“सौ साल… एक संगठन, अनगिनत तपस्वी कार्यकर्ता, अडिग राष्ट्रभक्ति और अद्भुत अनुशासन। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर भारत आज केवल एक संगठन की नहीं, बल्कि उस विचारधारा और कर्मयोग की जय-जयकार कर रहा है, जिसने भारत की आत्मा को और अधिक प्रखर बनाया।” भारतवर्ष की महान सभ्यता हजारों वर्षों से जगत को दिशा देती रही है। इसी धरा को 20वीं सदी में एक नई ऊर्जा देने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन स्थापित यह संगठन आज 100 वर्ष पूरे कर चुका है। यह केवल एक संगठन नहीं, बल्कि विचारों, मूल्यों और राष्ट्र-निष्ठा का जीवंत विद्यालय है, जिसने भारत के समाज, संस्कृति, राजनीति और राष्ट्रीय जीवन के हर पहलू पर गहरी छाप छोड़ी है। संघ की स्थापना : एक युगांतरकारी घटना सन् 1925 का भारत अंग्रेज़ी दासता में जकड़ा हुआ था। एक ओर स्वतंत्रता आंदोलन की लहर थी, दूसरी ओर समाज में बिखराव, जातिगत भेदभाव और हीनभावना की जंजीरें थीं। डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि जब तक समाज में संगठन, अनुशासन और राष्ट्रीय चरित्र नहीं होगा, तब तक स्वतंत्रता का लक्ष्य अधूरा रहेगा। इसी सोच से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। संघ की शाखा प्रणाली – जहां मैदान में खेल, व्यायाम, प्रार्थना और बौद्धिक चर्चा के माध्यम से कार्यकर्ताओं को गढ़ा जाता है – ने सामान्य व्यक्ति को असाधारण राष्ट्रभक्ति में ढालने का कार्य किया। 100 वर्षों की यात्रा : समाज सेवा से राष्ट्र जागरण तक सौ वर्षों की यात्रा में संघ ने हर दौर में भारत को नई दिशा दी। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान : संघ के हजारों स्वयंसेवकों ने आंदोलन में भाग लिया। हालांकि संगठन प्रत्यक्ष राजनीति से दूर रहा, परंतु कार्यकर्ताओं ने भूमिगत क्रांति से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक में बलिदान दिए। समाज जागरण : संघ ने जाति-पाति के भेद मिटाने और भारतीय संस्कृति को जीवंत रखने का अभियान चलाया। सेवा कार्य : भूकंप, बाढ़, दंगे या किसी भी आपदा के समय सबसे पहले स्वयंसेवक राहत कार्य में जुटते हैं। कोविड-19 महामारी के समय भी संघ के लाखों कार्यकर्ताओं ने दिन-रात लोगों की सेवा की। आज संघ केवल शाखा तक सीमित नहीं है, बल्कि हजारों सेवा परियोजनाओं, शिक्षा संस्थानों, स्वास्थ्य सेवाओं और ग्राम विकास योजनाओं के माध्यम से पूरे देश को गति दे रहा है। अनुशासन और संगठन का अद्भुत उदाहरण संघ का सबसे बड़ा बल उसका अनुशासन और संगठनशक्ति है। बिना किसी आकर्षक नारेबाजी या बाहरी चकाचौंध के, बिना सरकारी सहयोग या धनबल के और केवल स्वयंसेवकों की निस्वार्थ सेवा से संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया है। आज लाखों स्वयंसेवक रोज़ शाखा में खड़े होकर प्रार्थना करते हैं – “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे…” और यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत माता के लिए जीने-मरने का संकल्प है। राष्ट्रभक्ति की पाठशाला संघ ने भारतीय समाज को सिखाया कि देशभक्ति केवल नारों या उत्सवों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का तरीका है। ✔️ गांव-गांव शाखा लगाना ✔️ बच्चों और युवाओं को भारतीय संस्कृति से जोड़ना ✔️ परिवार में संस्कार जागृत करना ✔️ मातृभूमि की सेवा को जीवन का परम धर्म मानना यही वह शिक्षा है, जिसने लाखों सामान्य परिवारों से निकले स्वयंसेवकों को महान राष्ट्रसेवक बना दिया। संघ और सामाजिक समरसता भारत को तोड़ने के लिए सबसे बड़ा हथियार सदियों से जातिवाद और समाज में बिखराव रहा है। संघ ने इस चुनौती को सीधा स्वीकार किया। शाखाओं में सभी स्वयंसेवक एक समान वेश में, एक साथ खेलते, खाते और प्रार्थना करते हैं। संघ ने स्पष्ट कहा – “हम सब भारतीय एक ही माता के पुत्र हैं, हम सब समान हैं।” आज संघ के माध्यम से अनगिनत दलित, वंचित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा में गौरव से खड़े हैं। राजनीति से परे, राष्ट्र सर्वोपरि संघ का मूल मंत्र है – “संघ राजनीति नहीं करता, पर राजनीति को दिशा देता है।” संघ के विचारों से प्रेरित होकर भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का उदय हुआ। आज केंद्र से लेकर राज्यों तक भाजपा की सरकारें संघ के कार्यकर्ताओं की तपस्या का परिणाम हैं। परंतु संघ का कार्य किसी राजनीतिक दल तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज का संगठन करना है। सेवा कार्यों का विराट विस्तार संघ ने 100 वर्षों में जितने सेवा कार्य किए हैं, वे किसी भी संगठन के लिए अनुकरणीय हैं। शिक्षा : एकल विद्यालय, विद्या भारती के हजारों स्कूल स्वास्थ्य : अस्पताल, आयुर्वेद केंद्र और नि:शुल्क सेवा प्रकल्प ग्राम विकास : स्वावलंबन, जैविक खेती और जल संरक्षण आपदा राहत : चाहे 2001 का भुज भूकंप हो, 2013 की केदारनाथ त्रासदी या 2020 की कोरोना महामारी – हर जगह सबसे पहले संघ के स्वयंसेवक सेवा में उपस्थित रहे। 100 वर्षों की उपलब्धि : विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन आज संघ केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व के 50 से अधिक देशों में कार्य कर रहा है। विदेशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ (HSS) के माध्यम से भारतीय संस्कृति का प्रसार हो रहा है। प्रवासी भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का श्रेय भी संघ को जाता है। लाखों स्वयंसेवक संघ की शाखाओं और प्रकल्पों के माध्यम से भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को जीवंत कर रहे हैं। आधुनिक भारत की रीढ़ आज भारत जब विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर है, तब इस यात्रा में संघ का योगदान अमूल्य है। आत्मनिर्भर भारत का सपना, स्वदेशी का भाव, सांस्कृतिक आत्मगौरव, और राष्ट्रहित सर्वोपरि रखने का संस्कार ये सभी विचार संघ के माध्यम से जन-जन तक पहुंचे हैं। अगले 100 वर्षों का संकल्प 100 वर्ष पूरे होने पर संघ केवल अतीत का उत्सव नहीं मना रहा, बल्कि आने वाले 100 वर्षों की दिशा तय कर रहा है। भारत को विश्वगुरु बनाना, समाज से हर प्रकार का भेदभाव समाप्त करना, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास नैतिक मूल्यों से युक्त शिक्षा, सशक्त, संगठित और आत्मनिर्भर भारत यह केवल संघ का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र का संकल्प है। (लेखक भारतीय जनता पार्टी के मध्यप्रदेश के प्रदेश प्रवक्ता हैं) ईएमएस/01/10/2025