विश्व में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण पर नजर रखने वाली संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल ( एफएटीएफ ) ने भले ही अभी पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में नहीं डाला है, लेकिन उसने अंततः 22 अप्रैल को पहलगाम की क्रूर आतंकवादी हमले की निंदा की है। ऐसा करते हुए एफएटीएफ ने भारत की तार्किक दलील पर ही मोहर लगायी है जो भारत की इस विषयक सफलता को द्योतक हैं। एफएटीएफ ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि ‘ऐसे घटनाक्रम बिना पैसे और आतंकवादियों के समर्थकों के बीच फंडों के स्थानांतरित करने के बगैर नहीं हो सकते।’ आखिरकार भारत की यह चिर-प्रतीक्षित मांग कि पाक को आतंकवाद के पोषण के लिये कटघरे में खड़ा किया जाए, इस मांग के सफलता की सीढ़ियां चढ़ने का ही संकेत हैं। भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद विश्व जनमत को पाकिस्तान की हकीकत बताने के जो सार्थक प्रयास किए थे, भारत के सांसदों एवं अफसरों के प्रतिनिधिमण्डल को पाक को बेनकाब करने के लिये विश्व के प्रमुख देशों में भेजा, वे फलीभूत होते नजर आ रहे हैं। एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में किसी देश को तब तक निगरानी में रखा जाता है, जब तक कि वह अपनी वित्तीय प्रणाली में पहचानी गई खामियों, त्रुटियों, विसंगतियों को ठीक नहीं कर लेता। पाकिस्तान निरंतर आतंकवाद को पोषण एवं प्रोत्साहन देने के लिये 2022 तक ग्रे लिस्ट में था, उसी वर्ष उसे ग्रे लिस्ट से हटाया गया, बावजूद पाकिस्तान ने कोई सुधार नहीं किया है और आतंकवादियों को न सिर्फ सुरक्षित पनाहगाह उपलब्ध करा रहा है, बल्कि आतंकवाद के वित्तपोषण जैसे आपराधिक कामों में भी खुद को शामिल करते हुए आतंकवाद की प्रयोगशाला बना हुआ है। एफएटीएफ ने फरवरी 2019 में पुलवामा आत्मघाती हमले की भी निंदा करते हुए ऐसे ही कठोर शब्दों का उपयोग किया था। लेकिन इस बार का अंतर यह है कि एफएटीएफ ने घोषणा की है कि ‘राज्य प्रायोजित आतंकवाद’ इसकी आगामी रिपोर्ट में आतंकवाद के वित्तपोषण मामलों की जांच का हिस्सा होगा। दरअसल, पहलगाम नरसंहार के बाद भारत लगातार पाक को फिर से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डालने की मांग करता रहा है। जो पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय ऋणों तक पहुंच को गंभीर रूप से सीमित कर देगा। दरअसल, पाकिस्तान गढ़े हुए तर्कों के आधार पर इस निगरानी संगठन एफएटीएफ को मनाने में आंशिक रूप से सफल रहा था कि वह धन शोधन और आतंकवाद वित्तपोषण से निपटने के लिये अपने सिस्टम में सुधार कर रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत के प्रबल विरोध के बावजूद इस्लामाबाद ने अंतर्राष्ट्रीय मद्रा कोष यानी आईएमएफ से एक अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली थी। हालांकि, इस बेलआउट पैकेज के साथ कई कड़ी शर्तों का सामना भी पाक को करना पड़ेगा। यूं भी यह अन्तर्राष्ट्रीय धन का गलत एवं अतिश्योक्तिपूर्ण इस्तेमाल देरसबेर विश्व के सामने आयेगा। भारत दुनिया के देशों को यह बताने और समझाने में कामयाब रहा है कि पाक न केवल आतंकवाद का समर्थन करता है, बल्कि वह आतंकवाद का पोषक भी है और वह आतंकवाद के लिए फंडिंग भी करता है। इस तरह इसे भारत की कूटनीतिक विजय कहा जा सकता है। क्योंकि एफएटीएफ का इतना बोल्ड बयान पाकिस्तान के मुंह पर तमाचा है। एफएटीएफ की ओर से जारी आधिकारिक बयान की गहराई को समझने की जरूरत है, कि “आतंकवादी हमले दुनिया भर में लोगों की जान लेते हैं, उन्हें अपंग बनाते हैं और भय पैदा करते हैं। यानि एफएटीएफ ने यह मान लिया है कि पहलगाम हमला आतंकवादी वित्त पोषण के कारण ही अमल में आया। एफएटीएफ का यह बयान भारत के लिए बहुत अहम है। ध्यान रहे कि एफएटीएफ, जी-7 देशों की ओर से स्थापित एक स्वतंत्र संस्था है, जो देशों की वित्तीय नीतियों का मूल्यांकन करती है। गौरतलब है कि वर्तमान में एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में 24 देशों का नाम है, जो धन शोधन, आतंकवादी वित्तपोषण और प्रसार वित्त पोषण के लिए निगरानी में हैं। यहां यह उल्लेखनीय एवं ध्यान देने वाली बात है कि पाक को कई बार एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डाला जा चुका है। इसे पहली बार 2008 में ग्रे लिस्ट में डाला गया था, लेकिन बाद में 2010 में इसे हटा लिया गया। इसके बाद, 2012 में पाक को फिर से इस लिस्ट में डाला गया और 2015 में इसे दुबारा हटा दिया गया। इसके बाद, पाक को जून 2018 में फिर से ग्रे लिस्ट में डाला गया था और अक्टूबर 2022 में इसे हटा लिया गया। लेकिन यह कुत्ते की ऐसी दूम है जिसे कितने की कड़े प्रावधानों में रखा जाये, यह टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है। उल्लेखनीय है कि एफएटीएफ ने वैश्विक नेटवर्क में 200 से अधिक क्षेत्रों के मूल्यांकन में योगदान देने वाले विशेषज्ञों का समर्थन करने के लिए आतंकवादी वित्तपोषण जोखिम पर मार्गदर्शन विकसित किया है। अहम बात यह है कि एफएटीएफ के सख्त एवं कठोर व्यवहार के बाद अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के यह समझ में आने लगा है कि पाकिस्तान एक असुरक्षित एवं आतंकवादी पोषक गंतव्य बनता जा रहा है। ऐसे में एफएटीएफ के दबाव और आर्थिक प्रतिबंधों की संभावना के कारण पाक की पहले से ही डांवाडोल अर्थव्यवस्था को और झटका लग सकता है। जी-7 शिखर बैठक 15 से 17 जून 2025 तक कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कनानास्किस में कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की मेज़बानी में हो रही है। इसमें जी-7 देशों के प्रमुखों के अलावा, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर ज़ेलेंस्की, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ जैसे नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक के दौरान जी-7 के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को पाक का सच और ऑपरेशन सिंधूर की सफलता के बारे में बताते हुए आतंकवाद के विरोध में संगठित होने के लिये वातावरण बना रहे हैं। भारत ने एफएटीएफ के बयान का स्वागत करते हुए कहा भी है कि यह वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट रुख की पुष्टि करता है। सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी एफएटीएफ की चेतावनी को गंभीर बताते हुए कहा कि यह पाक के लिए एक और बड़ा झटका है, जिससे उसकी वैश्विक छवि और कमजोर हो सकती है। गौरतलब है कि भारतीय अधिकारियों ने पिछले महीने पेरिस और वॉशिंगटन में एफएटीएफ प्रतिनिधियों से बैठक कर पाक के खिलाफ नई कार्रवाई की मांग की थी। भारत ने दुनिया को बताया कि कैसे पाक आतंकवाद की पाठशालाओं को स्वास्थ्य केंद्रों या स्कूलों के रूप में छिपा रहा था। पाक का मकसद था कि इससे दुनिया को आतंकवाद के प्रशिक्षण केंद्रों का पता नहीं चलेगा और वह वैश्विक संगठनों की सजा से बच जाएगा। दरअसल, पाक हुकमरान हमेशा से खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताकर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से मदद हासिल करने की फिराक में रहते हैं। भारत ने इस खतरे का हवाला देते हुए विश्व जनमत को हकीकत से अवगत कराने का सफल प्रयास किया है। अब यह एफएटीएफ के कर्ता-धर्ताओं के विवेक पर निर्भर करता है कि वे पाक के खतरनाक मंसूबों को कितनी जल्दी भांपने में कामयाब हो सकते हैं। एक ओर पाक आर्थिक बदहाली का हवाला देकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मदद की गुहार लगा रहा है, तो दूसरी ओर उसने अपनी रक्षा मद पर बीस प्रतिशत व्यय बढ़ा दिया है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान इस रक्षा बजट वृद्धि का सारा पैसा राष्ट्रीय सुरक्षा की बजाय आतंकवाद को पल्लवित करने पर खर्च करेगा। इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण आतंकवाद पोषण की स्थितियों में धन के किसी भी दुरुपयोग का पता लगाने के लिये उसके नियमित खर्च की निगरानी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को करनी चाहिए। (लेखक, पत्रकार, स्तंभकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 18 जून /2025