लंदन (ईएमएस)। आंखों का रंग केवल आकर्षण का विषय नहीं है, बल्कि यह विज्ञान और जेनेटिक्स का एक रोचक परिणाम भी है। गहरी भूरी, हल्की नीली या फिर दुर्लभ हरी आंखें हर रंग अपनी एक अलग कहानी बयां करती है। जब किसी से पहली बार मुलाकात होती है, तो अक्सर उनकी आंखें सबसे पहले ध्यान आकर्षित करती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, आंखों का रंग मुख्य रूप से आइरिस में मौजूद मेलेनिन नामक पिगमेंट पर निर्भर करता है। भूरी आंखों में मेलेनिन की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह गहरी दिखाई देती हैं। वहीं नीली आंखों में मेलेनिन बहुत कम होता है और इनका रंग टिंडल प्रभाव के कारण बनता है, जैसे आसमान नीला दिखाई देता है। हरी आंखें मेलेनिन और प्रकाश बिखराव के संतुलन का परिणाम होती हैं, जबकि हेजल आंखों में मेलेनिन का असमान वितरण रोशनी के साथ उनका रंग बदलता हुआ दिखाता है। पहले यह माना जाता था कि आंखों का रंग केवल एक जीन तय करता है, जिसमें भूरा रंग नीले पर हावी होता है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि कई जीन मिलकर आंखों का रंग निर्धारित करते हैं। यही वजह है कि एक ही परिवार में बच्चों की आंखों का रंग अलग-अलग हो सकता है। दिलचस्प बात यह भी है कि यूरोपीय मूल के कई नवजात शिशुओं की आंखें नीली या सलेटी होती हैं, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ मेलेनिन की मात्रा बढ़ने पर उनका रंग बदल सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि वयस्कों में आंखों का रंग आमतौर पर स्थिर रहता है, लेकिन रोशनी, कपड़ों और पुतली के आकार से इसका प्रभाव बदलता प्रतीत हो सकता है। नीली-सलेटी आंखें कभी नीली और कभी हरी नजर आ सकती हैं। कुछ दुर्लभ मेडिकल स्थितियां भी आंखों के रंग को प्रभावित करती हैं। हेटरोक्रोमिया ऐसी ही एक स्थिति है, जिसमें दोनों आंखों का रंग अलग होता है या एक ही आंख में दो रंग दिखाई देते हैं। हॉलीवुड अभिनेत्री केट बोसवर्थ और मिला कुनिस इसके उदाहरण हैं। वहीं, गायक डेविड बोवी की आंखें चोट के कारण अलग रंग की दिखती थीं। सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से देखें तो विश्व में भूरी आंखें सबसे अधिक पाई जाती हैं, खासकर अफ्रीका और एशिया में। नीली आंखें उत्तरी और पूर्वी यूरोप में आम हैं, जबकि हरी आंखें केवल करीब 2 प्रतिशत आबादी में देखी जाती हैं। भारत में ज्यादातर लोगों की आंखें भूरी या हेजल होती हैं, लेकिन नीली और हरी आंखें दुर्लभ और आकर्षक मानी जाती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि आंखों का रंग केवल जेनेटिक्स का खेल नहीं है, बल्कि यह हमारी विरासत, व्यक्तित्व और प्रकृति के चमत्कार का प्रतीक भी है। आंखें केवल देखने का माध्यम नहीं, बल्कि इंसान को इंसान से जोड़ने का जरिया हैं। सुदामा/ईएमएस 19 सितंबर 2025