लेख
01-Oct-2025
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केंद्रीय चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन कर दिया है। इसमें 69 लाख मतदाताओं के नाम काटे गए हैं। इसके पहले एसआईआर का जो मसौदा केंद्रीय चुनाव आयोग ने प्रस्तुत किया था, उसमें 65 लाख, 64 हजार नाम काटे गए थे, जिसको लेकर काफी बवाल हुआ। लोग सुप्रीम कोर्ट तक गए, सुप्रीम कोर्ट में कई बार सुनवाई हुई। सुनवाई मे आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में मान्यता देने तथा जिस तरह से एसआईआर की जा रही थी, उसकी विसंगतियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसा लगता है, केंद्रीय चुनाव आयोग ने पिछले तीन-चार महीने में सुप्रीम कोर्ट मे, कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा सप्रमाण जो गड़बड़ियों को उजागर किया, जो आरोप लगाए गए थे उनसे कोई सबक नहीं लिया। जिस तरह से जिंदा लोगों के नाम मृत बताकर मतदाता सूची से काट दिए गए। बिहार के विभिन्न विधान सभा क्षेत्र से चुन-चुनकर अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम थोक के भाव में काटे गए हैं। भाजपा विधायकों और संगठन द्वारा की गई अनुशंसा के अनुसार नाम काटने का काम किया गया है। उसको लेकर अब चुनाव आयोग की आलोचना हर तरह से हो रही है। जैसे ही मतदाता सूची का प्रकाशन हुआ, उसके बाद से राजनीतिक दल, पत्रकार तथा स्वयंसेवी संगठनों द्वारा मतदाता सूची के पोस्टमार्टम का काम शुरू कर दिया गया है। उसमें कौन-कौन सी विसंगतियां हैं, इसको निकलना शुरू कर दिया है। कैसे हर जिले में 50 से कम उम्र वाले लोगों की मौतें हुई हैं। कोरोना की महामारी के समय से कई गुना ज्यादा मौतें इस मतदाता सूची में हो गई है। बिहार में अभी कोई महामारी भी नहीं फैली है, इसके बाद भी 50 साल से कम उम्र के लाखों लोगों की मृत्यु हो जाने को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। एसआईआर के पहले लोकसभा चुनाव के समय बिहार की मतदाता सूची में 7।89 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे। जो अब घटकर 7।42 करोड़ रह गए हैं। जब चुनाव आयोग से इस तरह की घोषणा होती थी। तब यह परंपरा रही है, केंद्रीय चुनाव आयोग के आयुक्त पत्रकार वार्ता में सारी जानकारी देते थे। पत्रकारों के सवालों के जवाब भी देते थे। इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। पिछले 4 महीने से एसआईआर का यह मामला देशभर मे तूल पकड़ रहा है। चुनाव आयोग ने इसे सभी राज्यों में कराने की घोषणा की है। बिहार में जिस तरह से एसआईआर की जा रही है, उसको लेकर तरह-तरह की आलोचना हो रही है। विधानसभाओँ में एसआईआर के विरोध में प्रस्ताव पारित किए जा रहे हैं। इससे देश की संघीय व्यवस्था को लेकर चिंता व्यक्त की जाने लगी है। उसके बाद भी केंद्रीय चुनाव आयोग ने कोई सतर्कता नहीं बरती। जिस मतदाता सूची का प्रकाशन किया गया है। उसके बाद से चुनाव आयोग की आलोचना बड़े पैमाने पर हो रही है। लोग तथ्यों के साथ त्रुटियां बता रहे हैं। चुनाव आयोग किसी भी तरह की आपत्तियां और शिकायतों को गंभीरता से लेता ही नहीं है। ऐसा लगता है, उसकी जवाबदेही संवैधानिक संस्था और निष्पक्ष चुनाव कराने के स्थान पर मनमानी करने की है। सुप्रीम कोर्ट, राजनीतिक दलों, पत्रकारों और चुनाव से जुड़े हुए स्वयंसेवी संगठनों द्वारा जिस तरह से चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली को समय-समय पर कठघरे में खड़ा किया गया है, उसका जवाब चुनाव आयोग ने कभी दिया ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आधार की मान्यता को लेकर जब चौथी बार लिखित में आदेश दिया, उसके बाद चुनाव आयोग ने माना। अब जो मतदाता सूची सामने आई है उसको देखते हुए यह लगता है, केंद्रीय चुनाव आयोग को ना तो सुप्रीम कोर्ट की चिंता है, नाही देश भर में जो आलोचना हो रही हैं, उसकी चिंता है। चुनाव आयोग को अपनी निष्पक्षता और अपने संवैधानिक अधिकारों को लेकर भी जिम्मेदारी का एहसास शायद नहीं है। निश्चित रूप से चुनाव आयोग को कोई ना कोई ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिसके कारण वह किसी की भी परवाह नहीं कर रहा हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना के समय जो चुनाव हुए थे। तब इसी तरह की स्थितियां देखने को मिली थीं। चुनाव जीतने के बाद उनका क्या हश्र हुआ। यह सभी जानते हैं। कुछ इसी तरह की गलती भारतीय चुनाव आयोग भी करता हुआ दिख रहा है। आगे क्या होगा भगवान ही मालिक है। ईएमएस / 01 अक्टूबर 25