-क्या नए वैश्विक दौर की शुरुआत हो चुकी है? साल 2025 को इतिहास में उस मोड़ के रूप में याद किया जाएगा, जब टैरिफ़, व्यापार युद्ध और वैश्विक शक्ति संतुलन ने अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी। आज की वैश्विक आर्थिक स्थिति को यदि दो शब्दों में समेटा जाए, तो वह हैं- “वैश्विक पुनर्संरचना। यह पुनर्संरचना सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि राजनीति, तकनीक, संसाधनों और आम लोगों की जिंदगी तक गहराई से असर डाल रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ़ ने वैश्विक व्यापार को बड़ा झटका दिया। इन फैसलों से अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन कमजोर हुई, आयात-निर्यात प्रभावित हुआ और निवेशकों का भरोसा डगमगाया। नतीजतन, बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ अब अपने पुराने आर्थिक मॉडल छोड़कर नई रणनीतियाँ और वैकल्पिक साझेदारियाँ तलाश रही हैं। दुनिया में पुराने गठबंधन ढीले पड़ रहे हैं और नए समीकरण उभर रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अफ्रीका अब सिर्फ विकासशील महाद्वीप नहीं रहा। लिथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे खनिज संसाधनों के कारण अफ्रीका वैश्विक राजनीति और उद्योग का नया केंद्र बनता जा रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों, बैटरियों और रक्षा तकनीक में इन खनिजों की अहम भूमिका है। वहीं दूसरी ओर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने एक नई वैश्विक दौड़ शुरू कर दी है। अमेरिका, चीन, यूरोप और एशिया के देश तकनीक, डेटा, सेमीकंडक्टर और चिप निर्माण में बढ़त हासिल करने के लिए अरबों डॉलर निवेश कर रहे हैं। आने वाले समय में वही देश ताकतवर होंगे, जिनके पास तकनीक और डेटा पर नियंत्रण होगा। दुनिया के अधिकांश देश आज पहले से कहीं ज्यादा खर्च और कर्ज के दौर में हैं। रक्षा बजट बढ़ रहा है, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बड़े निवेश की जरूरत है और श्रम बाजार में कुशल कर्मचारियों की कमी भी गंभीर चुनौती बन चुकी है। सरकारों के सामने सवाल है की सीमित संसाधनों को रक्षा, सामाजिक कल्याण, जलवायु नीति या तकनीकी विकास में कैसे बाँटा जाए? इन वैश्विक बदलावों की सबसे बड़ी कीमत आम नागरिक चुका रहे हैं। महंगाई, ऊँची ब्याज दरें, टैक्स का दबाव और रोजगार की अनिश्चितता ने लोगों की जिंदगी कठिन बना दी है। खाद्य पदार्थों से लेकर आवास तक, हर चीज़ महंगी होती जा रही है। वैश्विक आर्थिक फैसले अंततः जनता की जेब और भविष्य पर सीधा असर डाल रहे हैं। 2026 वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अनिश्चितता, प्रतिस्पर्धा और पुनर्गठन का साल होगा। जो देश तकनीक, प्राकृतिक संसाधनों और कूटनीति के बीच संतुलन बना पाएंगे, वही इस नए दौर में आगे निकलेंगे। बाकी देशों के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण जरूर होगा, लेकिन साथ ही परिवर्तन और नए अवसरों का द्वार भी खोल सकता है। संक्षेप में, 2026 वह साल साबित हो सकता है जब दुनिया की आर्थिक दिशा स्थायी रूप से बदलती दिखेगी। जहाँ शक्ति, व्यापार और विकास की नई परिभाषा लिखी जाएगी और वैश्विक व्यवस्था पहले जैसी कभी नहीं रहेगी।