ज़रा हटके
21-Dec-2025
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बर्न (ईएमएस)। 700 साल पुराने पिजोल ग्लेशियर को साल 2019 में स्विट्जरलैंड में विदाई दी जा रही थी, जो जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ चुका था। इस पल ने दुनिया को भावुक भी किया और डराया भी। सैकड़ों लोग काले कपड़ों में इकट्ठा हुए, शोक संदेश पढ़े गए और फूल चढ़ाए गए। यह प्रतीकात्मक घटना आने वाले समय की एक झलक थी। अब वैज्ञानिकों की नई रिसर्च बताती है कि यह तो सिर्फ शुरुआत थी और आने वाले दशकों में ग्लेशियरों का विनाश अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचने वाला है। ताजा अध्ययन के मुताबिक दुनिया तेजी से ‘पीक ग्लेशियर एक्सटिंक्शन’ की ओर बढ़ रही है। इसका मतलब है वह समय, जब हर साल सबसे ज्यादा संख्या में ग्लेशियर हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। ईटीएच ज्यूरिख के वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के ग्लेशियरों के आंकड़ों और कंप्यूटर मॉडल्स के आधार पर यह चेतावनी दी है कि अगर हालात नहीं सुधरे, तो इस सदी के मध्य तक हर साल करीब 4,000 ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। यह संख्या इतनी बड़ी है कि इसे यूरोपियन आल्प्स के सभी ग्लेशियरों के एक ही साल में खत्म हो जाने के बराबर माना जा रहा है। रिसर्च में बताया गया है कि किसी ग्लेशियर को तब ‘मृत’ माना जाता है, जब उसका क्षेत्रफल बेहद छोटा रह जाए या वह अपने मूल आयतन का एक प्रतिशत से भी कम बचा हो। छोटे ग्लेशियर सबसे पहले खत्म हो रहे हैं और यह प्रक्रिया अब तेज होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सेंट्रल यूरोप, अमेरिका, कनाडा, एंडीज, अफ्रीकी पर्वत श्रृंखलाएं और सेंट्रल एशिया के कई इलाके 2040 से पहले ही अपने आधे से ज्यादा ग्लेशियर खो सकते हैं। अध्ययन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि धरती कितनी गर्म होती है। अगर किसी तरह वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर लिया गया, तब भी 2041 के आसपास हर साल करीब 2,000 ग्लेशियर खत्म होंगे। लेकिन अगर तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, तो 2055 के आसपास विनाश अपने चरम पर होगा और हर साल 4,000 ग्लेशियर गायब हो जाएंगे। यानी जितनी देरी से पीक आएगा, तबाही उतनी ही ज्यादा होगी, क्योंकि उस स्थिति में बड़े-बड़े ग्लेशियर भी पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। यूरोपियन आल्प्स को इस संकट का सबसे पहला और सबसे बड़ा झटका लगने वाला है। मौजूदा नीतियों के तहत अगर तापमान 2.7 डिग्री बढ़ा, तो 2100 तक सेंट्रल यूरोप में सिर्फ तीन प्रतिशत ग्लेशियर बचेंगे। स्विट्जरलैंड पहले ही कुछ दशकों में हजार से ज्यादा ग्लेशियर खो चुका है। रॉकी माउंटेन्स, एंडीज और सेंट्रल एशिया में भी 90 प्रतिशत से ज्यादा ग्लेशियरों के खत्म होने की आशंका जताई गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर सिर्फ बर्फ के ढेर नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के सबसे स्पष्ट संकेत हैं। इनके खत्म होने का मतलब पानी का गंभीर संकट, पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था का पतन और सदियों पुरानी सांस्कृतिक पहचान का लुप्त होना है। सुदामा/ईएमएस 21 दिसंबर 2025