जीएसटी काउंसिल का ऐतिहासिक निर्णय। मोदी सरकार द्वारा 1 जुलाई 2017 में वेट टैक्स के बदले गुड्स एवं सर्विस टैक्स एक्ट 2016 के द्वारा जीएसटी कर लागू करने के बाद जीएसटी काउंसिल की 56 वीं बैठक (3 सितंबर 2025) में टैक्स ढांचे में बड़े बदलाव का निर्णय लिया गया। अब चार दरों (5%, 12%, 18%, 28%) की जगह निम्न श्रेणी निश्चित की गई। 5% मेरिट दर । 18% स्टैंडर्ड दर, और 40% डिमैरिट दर, विलासिता और हानिकारक और वस्तुओं पर। उक्त दरें 22 सितंबर 2025 से लागू होंगी सिर्फ डिमैरिट श्रेणी में रखे गए वस्तुओं को छोड़कर जिन पर कर लगाने की तारीख बाद में अलग से सूचित की जाएगी। राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में एक कदम और भाजपा और संघ की मूल नीति एक देश, एक विधान, एक निशान पर आधारित है इसे सफलतापूर्वक धरातल पर उतारा भी किया है। इसी विचार को जीएसटी मैं किया गया यह सुधार भी आगे बढ़ा रहा है। भाजपा की वन नेशन के सिद्धांत को लागू करने की विभिन्न क्षेत्रों की सूची निम्न अनुसार है जिस पर वाह या तो कार्य कर चुकी है या कर रही है। एक रैंक, एक पेंशन। एक पहचान पत्र : आधार। एक राशन कार्ड। एक पाठ्यक्रम व शिक्षा नीति। एक श्रम कानून । एक स्वास्थ्य बीमा योजना। एक मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड। एक कृषि बाजार। एक छात्रवृत्ति योजना। खेलो इंडिया योजना। यूनिफॉर्म सिविल कोड की पहल एवं एक देश, एक चुनाव की परिकल्पना। जीएसटी का सरलीकरण इसी श्रृंखला का अगला कदम है। यूपीए सरकार से एक कदम आगे।। यदि हम पीछे मुड़कर देखें तो वर्ष 2006 में यूपीए सरकार ने सबसे पहले पूरे भारत में एक कर, एक दर की योजना बनाई थी। 2010 से लागू करने का प्रयास, परंतु असफल रही। वर्ष 2009 में 13 वें वित्त आयोग ने एक दर 12% (6% जीएसटी + 6% सीएसटी) का सुझाव दिया। परंतु एक देश एक की नीति और सिद्धांतों की शुरू से ही वकालत करने वाली भाजपा के शासित राज्यों के विरोध और यूपीए सरकार की अस्थिरता के कारण योजना धरातल पर उतर नहीं पाई। अंततः 2017 में मोदी सरकार ने चार दरों वाला जीएसटी लागू किया। परंतु जीएसटी की मूल अवधारणा देने वाली कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी ने तब जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहकर विरोध किया था। लेकिन आज जीएसटी काउंसिल में कांग्रेस सरकारों की सहमति के बावजूद वित्त मंत्री के द्वारा उसी गब्बर सिंह टैक्स को कम करने के निर्णय का कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से हार्दिक स्वागत नहीं किया है, जो की दुर्भाग्यपूर्ण है। तथापि कुछ नेताओं और विपक्ष ने इसे देर से आया सही निर्णय जरूर ठहराया। आम जनता व मध्यम वर्ग को राहत : कई वस्तुएं सस्ती एक अनुमान के अनुसार उक्त करारोपण के ढांचे से लगभग 47000 करोड़ के राजस्व का नुकसान होने की आशंका है, प्रभाव स्वरूप राज्यों के राजस्व में भी हानि होगी। लेकिन भविष्य में टैक्स ग्रोथ, कर का आधार और व्यापक अनुपालन तथा पारदर्शिता से घाटा पूरा होगा। व्यापार करने में आसानी बढ़ेगी। भविष्य की राह वन नेशन, वन टैक्स, वन दर अभी अधूरा पेट्रोलियम उत्पाद (पेट्रोल, डीज़ल, गैस) अभी जीएसटी के बाहर। यदि इन्हें शामिल किया गया तभी एक देश, एक कर एक दर का सपना साकार होगा। निष्कर्ष वित्त मंत्री और जीएसटी काउंसिल का यह निर्णय स्वागत योग्य है। यह न केवल कर ढांचे को सरल करेगा, बल्कि मोदी सरकार की घोषित नीति वन नेशन, वन टैक्स की दिशा में एक मजबूत और निर्णायक कदम भी सिद्ध होगा। (लेखक कर सलाहकार एवं पूर्व बैतूल सुधार न्यास अध्यक्ष हैं) ईएमएस/08/09/2025