राष्ट्रीय
25-Dec-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। देश को झकझोर देने वाले उन्नाव मामले की पीड़िता एक बार फिर गहरे सदमे और भय के साये में है। हाल ही में उच्च न्यायालय द्वारा मुख्य आरोपी और पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत दिए जाने के फैसले ने पीड़िता के उन जख्मों को फिर से कुरेद दिया है, जो वर्षों के संघर्ष के बाद भी नहीं भरे थे। पीड़िता का कहना है कि यह आदेश उसके लिए किसी बड़े मानसिक आघात से कम नहीं है, जिसने उसे और उसके परिवार को असुरक्षा के गहरे दलदल में धकेल दिया है। अदालती कार्यवाही के दौरान के अपने अनुभव साझा करते हुए पीड़िता ने बताया कि जब वह न्यायालय में मौजूद थी, तो वह विरोध करना चाहती थी, लेकिन भाषा की बाधा और कानूनी जटिलताओं के बीच उसकी आवाज दबकर रह गई। उसका कहना है कि अदालतों में होने वाली बहस अक्सर आम और गरीब लोगों की समझ से परे होती है, जिसके कारण उन्हें न्याय की प्रक्रिया और भी जटिल और डरावनी लगने लगती है। फैसले के बाद की मानसिक स्थिति का जिक्र करते हुए उसने भावुक होकर कहा कि एक पल के लिए उसके मन में आत्मघाती विचार भी आए, लेकिन अपने बच्चों और परिवार के भविष्य को देखते हुए उसने संघर्ष जारी रखने का फैसला किया। पीड़िता ने गंभीर आरोप लगाया कि आरोपी की जमानत की प्रक्रिया शुरू होते ही उसके परिवार और गवाहों की सुरक्षा में कटौती की जाने लगी है। उसका मानना है कि जब आरोपी रसूखदार और सत्ता से जुड़ा रहा हो, तो खतरा केवल जेल के भीतर से नहीं, बल्कि बाहर मौजूद उसके नेटवर्क और समर्थकों से भी होता है। पीड़िता ने सवाल उठाया कि उसके चाचा, जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया, वे वर्षों से जेल में हैं, जबकि जघन्य अपराध के आरोपी को राहत दी जा रही है। यह विडंबना न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है। हाल ही में दिल्ली के इंडिया गेट पर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसिया कार्रवाई पर भी पीड़िता ने तीखे सवाल किए। उसने आरोप लगाया कि शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद, पुलिस ने उसके साथ बदसलूकी की और उसे घसीटा गया। उसके शरीर पर मौजूद टांके और रॉड उसकी आपबीती की गवाही दे रहे थे, फिर भी प्रशासन का रवैया संवेदनहीन रहा। उसका कहना है कि उसे डराने और चुप रहने की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन वह अब पीछे हटने वाली नहीं है। भविष्य के प्रति अपनी चिंता जताते हुए पीड़िता ने कहा कि यह केवल उसकी लड़ाई नहीं है, बल्कि हर उस बेटी की सुरक्षा का सवाल है जो न्याय की उम्मीद में सिस्टम की ओर देखती है। उसने आशंका जताई कि अगर ऐसे मामलों में आरोपियों को जमानत मिलती रही, तो अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे और गवाह खुद को असुरक्षित महसूस करेंगे। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, पीड़िता ने देश की सर्वोच्च अदालत पर अपना अटूट विश्वास जताया है। उसने स्पष्ट किया कि जैसे ही न्यायालय के द्वार खुलेंगे, वह आरोपी की जमानत रद्द करने की याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। उसके लिए यह लड़ाई अब केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि अपनी गरिमा और न्याय की रक्षा का संकल्प बन चुकी है। वीरेंद्र/ईएमएस/25दिसंबर2025 ------------------------------------