27-Dec-2025
...


नई दिल्ली,(ईएमएस)। राज्यसभा में पेश किए गए नवीनतम आंकड़ों ने विदेशों में रह रहे भारतीयों की स्थिति को लेकर एक महत्वपूर्ण तस्वीर पेश की है। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025 के दौरान दुनिया के 81 देशों से कुल 24,600 से अधिक भारतीय नागरिकों को निर्वासित (डिपोर्ट) कर वापस स्वदेश भेजा गया है। हैरान करने वाली बात यह है कि भारतीयों के निर्वासन के मामले में सबसे बड़ी संख्या अमेरिका की नहीं, बल्कि सऊदी अरब की रही है, जहां बीते 12 महीनों में 11,000 से अधिक भारतीयों को बाहर निकाला गया। निर्वासन के इन आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि खाड़ी देशों, विशेषकर सऊदी अरब से इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों को वापस भेजने के पीछे कई प्रशासनिक और कानूनी कारण रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से वीजा या निवास (रेजीडेंसी) की अवधि समाप्त होने के बाद भी वहां रुकना, वैध वर्क परमिट के बिना काम करना, स्थानीय श्रम नियमों का उल्लंघन, अपने मूल नियोक्ताओं को छोड़कर अन्यत्र काम करना और विभिन्न दीवानी या आपराधिक मामलों में संलिप्त होना शामिल है।सऊदी अरब के बाद अमेरिका दूसरा ऐसा देश है जहां से बड़ी संख्या में भारतीयों को निकाला गया। पिछले एक साल में अमेरिका से 3,800 भारतीयों को वापस भेजा गया, जिनमें से अधिकांश निजी कंपनियों के कर्मचारी थे। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में यह संख्या पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक है, जिसका मुख्य कारण वहां के प्रशासन द्वारा दस्तावेजों, वीजा स्थिति और कार्य प्राधिकरण (वर्क ऑथराइजेशन) की कड़ी जांच और प्रवासन नियमों में बरती गई सख्ती है। अमेरिका के भीतर भी वाशिंगटन डीसी से 3,414 और ह्यूस्टन से 234 भारतीयों को निर्वासित किया गया। अन्य प्रमुख देशों में म्यांमार से 1,591, मलेशिया से 1,485, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से 1,469 और बहरीन से 764 भारतीयों को वापस भेजा गया है। प्रवासियों के कल्याण के लिए काम करने वाले विशेषज्ञों और सलाहकार समितियों का कहना है कि खाड़ी देशों में जाने वाले भारतीयों में एक बड़ा हिस्सा कम कुशल श्रमिकों का होता है। ये लोग अक्सर एजेंटों के माध्यम से निर्माण क्षेत्र, देखभाल (केयरटेकर) या घरेलू काम के लिए विदेश जाते हैं। कई मामलों में ये श्रमिक स्थानीय कानूनों और नियमों से अनजान होते हैं, जो उनके लिए महंगा साबित होता है। कुछ मामलों में अतिरिक्त पैसा कमाने के लालच में नियमों का उल्लंघन करना या छोटे-मोटे अपराधों में फंस जाना भी उनके निर्वासन का कारण बनता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह अत्यंत आवश्यक है कि श्रमिकों को विदेशी धरती पर जाने से पहले वहां के कड़े नियमों और वीजा की समयसीमा के बारे में प्रशिक्षित किया जाए। निर्वासन का प्रभाव केवल श्रमिकों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि भारतीय छात्रों को भी इसका सामना करना पड़ा। आंकड़ों के अनुसार, 2025 में भारतीय छात्रों को सबसे अधिक संख्या में ब्रिटेन से वापस भेजा गया, जहां 170 छात्रों को स्वदेश लौटना पड़ा। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया से 114, रूस से 82 और अमेरिका से 45 भारतीय छात्रों को निर्वासित किया गया। यह स्थिति दर्शाती है कि विदेशी धरती पर रहने के लिए वीजा नियमों का पालन करना और अपनी कानूनी स्थिति को अपडेट रखना कितना अनिवार्य हो गया है। प्रवासन विशेषज्ञों का सुझाव है कि वीजा विस्तार के विकल्प हमेशा मौजूद रहते हैं, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण लोग अनजाने में निर्वासन की स्थिति तक पहुँच जाते हैं। वीरेंद्र/ईएमएस/27दिसंबर2025