लेख
01-Oct-2025
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महात्मा गांधी की 150 वीं जयंति, 2 अक्टूबर 2014 का दिन। डेढ़ अरब लोग सोच कर बैठे थे, हर साल की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री सहित दिल्ली में मौजूद सभी विशिष्ट जन राजघाट स्थित महात्मा गांधी की समाधि पर जाएंगे। उन्हें पुष्पांजलि अर्पित कर दो मिनट के लिए वहां बैठकर रघुपति राघव राजा राम की धुन सुनेंगे। कुछ इस प्रकार मन जाएगी गांधी जयंती। लेकिन बात यहीं पर आकर नहीं थमी। क्योंकि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो हैं। जैसा कि अनुभव हो रहा है, श्री मोदी औपचारिकताओं से ज्यादा कृतित्व में विश्वास रखते हैं। यही वजह है कि उन्होंने न केवल पुष्पांजलि ही अर्पित की, बल्कि उसी समय गांधी जी के सर्वाधिक प्रिय विषय साफ सफाई पर आधारित स्वच्छ भारत मिशन नामक एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा कर दी। योजना का आशय यह था कि हमें अपने घर से लेकर समाज और अपना गांव, शहर भी साफ सुथरा बनाना है। देश भर के राजनेता आश्चर्यचकित थे कि यह क्या ? देश के प्रधानमंत्री ने सफाई जैसी छोटी-मोटी बात एक राष्ट्रीय योजना के रूप में प्रस्तुत कर दी! स्वाभाविक और पारंपरिक आलोचक तत् समय इसे केवल राजनीतिक बयान बाजी बताते रहे। लेकिन जल्दी ही देश में एक बदलाव दिखाई देने लग गया। पहले जहां सफाई केवल सफाई कर्मी की जिम्मेदारी हुआ करती थी, अब वह साझा दायित्व बोध बनती नजर आने लगी थी। कल तक जो लोग अपने घरों के बाहर स्थाई रूप ले चुके कचरे के अनगिनत ढेरों अर्थात घूरों पर अपने घरों का कचरा फेंक कर फारिग हो जाया करते थे, वह अब अपने घर, दुकान, कार्यालय आदि का कचरा लेकर बाहर निकलने लगे हैं। समय के साथ-साथ और सुधार हुए, जब लोग गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करके कचरा गाड़ी में डालने लगे। इसी को जन आंदोलन कहते हैं। नागरिक छोटे से गांव का निवासी हो या फिर किसी बड़े महानगर का, सफाई को अपना दायित्व समझने लगा है। इसी का प्रमाण है कि जिन्हें लंबे समय तक सफाई कर्मी और न जाने किन-किन अपमानजनक नामों से संबोधित किया जा रहा था, अब वह हमारे मित्र हैं और उनका नाम है सफाई मित्र। जी हां, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उनके लिए यही नाम सुनिश्चित किया है। यहां एक सवाल यह भी उठता है कि जब राजनेताओं को लेकर अधिकांशतः जनता जनार्दन के मन में नकारात्मकता का भाव स्थापित है, तब नागरिकों द्वारा श्री मोदी के आवाह्न को इतनी गंभीरता से क्यों लिया जाता है ? इसका जवाब श्री मोदी की कथनी और करनी में स्पष्ट दिखता है। मसलन, वह जनहित की जिस योजना की घोषणा करते हैं, उसका शिलान्यास और लोकार्पण भी समय पर हो जाए, यह सुनिश्चितता पहले ही तय कर चुके होते हैं। जबकि पूर्व के नेताओं की कार्य प्रणाली से प्रतिबद्धता का यह भाव नदारद ही था। यही कारण है कि भले ही लोगों का राजनेताओं पर भरोसा कम हुआ हो, लेकिन नरेंद्र मोदी जैसे राष्ट्र सेवकों की एक बड़ी खेप जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संस्कारित होकर राष्ट्रीय सेवा हेतु आगे आ रही है, उसने अपने जनहितैषी कार्यों से जनता जनार्दन का विश्वास जीतना शुरू कर दिया है। यही वह वातावरण है जो श्री मोदी की स्वीकार्यता को प्रामाणिकता प्रदान करता है। यही बात स्वच्छ भारत मिशन के क्रियान्वयन पर भी लागू होती है। चूंकि श्री मोदी ने कहा है, इसलिए लोग स्वयं की इच्छा से इस मिशन से जुड़ रहे हैं। खासकर मध्य प्रदेश की बात करें तो नंबर वन शहर का खिताब भी हमारे प्रांत की आर्थिक नगरी इंदौर को मिला हुआ है। इस स्वच्छ और स्वस्थ स्पर्धा में देश के अनेक राज्य, शहर और गांव बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता निभा रहे हैं। स्पष्ट है, स्वच्छता को लेकर एक जन आंदोलन खड़ा हो गया है। ठीक वैसे ही जैसा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने निश्चित किया था, कि हम इस मामले में महात्मा गांधी का अनुसरण करेंगे। जैसे वे अपनी, अपने निवास स्थान की तथा आसपास की स्वच्छता को लेकर तत्पर रहते थे। यहां तक कि उनके द्वारा सफाई को ईश्वर पूजा का ही एक स्वरूप होने की मान्यता दी गई थी। श्री मोदी के कथन अनुसार बापू मानते थे कि जब तक हमारे आसपास का वातावरण स्वच्छ नहीं होगा, तब तक हम पूरी तरह स्वच्छता की कल्पना कर ही नहीं सकते। बकौल श्री नरेंद्र मोदी, महात्मा गांधी कहा करते थे कि जब हम सफाई के बीच रहते हैं, तभी हमारे तन और मन स्वच्छता का अनुभव कर पाते हैं। इसी अवस्था को पूर्ण स्वच्छता का दर्जा दिया जा सकता है। वर्तमान परिवेश बापू द्वारा बताए गए स्वच्छता के इस मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। तभी तो आज का जागरूक नागरिक बाहरी और भीतरी स्वच्छता की बात करता है और उस पर अमल भी होता दिख रहा है। जिस प्रकार हमें सफाई प्यारी है, यही वातावरण सफाई कार्य में प्राथमिकता से डटे हुए सफाई मित्रों को भी नसीब हो, इस बारे में सोचा जाने लगा है। अतः अब ऐसे कई नवाचार हो रहे हैं, जिनके क्रियान्वयन से सफाई मित्रों को और अधिक सम्मानजनक तथा सुरक्षित माहौल मुहैया कराया जाना है। मसलन, उन्हें सफाई कार्य को अंजाम देने के लिए गंदगी से लथपथ ना होना पड़े। जहरीली गैस से भरे हुए गटर आदि में उतरकर जान जोखिम में ना डालनी पड़े। इस आशय के प्रयास होने लगे हैं। हालांकि अभी यह केवल शुरुआत ही है। एक अच्छी शुरुआत, जो ज्यादातर महानगरों से आगे बढ़ते हुए छोटे-छोटे शहरों कस्बों की ओर बढ़ रही है। शौचालयों की गंदगी वैक्यूम मशीनों से निस्तारित हो जाए, सफाई मित्रों को घुटन से बचाने के लिए उन्हें ऑक्सीजन किट जैसे हल्के-फुल्के संसाधन उपलब्ध हो जाएं, यह नवाचार छोटे-छोटे गांव तक भी पहुंचाने की मुहिम जारी है। यह और तेज हो, स्वच्छता को लेकर शुरू हुआ जन आंदोलन हमारे भौतिक वातावरण के साथ-साथ आत्मिक स्वरूप को भी सात्विकता प्रदान कर पाए। महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। (लेखक- स्‍वतंत्र पत्रकार है) ईएमएस/01/10/2025