लेख
09-Apr-2025
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जब जंगल कटते हैं, तो सिर्फ पेड़ नहीं गिरते, बल्कि सभ्यता की जड़ें भी हिलती हैं। कांचा गाचीबोवली का 400 एकड़ का जंगल भी अब इसी लालच, अदूरदर्शिता और पूंजीवादी षड्यंत्र का शिकार हो रहा है। इस विनाश की आहट को समझने के लिए बस एक प्रश्न उठता है कि क्या हमारे बच्चों का भविष्य महज कुछ अरबों-खरबों की परियोजनाओं के लिए बलिदान कर दिया जाएगा? हैदराबाद का कांचा गाचीबोवली क्षेत्र केवल एक जंगल नहीं है, यह एक संपूर्ण इको-सिस्टम है, जो न केवल शहर को ऑक्सीजन देता है, बल्कि 700 से अधिक पौधों की प्रजातियों, 237 पक्षी प्रजातियों और चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, भारतीय सितारा कछुए, मॉनिटर छिपकली और भारतीय रॉक पाइथन जैसे जीवों का आश्रयस्थल है। इन जीवों में से आठ प्रजातियाँ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत संरक्षित हैं। इस जंगल का विनाश केवल प्रकृति का नुकसान ही नहीं है, यह एक विध्वंसकारी कदम है, जो हैदराबाद के पर्यावरण को स्थायी रूप से क्षति पहुँचाएगा। आंकड़ों की बात करें तो भारत में 13,000 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र पर अतिक्रमण हो चुका है। यह क्षेत्रफल इतना बड़ा है कि उसमें नौ दिल्ली समा सकती हैं। यह महज संयोग नहीं है कि जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और पानी की कमी जैसी समस्याएँ दिन-प्रतिदिन भयावह होती जा रही हैं। जब हम पेड़ों की हत्या करते हैं, तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के फेफड़ों को काट रहे होते हैं। कांचा गाचीबोवली जैसे जंगलों का सफाया कर देने से न केवल स्थानीय जलवायु असंतुलित होगी, इससे शहर की तापमान वृद्धि, जल संकट और प्रदूषण भी अपने चरम पर पहुँचेंगे। इतिहास गवाह है कि जंगलों का विनाश सभ्यताओं के अंत का अग्रदूत होता है। चाहे वह मेसोपोटामिया हो, माया सभ्यता हो, या फिर सिंधु घाटी – जंगलों की समाप्ति के बाद वहाँ जीवन अस्थिर हो गया। फिर भी हम वही भूल दोहरा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम हम रोज़ देख रहे हैं। आसमान में धुएँ का घना आवरण, बढ़ता तापमान, अनियमित वर्षा, बेमौसम प्राकृतिक आपदाएँ। फिर भी, तथाकथित विकास की अंधी दौड़ में हम अपने फेफड़ों को धीरे-धीरे गैस-चैंबर में बदलने को तैयार हैं। क्या यह विकास है? सरकारें आती हैं, सरकारें जाती हैं, लेकिन जंगल कटने की प्रक्रिया जारी रहती है। जिन नेताओं को इस वन विनाश को रोकने के लिए आवाज़ उठानी चाहिए, वे या तो चुप हैं या फिर बिल्डरों, कॉर्पोरेट लॉबियों और ठेकेदारों की दलाली कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल 2025 तक कांचा गाचीबोवली जंगल के विनाश पर अस्थायी रोक तो लगा दी है, लेकिन क्या यह स्थायी राहत होगी? इतिहास बताता है कि जब तक जनता संगठित होकर आवाज़ नहीं उठाती, तब तक ऐसे निर्णय कागज़ी साबित होते हैं। इस जंगल की कटाई का सीधा असर न केवल वहाँ रहने वाले जीव-जंतुओं पर पड़ेगा, बल्कि यह स्थानीय समुदायों, किसानों और आम नागरिकों के जीवन को भी प्रभावित करेगा। यह जंगल शहर के हरित फेफड़े की तरह काम करता है, और यदि इसे समाप्त कर दिया गया, तो हैदराबाद की हवा में प्रदूषण का स्तर असहनीय हो जाएगा। याद कीजिए दिल्ली, जहाँ वायु गुणवत्ता सूचकांक हर साल खतरनाक स्तर पर पहुँच जाता है। क्या हैदराबाद भी उसी राह पर चलना चाहता है? यह केवल एक जंगल की लड़ाई नहीं है, यह पूरी मानवता की लड़ाई है। यह सवाल पर्यावरणविदों का नहीं, बल्कि हर नागरिक का होना चाहिए। आखिर किस हक से हम आने वाली पीढ़ियों की साँसों पर व्यापार कर रहे हैं? यह सिर्फ पौधों और पशुओं का मामला नहीं है, यह हमारे अपने अस्तित्व का सवाल है। सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय पक्षी मोर के करुण क्रंदन की वायरल वीडियो ने सबका ध्यान खींचा है, लेकिन क्या यह काफी है? जब तक हम सब मिलकर इस विनाश के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएँगे, तब तक ये क्रंदन सोशल मीडिया तक सीमित रह जाएँगे और जमीन पर जंगलों की लाशें बिछती रहेंगी। दरअसल जिस 400 एकड़ जंगल पर आधुनिक विकास की गाथा लिखने की तैयारी है। वह हैदराबाद यूनिवर्सिटी के बहुत नज़दीक है। ऐसे में क्या यह स्वीकार्य है कि ज्ञान के मंदिर में विनाश की प्रयोगशाला बनाई जाए? क्या विकास की परिभाषा कंक्रीट के जंगल खड़े करना भर रह गई है? हम यह क्यों भूल जाते हैं कि जब आखिरी पेड़ कट जाएगा, आखिरी नदी सूख जाएगी और आखिरी मछली मर जाएगी, तब हमें एहसास होगा कि पैसा पाकर जिंदा नहीं रहा जा सकता। समय आ गया है कि हम इस जंगलविनाश के खिलाफ एकजुट हों। सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के बावजूद यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हमें जंगलों को बचाने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी। हमें उन राजनेताओं से सवाल करने होंगे, जो केवल उद्योगपतियों के हित साधने में लगे हैं। हमें सरकार को यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि जंगल केवल कागजों पर नहीं, बल्कि धरती पर सुरक्षित रहने चाहिए। यदि आज हम नहीं जागे, तो कल हमारे बच्चे हमसे पूछेंगे – जब जंगल कट रहे थे, तब आप कहाँ थे? और हमारे पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं होगा। ईएमएस / 09 अप्रैल 25