लेख
05-Oct-2025
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(शरद पूर्णिमा (6 अक्तूबर) पर विशेष) हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ पर्व मनाया जाता है और इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण स्वरूप में आसमान में चमकता है। इस वर्ष यह पावन तिथि 6 अक्तूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से आरंभ होकर 7 अक्तूबर की सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगी, इसलिए शरद पूर्णिमा 6 अक्तूबर की रात को मनाया जाएगा। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा के पूर्ण स्वरूप का उत्सव भी कहा जाता है। इस रात चंद्रमा की रोशनी इतनी तेज होती है कि धरती दूधिया उजास में नहा उठती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष रूप से औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। यह माना जाता है कि इन किरणों में स्वास्थ्य, सौंदर्य और शक्ति बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। वेदों और पुराणों में चंद्रमा को औषधियों का स्वामी माना गया है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘मैं ही सोम रूप चंद्रमा बनकर समस्त औषधियों को पुष्ट करता हूं।’ ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्षभर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। माना जाता है कि प्रत्येक कला मनुष्य के जीवन की किसी न किसी विशेषता का प्रतीक होती है। भगवान श्रीकृष्ण को इन सोलह कलाओं का पूर्ण रूप कहा गया है, इसलिए शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी रात श्रीकृष्ण ने अपनी मुरली की मधुर धुन पर ब्रज की गोपियों के साथ यमुना तट पर दिव्य महारास किया था। इसीलिए यह रात प्रेम, आनंद और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है। वृंदावन और बृज क्षेत्र में आज भी शरद पूर्णिमा को बहुत उत्साह से मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कौमुदी उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। ‘कोजागर’ का अर्थ है ‘कौन जाग रहा है?’ मान्यता है कि इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जो व्यक्ति जागकर सच्चे मन से उनकी पूजा करता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा बरसती है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय धन की देवी लक्ष्मी का प्रकट होना भी इसी पूर्णिमा की रात हुआ था। इसलिए यह पर्व धन, समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन लोग मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, साथ ही शिव-पार्वती और कार्तिकेय की आराधना का भी विधान है। इस दिन व्रत रखकर रातभर जागरण और भक्ति करने से व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि, मानसिक शांति और शुभ फल प्राप्त होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात का सबसे प्रसिद्ध और सुंदर प्रतीक है खीर की परंपरा। इस रात घरों में खीर बनाकर खुले आकाश के नीचे रखी जाती है ताकि चंद्रमा की चांदनी उसमें पड़े। मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में अमृत बरसता है और वह अमृत खीर में समा जाता है। सुबह उस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है, जो अमृत समान मानी जाती है। ज्योतिषीय दृष्टि से दूध, चावल और चीनी चंद्र ग्रह से जुड़े तत्व हैं। इसीलिए चंद्रमा की रोशनी में रखी गई खीर में उसकी शुभ ऊर्जा और औषधीय गुण समा जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस परंपरा का गहरा अर्थ है। दूध में लैक्टिक एसिड और खीर में मौजूद चावल के स्टार्च के कारण जब इसे खुली चांदनी में रखा जाता है तो उसमें ऐसे परिवर्तन होते हैं, जो इसे अधिक पौष्टिक बना देते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा की किरणों में मौजूद अल्ट्रा-वॉयलेट और इंफ्रारेड ऊर्जा दूध में मौजूद सूक्ष्म जीवों की क्रिया को सक्रिय करती है, जिससे वह पाचन में सहायक और स्वास्थ्यवर्धक बन जाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा की रात रखी खीर को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। पौराणिक कथाओं में यह भी उल्लेख मिलता है कि रावण इस रात दर्पण के माध्यम से चंद्रमा की किरणों को अपनी नाभि पर ग्रहण कर युवा शक्ति प्राप्त करता था। यह कथा प्रतीक है कि चंद्रमा की किरणें शरीर में ऊर्जा, शांति और जीवन शक्ति भरने का सामर्थ्य रखती हैं। शरद पूर्णिमा ऋतु परिवर्तन की भी प्रतीक है। यह दिन वर्षा ऋतु की समाप्ति और शीत ऋतु के आगमन की घोषणा करता है। मौसम बदलने के इस समय शरीर को नई जलवायु के अनुकूल बनाना आवश्यक होता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस समय वात, पित्त और कफ दोषों में असंतुलन की संभावना बढ़ती है। खीर का मधुर स्वाद और उसका शीतल प्रभाव इन दोषों को संतुलित करने में सहायक होता है। इसलिए यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। शरद पूर्णिमा की रात का सौंदर्य अद्भुत होता है। जब पूर्ण चंद्रमा आकाश में अपनी सोलह कलाओं के साथ दमकता है तो उसकी दूधिया रोशनी में पूरी धरती जैसे अमृत में डूब जाती है। इस दृश्य को देखकर मन में स्वतः शांति और प्रसन्नता का संचार होता है। यह रात केवल पूजा या जागरण की नहीं बल्कि आत्म-शुद्धि और ध्यान की भी होती है। यह दिव्य पर्व हमें संदेश देता है कि जैसे चंद्रमा अंधकार को मिटाकर जग को उजाला देता है, वैसे ही हमें अपने भीतर की अज्ञानता को मिटाकर ज्ञान और करुणा का प्रकाश फैलाना चाहिए। यह पर्व केवल बाहरी चंद्रमा का नहीं बल्कि हमारे भीतर के चंद्र स्वरूप (शीतलता, शांति और प्रेम) का भी उत्सव है। कुछ स्थानों पर शरद पूर्णमा को फसल कटाई के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। किसान इस दिन प्रकृति को धन्यवाद देते हैं क्योंकि शरद ऋतु के आगमन के साथ खेतों में नई ऊर्जा और फसल की खुशबू भर जाती है। इस प्रकार शरद पूर्णिमा धर्म, विज्ञान, आस्था और प्रकृति, चारों का संगम है। यह रात हमें सिखाती है कि जीवन का सच्चा आनंद केवल भौतिक संपत्ति में नहीं बल्कि मन की शांति और संतुलन में है। चंद्रमा की अमृतमयी रोशनी की तरह यदि हमारे विचार और कर्म भी निर्मल हों तो जीवन भी पूर्णिमा की तरह उज्ज्वल बन सकता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो शरद पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं बल्कि ब्रह्मांड की ऊर्जा से जुड़ने का एक माध्यम है, जब प्रकृति, मनुष्य और परमात्मा तीनों एक लय में नृत्य करते हैं और इस लय में ही जीवन का सच्चा आनंद छिपा है। (लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं) ईएमएस / 05 अक्टूबर 25