लेख
05-Oct-2025
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पिछले एक दशक से देश की राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी के बाद जिनका सबसे ज़्यादा ज़िक्र हुआ है, वो हैं जन सुराज पार्टी के संस्थापक एवं चुनावी राजनीति के प्रसिद्ध रणनीतिकार नाम है प्रशांत किशोर.... प्रशांत किशोर पांडे। पीएम मोदी को गुजरात के पटल से भारत के पटल पर स्थापित करने में प्रशांत किशोर की भूमिका अग्रणी रही है। प्रशांत किशोर एक समय तो नरेंद्र मोदी के घर में ही रहते थे, 2014 चुनाव में प्रशांत किशोर ने पीएम मोदी की चुनावी राजनीति एवं कैंपेन की ज़िम्मेदारी संभाली थी, हालांकि प्रमुख पहिचान उनकी नरेंद्र मोदी से अलग होने के बाद ही बनी। बहरहाल प्रशांत किशोर का राजनीतिक अतीत क्या था महत्वपूर्ण यह नहीं है। परंतु महत्वपूर्ण वर्तमान है। पिछले तीन साल से प्रशांत पूरे बिहार में पैदल लोगों से मिलते जुलते रहे, निरन्तर ज़मीन पर घूमते हुए लोगों के साथ जुड़ रहे हैं। जन सुराज पार्टी ने पिछले कुछ वक़्त में ही बिहार में डेढ़ करोड़ से अधिक सदस्यों को पार्टी से जोड़ा है, अतः अब जन सुराज पार्टी करोड़ों कार्यकर्ताओं एवं सदस्यों वाली पार्टी हैl पिछले कुछ महीनों से प्रशांत ने चुनावी कैंपेन की शुरुआत की है, तब से आरजेडी, जदयू, भाजपा सभी प्रशांत से असहज महसूस कर रहे हैं, प्रशांत किशोर सारी पार्टियों के लिए काम कर चुके हैं नेताओ को गाइड कर चुके हैं तो किसी भी पार्टी के छोटे - छोटे नेता सीधे प्रशांत किशोर पर टार्गेट नहीं कर पा रहे, वहीँ प्रशांत सम्राट चौधरी, तेजस्वी यादव की नाक में दम कर रहे हैं, नीतीश कुमार की आलोचना तो करते हैं परंतु उनके लिए एक सम्मान भी प्रदर्शित करते हैं, यही बात प्रशांत की लोगों के बीच खास बनाती है। तेजस्वी यादव की बॉडी लेंग्वेज ही बहुत कुछ कहती है, विदेश में पढ़े लिखे, विदेश में नौकरी करने वाले प्रशांत जब से बिहार में हैं तब से बिल्कुल बिहारी भाषा में बात करके लोगों के साथ जुड़ रहे हैं, वहीँ जब से प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव को नौवीं फेल कहा है, तब से तेजस्वी यादव खुद को पढ़ा लिखा साबित करने के लिए मंचों पर इंग्लिश बोलने लगते हैं जबकि ये बिल्कुल हास्यापद है, बिहार के मंचों पर आप अंग्रेजी बोलने की कोशिश कर रहे हैं, तेजस्वी यादव की ये हरकत उन्हें बेहद अपरिपक्व नेता साबित करती है। वहीँ सम्राट चौधरी की उम्र एवं उनके कई नामों वाले एफिडेविट का दावा प्रशांत ने किया है तब से प्रशांत चौधरी बिल्कुल भी सहज नहीं दिख रहे, पगड़ी बांधने खोलने के समय भी सम्राट चौधरी इतने हताश नहीं दिखे जितना अब दिख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर विमर्श कर रहे हैं कि प्रशांत किशोर को सीबीआई, ईडी का डर नहीं है क्या! इसका सीधा सा ज़वाब है कि नरेंद्र मोदी की छवि आज भी राजनीतिक लोगों के बीच रहस्यमयी है, वहीँ प्रशांत किशोर कहते हैं कि मैंने उनके साथ काम किया है उनकी नस - नस से वाकिफ़ हूं मुझे पीएम मोदी से कोई डर नहीं है, ये बात सच है कि प्रशांत किशोर देश के बड़े से बड़े नेताओ की ताकत एवं कमजोरी की जानकारी रखते हैं, एक समय तो अमित शाह भी प्रशांत किशोर से असुरक्षित महसूस कर रहे थे, वहीँ नीतीश कुमार ने तो पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया था, जदयू की पूरी कमान छोड़कर एकदम से नई पार्टी बनाकर मैदान में कूद गए, जबकि नीतीश कुमार ने कहा था कि प्रशांत को मैं अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दूँगा। यही खूबियां हैं जो प्रशांत किशोर को राजनीति का माहिर खिलाड़ी सिद्ध करती है। राजनीतिक गुणा - गणित में प्रशांत किशोर का कोई सानी नहीं है, उन्होंने पिछले एक दशक में अधिकांश चुनाव बतौर रणनीतिकार जीते हैं, वहीँ आंकड़ों की समझ उन्हें अन्य नेताओ की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी बनाती है। प्रशांत का कहना है कि जदयू भाजपा - कांग्रेस - आरजेडी चारो को लगभग - लगभग 65% वोट मिलता है, वहीँ लगभग 35 % वोट बिखरा हुआ है, जाहिर सी बात है कि ये 35% लोग इन चारो दलों को वोट नहीं देना चाहते, वहीँ कुछ नए विचारो के लोग हैं जो जाति - धर्म से उठकर इन चारो से तंग आ गए हैं, अगर चारो पार्टियों का 1-1% वोट भी जन सुराज की तरफ खिसक गया तो प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति के नए किंग या किंगमेकर बन सकते हैं। यही कारण है कि बिहार की सारी पार्टियों की नींद उड़ी हुई है, अभी कुछ सर्वे आदि में दावा किया गया है कि बिहार के 20-25% लोग प्रशांत किशोर को सीएम के रूप में देखना चाहते हैं। प्रशांत किशोर की पांडे जाति खोजकर बताने वाले नेताओ की नाक में दम कर रहे हैं, प्रशांत का दावा है कि मैं इस बार बिहार की राजनीति को जाति - धर्म से हटकर बुनियादी मुद्दों की ओर खींचकर लाऊँगा अगर बिहार के लोगों ने अपने अतीत की गलतियो से सीखते हुए नए विकल्प की ओर देखा जो जाति - धर्म से हटकर बात करता है तो जन सुराज पार्टी अर्श पर होगी। प्रशांत किशोर पूरे बिहार के लोगों को तर्कों सहित समझाते हैं, कई बार लोगों को डांटते भी हैं कि आप लोग जाति धर्म के नाम पर अपने बच्चो का नुकसान करते आए हैं, अब तो बच्चो के लिए सोच लीजिए, तो लोग उनके डांटने का बुरा नहीं मानते। पूरे बिहार में जन सुराज की चर्चा, लोगों में एक आशा जगी है कि शायद ये इतना पढ़ा लिखा व्यक्ति शायद बिहार की राजनीति सहित यहां का भाग्य बदल सकता है। बिहार में एक नारा लग रहा है कि बिहारियों ये आख़िरी मौका है जब बिहार में एक सकारात्मक सोच की राजनीति का उदय हो रहा है अन्यथा फिर कभी कोई बिहार में सकारात्मक सुधार की शुरुआत नहीं कर पाएगा। प्रशांत किशोर सरकार बना पाएं या नहीं परंतु इस बार चुनाव में प्रशांत किशोर को दरकिनार कर पाना किसी के बस की बात नहीं होगी। (लेखक पत्रकार हैं) ईएमएस / ०५ अक्टूबर 25