लेख
07-Sep-2025
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भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में स्वास्थ्य सेवाएँ हमेशा से एक जटिल चुनौती रही हैं। सीमित संसाधन, बड़ी जनसंख्या, ग्रामीण-शहरी असमानता और स्वास्थ्य ढाँचे की कमजोर स्थिति ने लंबे समय तक इस क्षेत्र को अपेक्षित ऊँचाई तक पहुँचने से रोके रखा। इसके बावजूद हाल के वर्षों में शिशु मृत्यु दर में लगातार गिरावट दर्ज होना उत्साहजनक संकेत है। भारत के महापंजीयक द्वारा जारी आँकड़े बताते हैं कि आम लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में देश ने उल्लेखनीय कदम बढ़ाए हैं। देखने में यही आ रहा है कि एक दशक पहले जहाँ शिशु मृत्यु दर प्रति हजार जीवित जन्म पर 40 थी, वहीं अब यह घटकर 25 तक पहुँच गई है। यह 37.5 प्रतिशत की गिरावट केवल सांख्यिकीय उपलब्धि नहीं, इससे भी आगे योजनाओं और प्रयासों की सफलता का प्रमाण है। मातृ-शिशु स्वास्थ्य की प्राथमिकता 2014 से पहले भी मातृ-शिशु स्वास्थ्य और टीकाकरण से जुड़ी योजनाएँ मौजूद थीं, किंतु उनका लाभ अंतिम छोर तक सीमित रूप से ही पहुँच पाता था। मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद इन योजनाओं को नए दृष्टिकोण के साथ लागू किया। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान ने गर्भवती महिलाओं को निःशुल्क स्वास्थ्य जांच और चिकित्सकीय देखभाल की सुविधा दी। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना ने पहली बार गर्भधारण करने वाली महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान की, जिससे वे गर्भावस्था के दौरान पोषण और स्वास्थ्य के प्रति अधिक सजग हो सकें। इसी दिशा में जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जैसे प्रयासों ने सुरक्षित प्रसव की दर बढ़ाई और प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताओं को घटाया। नतीजतन, शिशु मृत्यु दर में लगातार कमी दर्ज हुई। आँकड़े बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में यह दर 44 से घटकर 28 और शहरी क्षेत्रों में 27 से घटकर 18 पर आ गई। यह बदलाव संकेत करता है कि स्वास्थ्य सेवाएँ अब गाँव-गाँव तक पहुँचने लगी हैं। टीकाकरण अभियान की निर्णायक भूमिका शिशु मृत्यु दर में गिरावट का सबसे अहम कारण टीकाकरण का व्यापक कवरेज है। 2017 में शुरू हुआ इंटेंसिफाइड मिशन इंद्रधनुष बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पूर्ण टीकाकरण को सुनिश्चित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। जहाँ पहले टीकाकरण की दर सीमित थी, वहीं अब यह 90 प्रतिशत से अधिक तक पहुँच चुकी है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने जो 200 करोड़ से अधिक टीके रिकॉर्ड समय में लगाए, भारत के संदर्भ में यह प्रयास स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ ही प्रशासनिक दक्षता का भी उदाहरण है। भारत की यह उपलब्धि वैश्विक स्तर पर सराही गई। यानी हम अब टीकाकरण अभियान की निर्णायक भूमिका में पहुंच चुके हैं, जिसके कि आज सार्थक परिणाम भी दिखाई देते हैं। मोदी सरकार ने 2018 में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर योजना शुरू कर 1.5 लाख से अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को आधुनिक सुविधाओं से लैस करने का लक्ष्य रखा। इन केंद्रों में अब सामान्य बीमारियों के इलाज के साथ-साथ टेली मेडिसिन, गैर-संक्रामक रोगों की जांच और आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की गई। ई-संजीवनी नामक डिजिटल टेलीमेडिसिन सेवा ने गाँव-गाँव तक डॉक्टरों से ऑनलाइन परामर्श की सुविधा पहुँचाई। लाखों लोग इस सेवा से लाभान्वित हुए और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच अधिक समावेशी बनी। यह तकनीकी प्रयोग स्वास्थ्य क्षेत्र में नया अध्याय जोड़ता है। इस प्रयास से भी बच्चोंँ की मृत्युम दर में भारी कमी आ सकी है। पोषण और स्वच्छता का योगदान शिशु मृत्यु दर घटने का एक बड़ा कारण पोषण योजनाओं का विस्तार है। राष्ट्रीय पोषण मिशन या ‘पोषण अभियान’ ने आंगनवाड़ी केंद्रों को मज़बूत किया और बच्चों व गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष योजनाएँ लागू कीं। पोषण ट्रैकर ऐप और जन-जागरूकता अभियानों ने पारदर्शिता व दक्षता को बढ़ाया। इसके साथ ही स्वच्छ भारत अभियान ने अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य सुधार में अहम योगदान दिया। खुले में शौच से मुक्ति और स्वच्छता की आदतों ने संक्रामक रोगों की रोकथाम में भूमिका निभाई। यही कारण है कि शिशु और मातृ स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार देखने को मिला। स्वास्थ्य पर निवेश और ढाँचागत सुधार स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2014 में स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का लगभग 1.2 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर 2 प्रतिशत से अधिक हो चुका है। हालाँकि यह वैश्विक औसत से अब थोड़ा कम है, किंतु सुधार की दिशा में महत्व पूर्ण कदम है। इससे बच्चोंव के स्वाशस्य्ेक हित में भारी इजाफा संभव हो सका है। वहीं, उल्लेहखित रूप से नई मेडिकल कॉलेजों की स्थापना, एम्स जैसे संस्थानों का विस्तार, नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती तथा डिजिटल हेल्थ मिशन की शुरुआत इस निवेश की मूर्त उपलब्धियाँ हैं। इनसे स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच और गुणवत्ता में सुधार हुआ है। ऐसे में यदि वर्तमान गति और प्रतिबद्धता बनी रही तो 2030 तक भारत न केवल सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करेगा बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व का भी उदाहरण बनेगा। समग्र रूप से देखें तो शिशु मृत्यु दर का 25 तक पहुँचना भारत की स्वास्थ्य यात्रा में ऐतिहासिक मील का पत्थर है। यह उपलब्धि केवल सरकारी नीतियों का परिणाम नहीं बल्कि समाज की जागरूकता और भागीदारी की भी गवाही देती है। केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए सुधारों ने इस विश्वास को मजबूत किया है कि यदि योजनाओं का सही दिशा में और प्रभावी क्रियान्वयन हो तो बड़े से बड़े लक्ष्य भी हासिल किए जा सकते हैं। आज जो दिखाई दे रहा है, वह यह है कि भारत अब ऐसे दौर में प्रवेश कर चुका है जहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ केवल इलाज तक सीमित नहीं बल्कि गरिमामय जीवन और सामाजिक समानता से जुड़ी हुई हैं। यही इस यात्रा का सबसे बड़ा संदेश है। भविष्य की दृष्टि से भारत का लक्ष्य स्पष्ट है। कुपोषण में उल्लेखनीय कमी, मातृ मृत्यु दर को न्यूनतम स्तर तक लाना और शिशु मृत्यु दर को 12 से नीचे लाना प्रमुख उद्देश्य हैं। वास्तदव में बच्चोंक के हित ये कदम आज के भारत की बहुत बड़ी सफलता है। (लेखिका मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्यो हैं) ईएमएस/07/09/2025