बात की जा रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारों पर 40 प्रतिशत हिस्सेदारी का बोझ डाल दिया गया है। पहले से ही कर्ज में डूबी राज्य सरकारों के लिए यह अतिरिक्त वित्तीय जिम्मेदारी निभाना लगभग असंभव है। नतीजे में राज्यों को या तो मजदूरों की संख्या को कम करना होगा, या भुगतान में देरी होगी। इस योजना के तहत अव्यवस्था फैलेगी। इस तरह 125 दिन का दावा कागजों तक सीमित रह जायेगा। मजदूरों के अधिकार फाइलों तक सीमित रह जाएंगे। सबसे गंभीर चिंता का विषय यह है, कि इस नए बिल में केंद्र सरकार को यह अधिकार देने की बात की जा रही है, कि कहां मजदूरी देनी है, कहां नहीं। इसका फैसला दिल्ली के मंत्रालय में होगा। इससे मनरेगा की आत्मा गारंटीड अधिकार का वजूद ही खतरे में पड़ जायेगा। मजदूरी के निर्णय का अधिकार पंचायत और राज्य सरकार से निकलकर केंद्र सरकार के विवेकाधिकार में आ जाएगा और राजनीतिक टूल्स बनकर रह जाएगा। पश्चिम बंगाल में पिछले 4 साल से मनरेगा के मजदूरों को काम नहीं मिला है। जो काम मजदूरों ने किया था, उसका भुगतान भी नहीं हुआ है। अभी जब यह हाल हैं, तो आगे क्या होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। यह योजना मजदूरों के कल्याण की कम और राजनीति का हथियार ज्यादा बनकर रह जाएगी। योजना के विरोध करने वालों का कहना है, कि महात्मा गांधी के नाम से जुड़ी इस योजना का नाम बदलकर भगवान राम के नाम पर योजना करने के राजनीतिक फायदे जरूर हो सकते हैं, लेकिन उसके मूल सिद्धांतों को कमजोर कर दिया गया है। 125 दिन का शोर मचाकर मनरेगा को अप्रासंगिक बनाने और योजना को बंद करने का अप्रत्यक्ष प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। 100 दिन की मौजूदा गारंटी ही पूरी नहीं हो पा रही, तो 125 दिन के वादे को किस आधार पर भरोसेमंद माना जा सकता है? वह भी तब जब राज्य और केंद्र सरकार के ऊपर भारी कर्ज हो। तब बिल में जो सपने दिखाए जा रहे हैं, उन सपनों पर अब विश्वास भी नहीं किया जा सकता है। जरूरत इस बात की है, कि मौजूदा कानून को ईमानदारी से लागू किया जाए। मजदूरों के लिए जो संवैधानिक अधिकार दिया गया है इसका पूर्ण रूप से पालन किया जाए। समय पर सभी पंजीकृत मजदूरों को 100 दिन की अनिवार्य रूप से मजदूरी दी जाए। मजदूरी का भुगतान निश्चित समय सीमा पर हो। इसके लिए पर्याप्त बजट केंद्र सरकार द्वारा बिना किसी भेदभाव के जारी किया जाए। लोकसभा में बिल पेश किया गया, उस पर बहस हुई और विपक्ष के भारी हंगामे के बीच गुरुवार 18 दिसंबर को इसे मंजूरी दे दी गई। इस विधेयक पर बुधवार को आधी रात के बाद चर्चा समाप्त हुई थी। सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने अपनी-अपनी बातें सदन के समक्ष रखे। महात्मा गांधी का नाम हटाकर जिस तरह से विकसित भारत गारंटी फॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी वीबी- जी राम जी के नाम पर योजना में बदलाव किया जा रहा है, उसको लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष द्वारा अपने-अपने तर्क रखे हैं। बहरहाल लोकसभा में विपक्ष के हंगामे के बीच इस बिल को मंजूरी दे दी गई। विधेयक पारित होने के साथ ही लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सदन की कार्यवाही शुक्रवार सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी। महात्मा गांधी का सपना था कि भारत गांवों का देश है और जब तक गांव का विकास नहीं होगा तब तक देश का विकास नहीं होगा। अब इस योजना से भगवान राम को जोड़ा जा रहा है, राजनीति में भगवान को प्रत्यक्ष रूप से शामिल करने की जो कोशिश की जा रही है उसे कहीं से भी उचित नहीं माना जा सकता है। भगवान राम को राजनीति में घसीटना भगवान राम के नाम को बदनाम करने जैसा है। इस दिशा में भी सभी को सोचना होगा। ईएमएस / 18 दिसम्बर 25