भारतीय संस्कृति में देव पूजन में नैवेद्य का अत्यधिक महत्व है। देवालयों में आरती के समय नैवेद्य लगाया जाता है। इस नैवेद्य को भक्त दर्शनार्थियों के मध्य प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। विभिन्न देवताओं को अलग-अलग प्रकार के नैवेद्य समर्पित किए जाते हैं- १. श्रीगणेशजी- श्रीगणेशजी को मोदक विशेष रूप से प्रिय हैं। इन्हें इसीलिए मोदक का नैवेद्य लगाया जाता है। मोदक विभिन्न खाद्य सामग्रियों से निर्मित किए जाते हैं और उनकी आकृतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इन्हें पंचामृत, नारियल और सभी प्रकार के ऋतुफल समर्पित किए जाते हैं। श्रीगणेशजी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है। इन्हें दुर्वा चढ़ाई जाती है। २. शंकरजी- इन्हें सभी प्रकार के मिष्ठान्न का नैवेद्य अर्पित करते हैं। उज्जैन में महाकाल स्वरूप शंकरजी को लड्डू का नैवेद्य लगाया जाताहै। इस नैवेद्य के पैकेट मन्दिर के काउंटर पर विक्रय हेतु उपलब्ध रहते हैं। शंकरजी को भांग विशेष प्रिय है। फूलों में धतूरा और ऑक के पुष्प उन्हें चढ़ाए जाते हैं। भाँग से शृंगार भी किया जाता है। नारियल और पंचामृत तथा अभिषेक का विशेष महत्व है। ऋतुफल भी अर्पित किए जाते हैं। ३. हनुमानजी- हनुमानजी को सभी प्रकार की मिठाइयों का नैवेद्य लगाया जाता है किन्तु भुने चने, चिरोंजी, गुड़, नुक्ती इन्हें विशेष प्रिय हैं। नारियल भी इन्हें अर्पित किया जाता है। इन्हें सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है। रक्तवर्ण के पुष्प इन्हें विशेष प्रिय हैं। ४. श्रीकृष्ण भगवान- इन्हें माखन मिश्री विशेष प्रिय है। सभी प्रकार के मिष्ठान्न का नैवेद्य इन्हें अर्पित किया जाता है। नाथद्वारा में श्रीनाथजी, सावरियाजी आदि वैष्णव सम्प्रदाय के मंदिरों में लड्डू और ठोड़ का नैवेद्य विशेष महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण को तुलसी सर्वाधिक प्रिय है। तुलसी पत्र की माला इन्हें समर्पित की जाती है। नैवेद्य में पंचामृत भी महत्वपूर्ण है। ५. श्रीराम-सीता और लक्ष्मणजी- इन्हें सभी प्रकार के मिष्ठान्न और ऋतुफल का नैवेद्य लगाया जाता है। ऋतु फल समर्पित करते समय निम्नलिखित श्लोक बोला जाता है- इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।। ६. विष्णुजी- श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीसत्यनारायण भगवान ये सभी श्री विष्णुजी के ही अवतार हैं। इन्हें पंचामृत हलवा, तुलसी पत्र, नारियल, ऋतुफल समर्पित किए जाते हैं। नैवेद्य लगाते समय निम्नांकित श्लोक बोला जाता है- शर्करा खण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च। आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्य प्रतिगृह्यताम्।। नैवेद्य लगाते समय प्रतिदिन निम्नांकित पंक्तियाँ का भी उच्चारण किया जाता है- ú प्राणाय स्वाहा। ú अपानाय स्वाहा। ú समानाय स्वाहा। ú उदानाय स्वाहा। ú व्यानाय स्वाहा। ७. श्री लक्ष्मीजी- सभी प्रकार के मिष्ठान्न, पान, नारियल, खीर और घर में बनने वाले समस्त पकवानों का नैवेद्य के थाल को माता लक्ष्मीजी को समर्पित किया जाता है। इस नैवेद्य में तुलसी दल भी सम्मिलित किया जाता है। साल की धानी और शकर पट्टी का भी विशेष महत्व है। लक्ष्मीजी नैवेद्य की सुगन्ध ग्रहण कर खाद्य सामग्री को स्वादिष्ट बना देता है। नैवेद्य समर्पित करते समय निम्नांकित श्लोक बोलना चाहिए- नैवेद्यं गृह्यतां देवि! भक्ति मे ह्यचलां कुरु। ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गतिम्।। ८. नवरात्रि की नौ देवियां- इन नौ देवियों को चना, चिरोंजी, मिश्री, मूँगफली दाने, हलवा, खीर, पूरी आदि का नैवेद्य लगाया जाता है। कुछ देवियों को कुष्माण्ड, मदिरा का भोग भी लगाते हैं। नारियल तथा ऋतुफल तो सभी के लिए आवश्यक है। ९. वैष्णव देवी- इनके नैवेद्य में परमल धानी, सूखे सेवफल, चिरोंजी आदि का प्रमुख स्थान है। १०. सरस्वती माता- सभी भक्तों को बुद्धि और विद्या प्रदान करने वाली देवी माता सरस्वती हैं। वसन्त पंचमी के दिन इनके पूजन का विशेष महत्व है। इन्हें केशरिया रंग के व्यंजनों का नैवेद्य लगाया जाता है। केशरिया भात का विशेष महत्व है। श्वेत पुष्प, श्वेत वस्त्र, वीणा, पुस्तक आदि को ये धारण करती हैं। वसन्त पंचमी के दिन नन्हें बालक नव शिक्षार्थी सरस्वती माता का पूजन कर शिक्षा आरंभ करते हैं। ११. भैरवजी- इन्हें दाल बाटी, चूरमा तथा खिचड़े का भोग लगाया जाता है। कालभैरव के मन्दिर में मदिरा भी चढ़ाई जाती है। नारियल और अन्य मिष्ठान्न का नैवेद्य भी लगाया जाता है। १२. दत्तात्रय- ये अत्रि तथा अनसूया माता के पुत्र हैं। इन्हें केशरिया रंग के मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाया जाता है जैसे केशरिया पेड़े, केशरिया दूध, खीर हलवा, नैवेद्य में तुलसीदल, कमल के फूल आदि का विशेष महत्व है। दत्त जयंती पर अन्य नैवेद्य के साथ बेसन और ज्वार की रोटी का नैवेद्य लगता है। कमल के फूल का भी विशेष महत्व है। चमेली तथा सफेद फूल भी इन्हें प्रिय है। नैवेद्य लगाते समय यह श्लोक बोलते हैं- त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पयेत। ग्रहाण सम्मुखो भूत्वां प्रसीद परमेश्वर।। दक्षिण भारतीय मंदिरों में निम्न लिखित नैवेद्य समर्पित किए जाते हैं- १. तिरुपति बालाजी- लड्डू (घी, बेसन और मेवे से बने हुए) यह यहाँ का प्रसिद्ध नैवेद्य है। दही और चावल से बना नैवेद्य लगभग सभी मंदिरों में चढ़ाया जाता है। २. केरल- अयप्पा मंदिर में अरवण और पायसम (खीर) का नैवेद्य प्रसिद्ध है। ३. तमिलनाडु- कांचीपुरम के वरदराज पेरूमल मंदिर में एक विशेष प्रकार की इडली का नैवेद्य चढ़ाया जाता है। इडली को सूखे पत्ते में बनाया जाता है जो लम्बे आकार की होती है। ४. श्रीरंगम रंगनाथ स्वामी मंदिर में चावल, दूध, गुड़ और घी से बनाया जाने वाला खीर के समान नैवेद्य समर्पित किया जाता है। इसे अक्कर वादिसल कहते हैं। ५. मदुरै के पास मुनियांदी स्वामी मंदिर में कहा जाता है कि पुलाव का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कच्चे चावल और गुड़ से मीठा पकवान बनाया जाता है जिसे अधिरस कहते हैं। यह दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में चढ़ाया जाता है। ६. राघवेन्द्र स्वामी मठों में रवा, चीनी और केसर से बनी मिठाई जिसे केसरी कहा जाता है का नैवेद्य लगाया जाता है। दक्षिण भारतीय कई मंदिरों में उड़द दाल व चने से बने पकौड़े का भी नैवेद्य लगाया जाता है। भारतीय संस्कृति में भगवान के मंदिरों में समर्पित किए जाने वाले नैवेद्य की विभिन्न सामग्रियां होती हैं जिन्हें भक्तगण बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ ग्रहण करते हैं। ये नैवेद्य केवल खाद्य सामग्री ही नहीं है वरन् हमारे इष्टदेवों के आशीर्वाद प्राप्त करने की सर्वोत्तम सामग्री है। इससे हमें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, भक्ति का संचार होता है और ईश्वर के प्रति हमारी श्रद्धा दृढ़ होती है। नई पीढ़ी भी इन स्थानों पर पर्यटन, दर्शन के लिए जाती है और नई ऊर्जा, नवीन स्फूर्ति का संचार उनके तन मन में हो जाता है जिससे उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है। ईएमएस/26/12/2025