ज़रा हटके
04-Feb-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। मस्कीटोफिश और गुप्पी मछलियों को विभिन्न राज्यों के जलाशयों में छोड़े जाने से जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पडा है। यह दावा किया गया है एक याचिका में, जिसकी आजकल खूब चर्चा हो रही है। इन प्रजाति की मछलियों को मच्छर नियंत्रण के लिए जलाशयों में छोडा जाता है। याचिका में दावा किया गया है कि इन मछलियों ने स्थानीय जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरे प्रभाव डाले हैं, जिससे देशी मछलियों की प्रजातियों को भोजन की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) ने मस्कीटोफिश और गुप्पी को आक्रामक और विदेशी घोषित किया है, जिसके चलते इन मछलियों की प्रजातियाँ देशी पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा कर रही हैं। मस्कीटोफिश को असम, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश के जलाशयों में छोड़ा गया था, जबकि गुप्पी मछलियाँ महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब और ओडिशा में छोड़ी गईं। इन मछलियों को मच्छरों की संख्या को नियंत्रित करने के उद्देश्य से जलाशयों में डाला गया था, लेकिन याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन मछलियों ने जलाशयों के पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा कर दिया है, जिससे स्थानीय मछलियों की प्रजातियाँ प्रभावित हो रही हैं। इस मामले पर चिंता जताते हुए याचिका में यह भी बताया गया कि कई देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने मस्कीटोफिश पर प्रतिबंध लगाया है, क्योंकि इसे आक्रामक विदेशी प्रजाति के रूप में माना गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, मस्कीटोफिश को दुनिया की 100 सबसे खराब आक्रामक विदेशी प्रजातियों में शामिल किया गया है। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने का नोटिस जारी किया है। इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण और राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र को प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया है। एनजीटी ने इस मामले की अगली सुनवाई 6 मई को तय की है, जब इस पर और विचार विमर्श किया जाएगा। सुदामा/ईएमएस 04 फरवरी 2025