लेख
27-Dec-2025
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महाराज दशरथजी ने ताड़का व अन्य राक्षसों के वध तथा महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए श्रीराम-लक्ष्मण को उन्हें सौंप दिया। श्रीरामचरित मानस में ऐसा वर्णन है कि मार्ग में चले जाते समय मुनि ने ताड़का को दिखाया। शब्द सुनते ही वह क्रोध करके दौड़ी। श्रीरामजी ने एक ही बाण से उसके प्राण हर लिए और उसको निजपद (अपना दिव्यस्वरूप) दिया। तब रिषि निज नाथहिं जियँ चीन्ही। बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही।। श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड २०९-४ तब महर्षि विश्वामित्र ने प्रभु (श्रीराम) को मन में विद्या का भण्डार समझते हुए भी उन्हें (लीला को पूर्ण करने के लिए) ऐसी विद्या दी, जिससे भूख-प्यास न लगे और शरीर में अतुलित बल और तेज का प्रकाश हो। इस प्रकार मानस में इस विद्या का अत्यन्त ही संक्षिप्त वर्णन देखा गया है किन्तु वाल्मीकि रामायण में इस विद्या (शक्ति) को ताड़का वध के उपरान्त दी। महर्षि वसिष्ठजी ने दशरथजी को समझाया कि महर्षि कौशिक (विश्वामित्र) स्वयं भी राक्षसों का संहार करने में समर्थ है किन्तु ये आपके पुत्र का कल्याण चाहते हैं अत: यहाँ आकर आपसे याचना कर रहे हैं। महर्षि वसिष्ठ के ये वचन से दशरथजी का मन प्रसन्न हो गया। तदनन्तर दशरथजी ने पुत्र का माथा सूँघकर अत्यन्त प्रसन्नचित्त हो उन्हें विश्वामित्र को सौंप दिया। आगे-आगे विश्वामित्र उनके पीछे श्रीराम तथा उनके पीछे लक्ष्मण वन को जा रहे थे। दोनों भाई श्रीराम और लक्ष्मण वस्त्र और आभूषणों से अच्छी तरह अलंकृत थे। उनके हाथों में धनुष थे। उनके कटि प्रदेश में तलवारेंÓ लटक रही थी। अयोध्या से डेढ़ योजन दूर जाकर सरयू नदी के दक्षिणी तट पर विश्वामित्र ने मधुर वाणी में श्रीराम को सम्बोधित किया और कहा वत्स राम! अब सरयू जल से आचमन करो। इस आवश्यक कार्य में विलम्ब न हो। मंत्रग्रामं गृहाण त्वं बलामतिबलां तथा। न श्रमो न ज्वरो वा ते न रुपस्य विपर्यय:।। वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग २२-१३ बला और अतिबला नाम से प्रसिद्ध इस मंत्र समुदाय को ग्रहण करो। इसके प्रभाव से तुम्हें कभी श्रम (थकावट) का अनुभव नहीं होगा। ज्वर (रोग) या चिन्ताजनित (कष्ट) नहीं होगा। तुम्हारे रूप में किसी प्रकार का विकार या उलटफेर नहीं होने पायेगा। इतना ही नहीं सोते समय अथवा असावधानी की अवस्था में भी राक्षस तुम्हारे ऊपर आक्रमण नहीं कर सकेंगे। इस पृथ्वी पर बाहुबल में तुम्हारी समानता करने वाला कोई न होगा। अनघ! सौभाग्य चातुर्य ज्ञान और बुद्धि सम्बन्धी निश्चय में तथा किसी के प्रश्न का उत्तर देने में भी कोई तुम्हारी तुलना नहीं कर सकेगा। इन दोनों विद्याओं के प्राप्त हो जाने पर कोई भी तुम्हारी तुलना नहीं कर सकेगा। इन दोनों विद्याओं के प्राप्त हो जाने पर कोई भी तुम्हारी समानता नहीं कर सकेगा क्योंकि ये बला और अतिबला नामक विद्याएँ सब प्रकार के ज्ञान की माता (जननी) है। क्षुत्पिपासे न ते राम भविष्येते नरोत्तम। बलामतिबला चैव पठतस्तात राघव।। गृहाण सर्वलोकस्य गुप्तये रघुनन्दन। वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग २२-१८ हे वरश्रेष्ठ श्रीराम! तात रघुनन्दन! बला और अतिबला का अभ्यास कर लेने पर तुम्हें भूख-प्यास का भी कष्ट नहीं होगा। अत: रघुकुल को आनन्दित करने वाले राम! तुम सम्पूर्ण जगत् की रक्षा के लिए इन दोनों विद्याओं को ग्रहण करो। इन दोनों विद्याओं का अध्ययन कर लेने पर इस पृथ्वी पर तुम्हारे यश का विस्तार होगा। ये दोनों विद्याएँ ब्रह्माजी की तेजस्विनी पुत्रियाँ हैं। हे राम! मैंने इन दोनों को तुम्हें देने का विचार किया है। राजकुमार! तुम्हीं इनके लिए योग्य पात्र हो। यद्यपि तुम में इस विद्या को प्राप्त कहने योग्य बहुत से गुण है अथवा सभी उत्तम गुण विद्यमान है, इस बात में कोई संशय नहीं है तथापि मैंने तपोबल से इनका अर्जन किया है। अत: मेरी तपस्या से परिपूर्ण होकर ये तुम्हारे लिये बहुरुपिणी सिद्ध होगी। अनेक प्रकार के फल प्रदान करेगी। ततो रामो जलं स्पृष्द्वा प्रहष्टवदन: शुचि:। प्रतिजग्राह ते विद्ये महर्षेर्भावितात्मन:। वाल्मीकिरामायण बालकाण्ड सर्ग २२-२१/१/२ तब श्रीराम आचमन करके पवित्र हो गये। उनका मुख प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने उन शुद्ध अन्त:करण वाले महर्षि से दोनों विद्याएँ ग्रहण कीं। तदनन्तर श्रीराम ने विश्वामित्र की सारी गुरुजनोचित सेवाएँ करके हर्ष का अनुभव किया। फिर वे तीनों वहाँ सरयू के तट पर रात में सुखपूर्वक रहे। राम-लक्ष्मण उस समय वहाँ तृण की शय्या पर जो उनके योग्य नहीं थी सोये। महर्षि विश्वामित्र अपनी वाणी द्वारा उन दोनों के प्रति लाड़-प्यार-स्नेह प्रकट करते थे। इसमें उन्हें वह रात बड़ी सुखमयी सी प्रतीत हुई। ईएमएस/27/12/2025