राष्ट्रीय
14-Sep-2025


नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत के रक्षा वैज्ञानिकों ने उच्च गति और अत्याधुनिक प्रोपल्शन तकनीक पर आधारित सुपरसोनिक टार्गेट सिस्टम (स्टार) तैयार किया है, जो तेजस जैसे लड़ाकू विमानों की मारक क्षमता और प्रशिक्षण वास्तविकता दोनों को बढ़ाएगा। डीआरडीओ के अनुसार यह प्रणाली 55 से 175 किलोमीटर तक की रेंज और करीब 3,100 किलोमीटर प्रति घंटे तक की शीर्ष गति हासिल कर सकती है। स्टार को विशेष रूप से ऐसी उड़ानों के लिए तैयार किया गया है, जो रडार और एयर डिफेंस सिस्‍टम के लिए पकड़ना कठिन हों, यह समुद्र की ऊँचाई से महज 12 फीट और ज़मीनी स्तर से 100 मीटर की ऊंचाई पर भी तीव्र गति से मूव कर सकता है। साथ ही यह 10 किलोमीटर तक की ऊँचाइयों पर भी संचालित हो सकता है तथा हाई-एल्टीट्यूड से डाइविंग प्रोफाइल जैसे जटिल हमलों का मॉडलिंग भी कर सकता है। तकनीकी रूप से स्टार का सबसे बड़ा आकर्षण इसका लिक्विड फ्यूल रैमजेट (एलएफआरजे) प्रोपल्शन सिस्टम है। दो-स्टेज आर्किटेक्चर पर काम करने वाला यह सिस्टम पारंपरिक सॉलिड-फ्यूल रॉकेट मोटर्स की तुलना में बेहतर थ्रस्ट-टू-वेट अनुपात और निरंतर सुपरसोनिक क्रूज़िंग क्षमता देता है। डीआरडीओ के इंजीनियरों का कहना है कि इससे अगली पीढ़ी के सुपरसोनिक हथियारों और एयर-टू-एयर कार्यक्रमों जैसे एस्टार एमके3 जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास का मार्ग भी सशक्त होगा। स्टार का मॉड्यूलर डिज़ाइन दो वेरिएंट में उपलब्ध कराता है एक एयर-लांच वर्जन जिसे तेजस जैसे विमानों से लांच कर एयर-टू-एयर, एयर-टू-ग्राउंड और एंटी-रेडिएशन मिशनों के प्रशिक्षण में इस्तेमाल किया जा सकेगा, और दूसरा ग्राउंड-लांच वर्जन, जिसमें अतिरिक्त बूस्टर जोड़कर विभिन्न प्लेटफॉर्म से लांच करना संभव होगा। इस बहुमुखीपन से कठिन और दूरस्थ क्षेत्रों में प्रशिक्षण अधिक किफायती और वास्तविकताजनक बन पाएगा। जानकारों का कहना है कि स्टार केवल एक प्रशिक्षण टार्गेट नहीं होगा, इसके तकनीकी आधार से वास्तविक सामरिक हथियारों के विकास की संभावनाएँ भी खुलती हैं, खासकर रडार व सर्विलांस प्लेटफॉर्म को निशाना बनाने वाले मिशनों में। देशी तकनीक पर आधारित यह पहल न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता को आगे बढ़ाएगी, बल्कि प्रशिक्षण लागत घटाकर और निर्यात संभावनाएँ पैदा कर भारतीय रक्षा उद्योग को दीर्घकालिक आर्थिक लाभ भी दे सकती है। आशीष दुबे / 14 सिंतबर 2025