(वाल्मिकी जयंती 6 अक्टूबर) पौराणिक भारतीय महसकाव्य रामायण के रचियता ऋषि वाल्मीकि की जन्म जयंती मनाई जा रही है।वाल्मीकि जयंती को प्रकट दिवस के रूप में मनाते है।वाल्मीकि रामायण संस्कृत में रचित एक महाकाव्य है,जिसमे भगवान के जीवन की कथा है।वाल्मीकि समाज के लोग वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाते है।वाल्मीकि ने नारद के कहने पर अधर्म का मार्ग छोड़ धर्म के मार्ग चुना और रामायण जैसे महान ग्रंथ की रचना की गई।आदिकाल के महर्षियों में से एक वाल्मीकि जिन्होंने प्रभु राम की महिमा का विस्तार और वर्णन किया।महर्षि वाल्मीकि विश्व की जगमगाती एक महान विभूति थे।मनीषी और मनस्वी थे।पहले उनका जीवन नीरस था। वाल्मीकि बचपन मे राह चलते राहगीरों को लूटते थे।एक दिन नारदजी ने उनको दर्शन देकर उनका मार्गदर्शन किया। वाल्मीकि जी ने कई वर्षों तक घोर तपस्या की और प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने उन्हें महर्षि होने का वरदान दिया। और प्रभु श्रीराम के बारे में लिखने को कहा गया। कहते है कि माँ के पेट से कोई सीखकर नही आता है।जन्म के बाद ही अपने कर्मो के अनुसार भाग्य बनता है और बिगड़ता है।भारतीय संस्कृति में ऐसे कई सिद्ध पुरुष हुए है,जिनका जीवन साधारण और निकृष्ट था।लेकिन विद्वानों के सम्पर्क -संसर्ग में आने के बाद उनका जीवन कमलफूल जैसा बन गया।डाकू से महर्षि बनने पर उन पर प्रभाव पड़ा था,वह ब्रह्मदेव साधारण मानव नही थे। एक बार वन में भ्रमण करते वाल्मीकि ने एक क्रोंच पक्षी के जोड़े को प्रेम में लीन देखा परन्तु वहीं एक शिकारी ने तीर चलाकर नर पक्षी को मार दिया और तब वाल्मीकि के मुख से संस्कृत में पहला श्लोक निकला जिसने रामायण की नींव रखी। इतिहासकारों के अनुसार वाल्मीकि उसी सदी में रामायण की रचना कर रहें थे जिस सदी में भगवान राम मौजूद थे। जब श्रीराम ने गर्भवती माता सीता का लोकापवाद के कराण परित्याग कर दिया तब माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आश्रय लिया और वहां लव- कुश को जन्म दिया। श्रीराम और माता सीता के पुत्र लव और कुश की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा वाल्मीकि के द्वारा ही हुई।वाल्मीकि का जीवन सहस्त्र कमल के समान सुवासित व रमणीय बन चुका था।जो प्रतिपल अपने मधुर सौरभ कोष लुटाता रहता था ।लोगो को तेजस्वी सूर्य के समान दिव्य आलोक प्रदान करता रहता था।और गंगा के निर्मल प्रवाह की तरह सरसता का प्रचार करता रहता था।वह भारतीय जनजीवन के लिए उपकारक एवं हितकारक था।प्रभु राम की जीवन कहानी लिखने वाले विश्व के झार्जरमान नक्षत्र प्रभु राम का नाम जब जब जिव्हा पर आएगा, तब-तब वाल्मिकी को भी याद किया जाएगा।वाल्मीकि का विराट जीवन परम पावन निपट गाथा जो भी उनके संसर्ग में आया था वह अनिर्वचनीय आनन्द,तृप्ति और मानसिक विश्रांति का अनुभव किये बिना रह नही सकता था।वस्तुतः वाल्मीकि का जीवन रमणीयता का अक्षय कोष था।उत्तरकांड में एक सुंदर बात लिखी है जो संसार रूपी सागर का पार पाना चाहता है,उसके लिए तो श्रीराम कथा दृढ़ नौका के समान है।हरि के गुण समूह विषयी लोगो के लिए भी कानो को सुख देनेवाले और मन को आनन्द देने वाले है। वाल्मीकि रामायण के इस पवित्र ग्रन्थ से जन जन के जीवनोत्कृष्ट की मंगलमय भावना हेतु विश्व को समर्पित किया।वाल्मीकि को मानने वाले दुनिया मे लोग कम नही है।क्योंकि उनके द्वारा लिखी रामायण से अनन्त सौरभ,अनन्त आनंद और अनन्त प्रकाश को कुबेर की तरह दुनिया मे बांट रहे है।उस विराट व्यक्तित्व को जड़ लेखनी कैसे अभिव्यक्त कर सकती है।उन्होंने इस बात को प्रमाण दिया कि एक साधारण और आचरण से विमुख व्यक्तित्व कैसे सिद्ध पुरुष बन सकते है।संसर्ग से एक तस्करी महर्षि बन जाता है।यह भारतीय संस्कृति की महानता है कि पत्थर को पारस बनाने की कला और सामर्थ्य इसी धरा में है।वाल्मीकि रामायण भावुकता के प्रवाह में बहकर नही लिखी।भावुकता और दया वाल्मीकि में नही थी।लेकिन ऋषियों का संसर्ग उनको तारने और विश्व प्रसिद्ध बनाने का निमित बना। श्रद्धा का रस रामायण में विधमान है।लेकिन रामायण की रचना और वाल्मीकि की लेखनी विचार रस में डूबकर दुनिया को श्रद्धाभिमुख किया है उसका ऋण चुकाया नही जा सकता है।अगणित सूर्य अपनी हजारो किरणों की चमक रहे है।विश्व मैत्री के अगणित कलश एक साथ छलक रहे है।और उनके अन्तरहदय से स्नेह सद्भावना व करुणा की न जाने कितनी गंगा, यमुना और सरस्वतियाँ बह रही है।वाल्मीकि का भारत की दार्शनिक परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान है।किसी एक भाषा केकवि नही थे,सम्पूर्णकाव्य भाषा के नायक थे।उनके द्वारा रचित रामायण भारत की काव्य परम्परा का आधार है।वाल्मीकि में सत्य,शिवम और सुंदरम की अपूर्व समन्विती रही है।उनके प्रत्येक चिंतन में दिव्य आलोक था और प्रत्येक स्वांस ने अनन्त विश्वास था।आज भी करोड़ो लोग रामायण की चौपाइयों को गुनगुनाते हुए आनन्द अनुभव तो करते है,लेकिन महर्षि वाल्मीकि को याद करना नही भूलते है।उनके जीवन मे संतो महंतों के संसर्ग के बाद बदलाव हुआ।स्नेह सद्भाव से जन जन के अंतर मानस को जीत लिया।वाल्मीकि की ही परम्परा में महाभारत और रघुवंशम जैसे महाकाव्यों की रचना हुई ।भारत मे वाल्मीकि ने नैतिकता का मापदंड स्थापित कर हम को धार्मिक प्रवृत्ति की राह पर चलने का मार्ग प्रशस्त किया।रत्नाकर औऱ बाला शाह भी वाल्मीकि का ही उपनाम है।उनकी शिक्षाओं पर जयंती के उपलक्ष्य में संगोष्ठिया और सेमिनार का आयोजन होगा। उनका जीवन हमेशा प्रेरित करता है। अपनी निष्ठा और संकल्प से कैसे वह महर्षि बन गये, यह बात हर जानने वाले को चुंबकीय ढंग से आकर्षित करती हैं। उनके अंदर कितनी संवेदना रही होगी कि वह कालांतर में एक सरस कवि और महर्षि बन जाते हैं। उनके इस कायांतरण ने भारत में लाखों लोगों को कविताएं लिखने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि, उनके बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों के मुताबिक वह एक साधारण व्यक्ति थे, जबकि कुछ संदर्भ उन्हें जन्मजात ऋषि भी मानते हैं। वाल्मीकि का जीवन सरोवर नही,किन्तु भागीरथी की बहती धारा थी।उनके प्रत्येक श्वास में प्रगति का स्वर प्रस्फुटित होता था।सुनदरता और सरसता थी।नये उत्साह के सरस् सुमन खिलते थे।वाल्मीकि मानवता के मसीहा थे।उनका बचपन नीरस था।उनके कार्य मानवता विरोधी थे,लेकिन उन्होंने विश्व ग्रंथ रामायण की रचना कर पूर्व के सभी आरोपो और भूलो को रामायण की उन चौपाइयों को जीवंत कर धूल दिए। वे स्वयं निखरित थे।वाल्मीकि की सर्जनात्मक कृतित्व की जन जन के ह्दय पर अमिट छाप छोड़ी है। (वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, स्तम्भकार) .../ 5 अक्टूबर/2025