नई दिल्ली (ईएमएस)। साल 1990 से 2019 के बीच लगभग 2.34 करोड़ भारतीय ऑस्टियोआर्थराइटिस से जूझ रहे थे, जबकि आर्थराइटिस की पहचान करीब सौ प्रकार की हो चुकी है। इनमें से एक है सोरियाटिक आर्थराइटिस, जो धीरे-धीरे लोगों के बीच चिंता का विषय बन रहा है। ताजा अध्ययन के मुताबिक, यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो अक्सर सोरायसिस से पीड़ित लोगों में पाई जाती है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से जोड़ों, टेंडन और लिगामेंट्स पर हमला करने लगती है। आमतौर पर यह बीमारी 40 से 50 वर्ष की आयु में सामने आती है और पुरुष तथा महिला दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज करना भविष्य में बड़ी समस्या बन सकता है। सोरियाटिक आर्थराइटिस के शुरुआती लक्षणों में हाथ-पांव की उंगलियों में दर्द, सूजन और अकड़न सबसे प्रमुख हैं। इसके अलावा त्वचा पर लाल और खुरदरे धब्बे दिखाई देते हैं, जिन पर सफेद परत जम जाती है। नाखूनों में छोटे-छोटे गड्ढे, मोटापन, रंग का बदलना या नेल बेड से नाखून का अलग होना भी बीमारी का संकेत हो सकता है। कई बार मरीज अचानक और लगातार थकान महसूस करते हैं, जो बिना वजह बनी रहती है। कुछ मामलों में आंखों में लालपन, सूजन, दर्द और धुंधला दिखना जैसी समस्याएं भी सामने आती हैं, जिन पर तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए। वहीं, बिना कारण लगातार निचली कमर में दर्द होना भी इस बीमारी से जुड़ा हुआ पाया गया है। बीमारी की पुष्टि के लिए डॉक्टर आमतौर पर एक्स-रे और एमआरआई जैसे टेस्ट करवाते हैं, जिससे हड्डियों और जोड़ों की सटीक स्थिति का पता चल सके। कुछ मामलों में जॉइंट फ्लुइड टेस्ट भी किया जाता है, जिसमें प्रभावित जोड़ से तरल निकालकर उसकी जांच की जाती है। इलाज में दवाइयों के साथ-साथ जीवनशैली में बदलाव बेहद जरूरी माना जाता है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि मरीज प्रभावित हिस्सों पर अतिरिक्त दबाव डालने से बचें, धूम्रपान छोड़ें और शराब का सेवन कम करें, क्योंकि यह दवाओं के असर को घटाता है और बीमारी को बढ़ाता है। सोरियाटिक आर्थराइटिस अन्य प्रकार के आर्थराइटिस की तरह ही गंभीर है और धीरे-धीरे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह धीरे-धीरे शुरू होता है और लक्षण मामूली दिखाई देते हैं, जिन्हें अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। सुदामा/ईएमएस 08 सितंबर 2025