राष्ट्रीय
27-Dec-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले गिग वर्कर्स यानी डिलीवरी पार्टनर्स ने नए साल के जश्न के बीच अपनी मांगों को लेकर बड़े आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। अमेजन, जोमैटो, स्विगी और ब्लिंकिट जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स से जुड़े लाखों डिलीवरी पार्टनर्स ने 31 दिसंबर 2025 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। 25 दिसंबर को हुई सांकेतिक हड़ताल की सफलता के बाद तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन और इफैट ने इस विरोध प्रदर्शन को और व्यापक बनाने का निर्णय लिया है। यदि यह हड़ताल सफल रहती है, तो साल की आखिरी शाम मेट्रो और टियर-2 शहरों में फूड और ग्रॉसरी डिलीवरी सेवाएं पूरी तरह चरमरा सकती हैं। इस विरोध प्रदर्शन का मुख्य केंद्र एल्गोरिदम कंट्रोल और पारदर्शिता का अभाव है। यूनियन नेताओं का आरोप है कि ऐप आधारित सिस्टम बिना किसी स्पष्ट जानकारी के वर्कर्स का वेतन, टारगेट और इंसेंटिव तय करते हैं। अक्सर बिना किसी वैध कारण के कर्मचारियों की आईडी ब्लॉक कर दी जाती है और तकनीकी समस्याओं या गलत रूट की शिकायतों को सुनने वाला कोई प्रभावी तंत्र मौजूद नहीं है। वर्कर्स का कहना है कि जोखिम उनका है, जबकि नियम और शर्तें कंपनियां अपनी मर्जी से बदल देती हैं। यह डिजिटल अनिश्चितता श्रमिकों के लिए मानसिक और आर्थिक तनाव का कारण बन गई है। विरोध की एक बड़ी वजह 10-मिनट डिलीवरी जैसे अल्ट्रा-फास्ट मॉडल भी हैं। डिलीवरी पार्टनर्स का तर्क है कि चंद मिनटों में सामान पहुँचाने की होड़ उनकी जान जोखिम में डाल रही है। कड़ी डेडलाइंस के दबाव में उन्हें सड़कों पर तेज गाड़ी चलाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। यूनियनों ने मांग की है कि ऐसे जोखिम भरे बिजनेस मॉडल को तुरंत बंद किया जाए और कर्मचारियों को फिक्स्ड ब्रेक, उचित स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए। आंकड़ों के अनुसार, लंबे घंटों तक काम करने के बावजूद इन कर्मचारियों की वास्तविक आय में गिरावट आई है, जिससे उनके लिए बुनियादी जीवनयापन भी कठिन हो गया है। गिग वर्कर्स के शोषण का यह मुद्दा अब राजनीतिक गलियारों तक भी पहुँच गया है। हाल ही में राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने एक डिलीवरी एजेंट के उदाहरण का हवाला देते हुए संसद में चिंता जताई थी। उन्होंने बताया था कि कैसे एक एजेंट 15 घंटे काम करने के बाद भी बमुश्किल 762 रुपये कमा पाता है, जो प्रति घंटे मात्र 52 रुपये के आसपास है। उन्होंने इसे प्रणालीगत शोषण करार देते हुए कहा था कि भारत कम वेतन और अत्यधिक बोझ वाले श्रमिकों के सहारे अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था का निर्माण नहीं कर सकता। 31 दिसंबर की हड़ताल के माध्यम से श्रमिक यूनियनें सरकार और कंपनियों को यह संदेश देना चाहती हैं कि अब उनके अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। वीरेंद्र/ईएमएस/27दिसंबर2025