राज्य
31-Dec-2025
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- स्वच्छता के तमगे के नीचे दबी संवेदनाएं, भागीरथपुरा बना सिस्टम की विफलता का प्रतीक सौरभ जैन अंकित इंदौर (ईएमएस)। देश के सबसे स्वच्छ शहर का ताज पहने इंदौर को आज उसी ताज ने कटघरे में खड़ा कर दिया है। चमचमाती सड़कों, रंगी हुई दीवारों और पुरस्कारों की चमक के पीछे भागीरथपुरा की गलियों में एक ऐसा सच बह रहा था, जो नालियों से नहीं, सीधे नलों से लोगों के शरीर में ज़हर घोल रहा था। दूषित पानी पीने से स्थानीय लोगों के मुताबिक अब तक 8 मौतें हो चुकी हैं, जबकि प्रशासन की फाइलों में यह संख्या सिर्फ 3 है। अस्पतालों में 111 से ज्यादा लोग भर्ती हैं, लेकिन आंकड़ों की इस खींचतान में सबसे सस्ता इंसान की जान साबित हुई। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मामले को “गंभीर” मानते हुए कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया। यह कार्रवाई जरूरी थी, लेकिन सवाल यह है कि क्या सस्पेंशन से उन घरों में बुझा चूल्हा फिर जल जाएगा, जहां मौत ने दस्तक दे दी? क्या आदेशों से उन माताओं की पीड़ा कम होगी, जिन्होंने अपने बच्चों को अस्पतालों के चक्कर में खो दिया? सबसे बड़ा सवाल यह है कि भागीरथपुरा कोई अनाथ इलाका नहीं है। यह वही इंदौर है, जहां सत्ता के लगभग सभी केंद्र मौजूद हैं। नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय खुद इसी शहर के रहने वाले हैं और यह इलाका उन्हीं की विधानसभा के अंतर्गत आता है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी सत्ता के बेहद करीबी माने जाते हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि सब कुछ होते हुए भी भागीरथपुरा बेसहारा रह गया? यहां बीमारी नालियों से नहीं, नलों से आई। पीने का पानी शौचालय की लाइनों से होकर घरों तक पहुंचता रहा। बदबूदार पानी लोगों ने मजबूरी में पिया, और फिर उल्टी-दस्त, बुखार और मौत का सिलसिला शुरू हो गया। शिकायतें लिखी गईं, गुहार लगाई गई, लेकिन नगर निगम की नींद नहीं खुली। शायद सिस्टम को मौतों की संख्या पूरी होने का इंतजार था। हैरानी की बात यह है कि अगस्त महीने में नई पानी की लाइन के लिए टेंडर जारी हो चुका था। चार एजेंसियां लाइन में थीं। फाइलें दफ्तरों में मौजूद थीं। लेकिन काम नहीं हुआ। फाइलें तब तक बंद रहीं, जब तक चिताएं जलने नहीं लगीं। जैसे ही मौतों की खबर सुर्खियों में आई, अचानक टेंडर खुल गया, जांच बैठ गई और अफसर सस्पेंड हो गए। सिस्टम ने वही किया, जो वह हमेशा करता है, देर से, लेकिन दिखावे के साथ। सबसे मार्मिक और व्यंग्यात्मक तस्वीरें तब सामने आईं, जब लोग अस्पतालों में तड़प रहे थे और क्षेत्रीय पार्षद कमल वाघेला का झूला झूलते वीडियो वायरल हुआ साथ ही, जलकार्य विभाग के प्रभारी बबलू शर्मा का आयोजन में खाना परोसते फोटो सामने आया। एक तरफ मौत, दूसरी तरफ उत्सव। यही शायद हमारे सिस्टम की सबसे सच्ची तस्वीर है। इंदौर भले ही स्वच्छता में नंबर-1 हो, लेकिन भागीरथपुरा ने बता दिया कि चमकते तमगों के पीछे संवेदनाएं कब की दम तोड़ चुकी हैं। जब मंत्री यहीं हैं, मेयर यहीं हैं, अफसर यहीं हैं तो, फिर लोग क्यों मरते रहे? और जिम्मेदार झूला क्यों झूलते रहे? यह सिर्फ भागीरथपुरा की कहानी नहीं है, यह उस व्यवस्था का आईना है, जहां जवाबदेही से पहले आयोजन जरूरी हो जाते हैं और इंसान की जान जान से पहले फाइलें।