प्रतिशोध की भावना दूसरों को अपमानित नहीं करती वल्कि सबसे पहले वह आपको अपमानित करती है - मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज - मान और अपमान में समभाव रखने वाला व्यक्ति कभी अपने आपको अपमानित महसूस नहीं करता भोपाल(ईएमएस)।प्रतिशोध की भावना दूसरों को अपमानित नहीं करती वल्कि सबसे पहले वह अपने आपको अपमानित करती हैमान अपमान से परे हटकर जो अपने जीवन को जीता है,वह कभी अपने आपको अपमानित महसूस नहीं करता उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज ने प्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये। प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया मुनि श्री के प्रवचन प्रतिदिन 8:30 से हो रहे है, मुनि श्री अपमान से बचाव और सुखी रहने का सूत्र देते हुये कहाकुछ बातों को नजर अंदाज करो और कुछ बातो को बरदाश्त करोगे तो आपका जीवन सुखी रहेगा उन्होंने कहा छोटी छोटी बातों से ही मन की प्रसन्नता नष्ट हो जाती है, किसी ने कुछ कहा तो उसका प्रतिवाद मत करो उसे नजरअंदाज करो जैसे आप बच्चे और पागल की बात को नजरअंदाज करते हो कि नहीं? उसे हंसकर टाल देते हो,ऐसे ही उपेक्षित बात को हंसकर टालने की आदत आपके अंदर आ गई तो फिर आपको कोई दुःखी नही कर सकता, मुनि श्री ने कहा कि अपने स्वरूप का बोध करो और विचार करो कि जो में हुं ही नहीं उन बातों को लेकर में क्यों उलझूं? मुझे दुःखी करने बाला भी कोई दूसरा नहीं,और सुखी रखने बाला भी दूसरा नहीं में स्वंय ही अपने भावों का कर्ता हुं, मान और अपमान में समभाव रखने वाला व्यक्ति कभी अपने आपको अपमानित महसूस कर ही नहीं सकता, हंसकर टालने की आदत तथा हर बात की प्रतिक्रिया दैने से बचो और प्रतिक्रिया दैना आवश्यक है तो उसे विवेक के साथ दो, प्रशंसा और उपेक्षा में समभाव रखने बाला व्यक्ती, दूसरों से अपने सम्मान की अपेक्षा नहीं रखता, वह अपनी मस्ती में जीता है,किसी से कोई प्रतिस्पर्धा या सम्मान की अपेक्षा नहीं करता मुनि श्री ने सलाह देते हुये कहा दुसरों की मान्यता पर अपना मूल्यांकन कभी मत करना, और कभी किसी अपमान मत करना और यदि कोई आपका अपमान करे तो उस अपमान को नजर अंदाज कर दैना, हमेशा दूसरों में दोषों के स्थान पर गुण ग्रहण का भाव रखोगे तो देखना कभी आप अपने आपको अपमानित महसूस नहीं करोगे एवं सभी से मित्रवत सम्वंध बने रहेंगे। कार्यक्रम का संचालन बाल ब्र. अशोक भैया ने किया।