गुना (ईएमएस) । केवल गुरु के हाथ-पैर दबाना, उनके आगे-पीछे रहना ही उनकी सेवा नहीं है। उनकी आज्ञा का पालन करना ही उनकी सही सेवा वैयावृत्ति होती है। भगवान के पास तक पहुंचाने वाले गुरु होते हैं जो गुरु की आज्ञा में चलता है, वही ही गुरु की सही सेवा और वैयावृत्ति होती है। उनकी आज्ञा पालन ही महापूजा अर्चना होती है। उक्त धर्मोपदेश निर्यापक मुनिश्री योग सागरजी महाराज ने चौधरी मोहल्ला स्थित पाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर पर गुरु पूर्णिमा पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में दिए। इस अवसर पर मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए समझाया कि एक मुनिराज ने अपने गुरु का नाम छिपाकर कहा मेरे गुरु तो अरहंत भगवान, सिद्ध भगवान हैं। मूल जिनसे दीक्षा ली, जिनसे ज्ञान प्राप्त किया उन गुरु का नाम छिपाते ही उनकी कांती, प्रभावना और ज्ञान समाप्त हो गया। गुरु कैसे भी हो, पर भूलकर भी हमें उनका नाम नहीं छिपाना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि समयसार ग्रंथ को पढऩे से कुछ नहीं होगा। वीतरागी सर्वज्ञ ने जैसा उसमें कहा है उस अनुरूप आचरण करने से हम उन जैसे निग्र्रंथ बन सकते हैं। केवल गुरु के हाथ-पैर दबाना, उनके आगे-पीछे रहना, ह सेवा नहीं है। जैसा वह कहते हैं जो आज्ञा देते है उसका अक्षरश: पालन करना ही सच्ची सेवा होती है। इसके पूर्व गुरु पूर्णिमा का महिमा बताते हुए निर्मोह सागरजी महाराज ने कहा कि गुरु के उपकार को जीवन के आखिरी सांस तक भूलना नहीं चाहिए। जिनके जीवन में गुरु नहीं उनका जीवन शुरू नहीं। गुरु हमें मोक्ष पर चलने का रास्ता बताते हैं। जैसे सडक़ पर कौन सा शहर कितनी दूर है उस पत्थर पर लिखा रहता है वैसे ही गुरु जिस रास्ते पर चलकर आए हैं उस मार्ग को बताने वाले हमारे आराध्य मार्ग प्रशस्तकर्ता होते हैं। गुरु शब्द का अर्थ ही यह है जो अंधेरे से निकालकर उजाले में ले जाए, वहीं सच्चे गुरु होते हैं। मुनिश्री ने कहा कि हमारे जीवन में प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं जो संस्कार देकर हमें मंदिर में विराजे देव, शास्त्र और गुरु तक पहुंचाते हैं। हमें बोलना, चलना, खाना-पीना सिखाते हैं। शिक्षक हमारे अस्तित्व को बनाने वाले, ज्ञान देने वाले होते हैं। इसके बाद दीक्षा संयम व्रत नियम देने वाले हमारे निग्रंथ साधु होते हैं। जैसे दीपावली पर हम घर का कचरा साफ करते हैं वैसे ही हमारे दीक्षादाता गुरु हमारे अंदर के मित्थात्व रूपी कचरे को निकालकर समयक्त्व रूपी ज्ञान प्रकट करते हैं। गुरु हमारे अज्ञान को मिटाकर ज्ञान रूपी उजाला प्रकट करते हैं। गुरु हमें सखा की तरह भाई की तरह वात्सल्य देकर मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ाते हैं। ईएमएस/सुशील जैन/10जुलाई2025