भारत की कर प्रणाली देश की आर्थिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बन चुका है। सरकार का यह तर्क कि टैक्स वसूलना देश के विकास और जनहित के लिए आवश्यक है। यह पूरी तरह सही प्रतीत नहीं होता है। असलियत यह है कि देश का टैक्स सिस्टम ना केवल जटिल है। बल्कि हर स्तर पर केन्द्र, राज्य, स्थानीय संस्थाओं एवं शुल्क के रूप में जिस तरह से टेक्स वसूल किया जा रहा है। उससे आम आदमी परेशान हो गया है। तरह-तरह के टेक्स आम नागरिक और व्यवसायी दोनों के लिए भारी बोझ बनता जा रहा है। भारत की टैक्स प्रणाली के नियम और कानून इस तरीके से बनाए गए हैं जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता है, सरकार के उच्च पदों पर बैठे नेता और अधिकारी कर प्रणाली का उपयोग भ्रष्टाचार और नागरिकों को दबाने के लिए करते हैं। विशेषकर मध्यम वर्ग और छोटे उद्यमी इस तंत्र की चपेट में आकर सदैव मानसिक और आर्थिक दबाव में रहते हैं। जिसके कारण उनकी कार्य क्षमता प्रभावित होती है। जीएसटी ने सभी की कमर तोड़ दी है। हाल ही में भारत की कर प्रणाली के संबंध में जो तथ्य सामने आया है, उससे स्पष्ट है, भारत में एक करोड़ रूपए कमाने वाला व्यक्ति अपने व्यवसाय या कमाई का लगभग आधे से ज्यादा कमाई को टैक्स और अन्य सरकारी शुल्क में भुगतान करना पड़ता है। भारत में यदि 1 करोड़ रूपए कमाते हैं, तो टैक्स, जीएसटी, मेंटेनेंस, रेंट, कर्मचारी वेतन व अन्य खर्चों के बाद आपके पास बड़ी मुश्किल से मात्र 35 लाख रूपए की बचत होती है। दूसरी ओर, दुबई जैसे देशों में सरकारी कर नाममात्र के है। जिसके कारण दुबई की आर्थिक प्रगति बड़ी तेजी के साथ हो रही है। इसका लाभ वहां की सरकार और आम जनता को समान रूप से मिल रहा है। दुबई जैसे देश में जो भी काम धंधा करके कमा रहा है। उसका पूरा पैसा उसके पास रहता है। वह अपनी मनमर्जी से खर्च करता है। उस खर्च पर टेक्स या सरकार की कोई दखलंदाजी नहीं होने से लोग बड़ी कमाई भी करते हैं, और कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च भी करते हैं। वहां पर लोगों का स्वाभिमान और आत्मविश्वास दोनों ही बना रहता है। भारत मे वर्तमान टैक्स प्रणाली के दुष्परिणाम के कारण, भारत की उच्च कमाई वाले उद्योगपति और व्यवसायी विदेश में निवेश करने लगे हैं। जिससे देश का रोजगार और निवेश लगातार कम हो रहा है। सबसे दुखद पहलू यह है कि सरकारी कर प्रणाली आम जनता की भलाई के लिए नहीं, बल्कि कारोबारियों से अधिक धन वसूलने के लिए डिजाइन की गई है। यहां नियम कानून कारोबारियों को दबाने और उनका शोषण करने के लिए सरकारी तंत्र द्वारा बनाए जा रहे हैं। सरकार की निगाह में कमाई करने वाले व्यक्ति, संस्थान पर इनकम टैक्स के छापे, फायर एनओसी, पुलिस एवं अन्य दमनकारी उपाय शुरू हो जाते हैं। जिनकी नौकरी अथवा किराए इत्यादि से कमाई है। उनसे भी तरह-तरह के टैक्स वसूल किए जाते हैं। टैक्स वसूल करने के बाद भी उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। उल्टे सरकार के अधिकारी और कर्मचारी नियमों के बल पर उनका आर्थिक शोषण समय-समय पर करते हैं। भारत में गरीब आदमी को भी सरकारी सुविधायें नहीं मिलती है। अस्पताल से लेकर सरकारी स्कूल तक में अच्छी सुविधा पाना आम नागरिकों के लिए आज भी सपना है। वर्तमान टैक्स सिस्टम से गरीब और अमीरों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। बड़े उद्योगपति और अमीर वर्ग जहां अपने पैसे लेकर विदेश की नागरिकता ले रहे हैं। भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेश भाग रहे हैं। वहीं आम जनता करों के बोझ से दबती जा रही है। पिछले 10 वर्षों में भारत की जनता बड़ी तेजी के साथ कर्जदार हुई है। आय से ज्यादा उसे खर्च करना पड़ रहा है। खर्च के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। इस प्रणाली ने देश के अंदरूनी आर्थिक एवं सामाजिक विकास को बाधित कर केवल सरकारी तंत्र को पोषित किया है। परिणाम स्वरूप, रोजगार के अवसर भारत में घटते जा रहे हैं। युवा पीढ़ी मानसिक तनाव और निराशा के सागर में गोते लगा रही है। समाज के सभी वर्गों में डर और भय का वातावरण बना हुआ है। भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश होने के बाद भी हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण टैक्स प्रणाली और सरकार का हस्तक्षेप है। लोगों के निजी जीवन में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। भारत को सशक्त राष्ट्र बनाना है, तो टैक्स सिस्टम में मूलभूत सुधार करना जरूरी है। सरल, पारदर्शी और निष्पक्ष टैक्स नीति अपनाई जाए। देश के व्यवसायी उत्साहित होकर देश में निवेश के साथ उद्यमशील बनकर रोजगार पैदा करें। दुबई जैसे देश से सबक लेते हुए भारत में सरकारी नियंत्रण कम से कम हों, नियम सीधे एवं सरल हों, जिनको आम आदमी समझ सके। सरकार को केवल सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सार्वजनिक व्यवस्था करने में ध्यान केन्द्रित करना होगा। नेता और सरकारी अधिकारी पदों का अपने निजी लाभ के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं। सभी की जवाबदेही तय होनी चाहिए। दुबई जैसे देश से भारत सबक ले। दुबई मुस्लिम राष्ट्र है, वहां पर दुनिया के सभी जाति और धर्म के लोग बिना किसी डर-भय के रह रहे हैं। जहां पीने का पानी भी नहीं था, आज वहां का विकास, रहन-सहन तथा वहां की कानून व्यवस्था एवं कानून ओर नियमों पर लोगों को जो विश्वास है। वहीं उसकी सफलता का कारण है। भारत इस तरह के बदलाव क्यों नहीं कर पा रहा है। भारत की प्रगति केवल शब्दों एवं नारों तक क्यों सीमित है। बाप कमाई पर तो हर कोई ऐश कर लेता है। आप कमाई से स्वयं का और देश का स्वाभिमान बढ़ता है। इस तथ्य का ध्यान रखना होगा। चीन ने पिछले 30 वर्षों में जो विकास किया है। उससे भी भारत को सबक लेना चाहिए। ईएएमस / 08 सितम्बर 25