क्या कश्मीर में अभी भी पाक परस्त मानसिकता विद्यमान है? और वे दिल से पाक के साथ है, यह गंभीर सवाल आजादी के बाद से आज तक कई बार उठाया गया है, जिसके जवाब की छोटी सी झलक आज एक ताजी घटना के माध्यम से मिली। पिछले दिनों कश्मीर की जगत प्रसिद्ध हजरतबल दरगाह के पास स्थित भवन की दीवार पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिन्ह कई सालों से अंकित था, उस पर किसी का ध्यान भी नहीं गया था, किंतु अचानक पिछले दिनों कुछ उन्मादी कश्मीरियों ने उसे पर हमला बोल दिया और उसे तोड़फोड़ कर वहां से हटा दिया, भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का भारत में ही यह अपमान शायद पहली बार देखने को मिला, जिसने मुगल काल की याद दिला दी। फिर सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने भी इस पर आश्चर्यचार्यजनक रूप से तोड़-फोड़ करने वालों का ही पक्ष लिया और कहा कि एक धार्मिक स्थल में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह की क्या जरूरत ? इस छोटी सी घटना ने यह उजागर कर दिया कि कश्मीरियों और वहां की सियासत में कितने प्रतिशत में भारतीय राष्ट्रीय भावना विद्यमान है। पिछले सालों में इस मसले पर कई बार कश्मीर में जनमत संग्रह किए जा चुके है और हर बार उनकी फाइनल रिपोर्ट निराशाजनक ही प्रप्त हुई है, हर बार ऐसा लगता है कि कश्मीरी दिल-दिमाग से अभी भी पाकिस्तान से ही जुड़े हुए हैं और मजबूरी वश भारतीयता स्वीकार रहें हैं, ऐसी घटनाएं हर बार ऐसी आशंका को बल प्रदान करती है ? यहां यह स्मरणीय है की आजादी और भारत के बंटवारे के बाद से अब तक लगभग 75 सालों से कश्मीरी विवाद का विषय बना हुआ है और नेहरू के साथ ही शेख अब्दुल्ला जो वहां अपने परिवार को कश्मीर की वसीयत सौंपा कर गए, वही वसीयत अभी तक विवाद का विषय बनी हुई है और पता नहीं भारत-पाक का यह सीमा विवाद और हमारी कितनी पीढ़ियों को झेलना पड़ेगा? क्योंकि आजादी के इतने सालों बाद भी कश्मीर तो ठीक भारत भर का मुस्लिम वर्ग शुद्ध भारतीय नहीं हो पाया है और वह अपने आप को भारतीयों से अलग ही मानता है, इसी भावना के कारण हमारे देश में राष्ट्रवाद धीरे-धीरे लोप होता जा रहा है और देश के अंदर कुछ घटनाएं घटित हो रही हैं जो हमारी राष्ट्रीय भावना की खामियों को उजागर करती हैं, जिसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश के खंडवा में घटित वह घटना है, जिसमें भगवा ध्वज पर गहरे काले रंग से इस्लाम जिंदाबाद अंकित कर देना है, आखिर ऐसी कट्टरवादी घटनाएं है क्या संकेत दे रही है? एक तरफ कश्मीर में हजरत बल दरगाह से राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह हटाना और दूसरी तरफ मिलादुन्नबी के जुलूस के तत्काल बाद खंडवा में भगवा ध्वज पर इस्लाम जिंदाबाद अंकित करना? आखिर ऐसी घटनाएं हमारे किस भविष्य का संकेत दे रही है, यह तो यहां उल्लेख करने की जरूरत नहीं है, किंतु यह किसके हित या अहित में है? इस पर सोच-विचार व चिंतन बहुत जरूरी है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 8 सितम्बर /2025