इस्लामाबाद,(ईएमएस)। सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौता हुआ है। इसमें कहा गया है कि अगर किसी भी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। इस डील को नाटो की तरह का समझौता बताया जा रहा है। इसका मतलब है कि सऊदी अरब का पाकिस्तान, किसी पर बाहरी आक्रमण होने की स्थिति में दोनों देश मिलकर उसका मुकाबला करेंगे। इस समझौते के बाद पाकिस्तान को लगता है कि उसे भविष्य में भारत के हमलों के खिलाफ गारंटी मिल गई है, लेकिन असलियत यह है कि वह फंस गया है। पाकिस्तान ने जिस दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं, उसके चलते इस्लामाबाद के लिए सऊदी अरब के लिए यमन में हमला करने को अनिवार्य बना दिया है। यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों को लंबी लड़ाई के बाद भी सऊदी अरब हटाने में नाकाम रहा है। इस समझौते ने पाकिस्तान को सिर्फ सऊदी अरब की किराये की सेना के रूप में पुष्ट किया है। यह समझौता नया भी नहीं है। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने पहले भी ऐसे रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन ये हमेशा सऊदी सुरक्षा के लिए रहे हैं, पाक को इससे कोई फायदा नहीं हुआ है। बता दें भारत के साथ पाकिस्तान तीन बड़ी लड़ाइयां (1965, 1971 और 1999) लड़ चुका है। इस दौरान रियाद ने उसे वित्तीय और राजनयिक सहायता तो दी लेकिन कभी सेना तैनात नहीं की। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नया समझौता एक बार फिर पाकिस्तान को यमन में सऊदी अरब के लिए किराये की सेना के रूप में इस्तेमाल करने का दस्तावेज है। क्या पाकिस्तान यमन में सऊदी की अधूरी पड़ी लड़ाई लड़ने जा रहा है? इसके पहले पाकिस्तान ने 2015 में यमन के हूतियों के खिलाफ जंग के लिए सऊदी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया था। उस दौरान पाकिस्तान लगभग तैयार था, लेकिन उस समय विपक्ष के नेता और पीटीआई चेयरमैन इमरान खान के विरोध के बाद नवाज शरीफ सरकार बैकफुट पर आ गई थी। सिराज/ईएमएस 18सितंबर25 -----------------------------------