लेख
07-Oct-2025
...


शिक्षा एक बहुत बड़ी चीज है। वह जीवन में एक नई चमक ला देती है। मानव की सोई हुई शक्ति को जगाने वाली शिक्षा ही है। शिक्षण का सही लक्ष्य मानव बनाने का है। जिस शिक्षा से मानव में मानवता जागृत न हो अथवा पशुता के संस्कार समाप्त न हों, उस शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं है। वर्तमान में जो शिक्षा-पद्धति है, वह समीचीन नहीं है। आज इस बात की आवश्यकता है कि शिक्षा का, ज्ञान का स्वरूप सम्यक् हो एवं वातावरण में व्याप्त अराजकता के उन्मूलन के लिए जागरूकतापूर्वक प्रयास हो। यह कटु सत्य है कि आज की शिक्षा प्रणाली सम्यक् नहीं है। कहाँ हमारा ज्योतिर्मय अतीत एवं कहाँ अंधकारमय वर्तमान ? यदि यही स्थिति रही तो भविष्य को धूमिल और अंधकारमय ही समझना चाहिए। जब हम अपने अतीत की ओर दृष्टिपात करते हैं तो मन गर्व से अभिभूत हो उठता है। बड़ों के प्रति विनय रखो, छोटों को स्नेह दो, किसी का दिल मत दुःखाओ, झूठ मत बोलो, हिंसा से बचो, अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए किसी का शोषण मत करो, जीवन की यात्रा अनुशासनबद्ध होकर करो, प्रामाणिकता को कभी भी खण्डित मत होने दो। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव और अतिथि देवो भव के आदर्श को एक पल के लिए भी विस्मृत मत करो। कितनी उदात्त शिक्षा थी हमारे भारतवर्ष की। इस शिक्षा के आधार पर व्यक्तित्त्व का निर्माण होता था और आज ? आज की नाजुक स्थिति के सम्बन्ध में मुझे कुछ अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। आप स्वयं अच्छी तरह से महसूस करते हैं। हाथ कंगन को आरसी की जरूरत नहीं हुआ करती। जो कुछ है, सब हमारे सामने है। कुत्ते, बिल्लियों और चूहों से प्रारम्भ होने वाली शिक्षा भला किस तरह से व्यक्ति के भीतर सुसंस्कारों के बीजों का वपन कर पाएगी ? शिक्षा के क्षेत्र में व्यापारीकरण की ज्वाला फुट रही है।शिक्षा सम्यक नही होने के कारण लोग इसका फायदा उठाते है।पेपरलीक जैसी घटनाएं बन रही है।इसमें अयोग्य छात्र सरकारी नौकरियों में प्रवेश करते है।जबकि होशियार छात्र की राहे कठिन हो जाती है।शिक्षकों की व्यभिचारी प्रवृत्ति समय समय पर अखबार की सुर्खियां बटोरती है।यह समाज का काला सच कड़वे घूंट के रूप में हम सबको पीना पड़ता है।स्कूल में भारी बैग का वजन ढोने वाला विद्यार्थी की दशा पर तरस आता है।स्कूल में बिगड़ती व्यवस्था को लेकर सभी चिंतित रहते है।क्योंकि बच्चो का भविष्य का होगा? सी ए टी-कैट और डी ओ जी-डोग से आज के बालक की प्राइमरी शिक्षा प्रारम्भ होती है। कुत्ते और बिल्ली को रटने वाले बालक में कुत्ते और बिल्ली के ही तो संस्कार आएंगे। मुझे याद है जब बचपन में हमने स्कूल में प्रवेश किया, शिक्षकगण हमें ग की पहचान गणेश से करवाते थे, आज स्थिति ही बदल गई है, आज ग से गणेश की नहीं अपितु ग से बालक को गधे का बोध करवाया जाता है। पाश्चात्य शिक्षा का यह प्रभाव हुआ है कि न हम पूरे अंग्रेज बन पाये और न पूरे भारतीय ही रह पाये। हमारा चित्त बन गया यूरोपियन और देह रह गई भारतीय। शरीर भारतीय है, क्योंकि उसे हम गोरा नहीं बना पाये पर हाँ, हमारी वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, बोल-चाल सब कुछ यूरोपियन हो चुका है।स्कुलो में अंग्रेजी को अनिवार्य करके हमारी हिंदी भाषा से मुंह मोड़ने वाले क्या जताना चाहते है? कृष्ण ने यशोदा से कहा- मैया मैं नहिं माखन खायो। वात्सल्य की मूर्ति ममतामयी माँ के लिए मैया, अम्मा का सम्बोधन आज पुस्तकों में तो मिल सकता है, पर वर्तमान का भारतीय बालक मम्मी कहने में गर्व का अनुभव करता है। आज की माँ भी मम्मी सम्बोधन सुनकर खुश होती है। हम अपने नाते-रिश्तों को भी भूल गये, इससे होगी ? अधिक शोचनीय स्थिति क्या? छात्र-छात्राओं में विलक्षण क्षमताएँ विद्यमान हैं। विद्यार्थियों में जो क्षमताएँ हैं, वे प्रकट हों और उनका सही रूप से उपयोग हो। यह कटु सत्य है कि आज का छात्र बदनाम हो रहा है। वह अपनी क्षमताओं का दुरुपयोग कर रहा है। संस्कारहीनता एवं उच्छृंखलता के कारण आज परिवार, समाज और राष्ट्र का जो अंतर हृदय है, वह अत्यंत आंदोलित एवं उद्वेलित है। जब-जब हम अखबार में पढ़ते है कि छात्रों के द्वारा अमुक स्थान पर अश्लील हरकत की गई एवं उनके द्वारा यह नुकसान कर दिया गया तो हमे गहरी पीड़ा की अनुभूति होती है। उद्दण्डता, उच्छृंलखता, अनुशासनहीनता एवं तोड़-फोड़ किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। अनुशासनहीनता और सद्‌गुणों की उपेक्षा से जीवन अपवित्र होता है। विधार्थीओ से परिवार, समाज और राष्ट्र को कई अपेक्षाएँ हैं। आप मनोयोग के साथ अध्ययन कीजिए एवं अर्जित किये गये ज्ञान को जीवन के आचरण के रूप में लाइये। आचरण से ही जीवन उत्कृष्ट बनता है। आपको सदाचार का स्वागत करना है और सच्चे अर्थों में इनसान बनना है। आज जो दौर चल रहा है, वह अत्यंत भयावह है। विकृतियों की पुष्टि से जीवन-मूल्यों का तेजी से जो क्षरण हो रहा है उसकी रोकथाम के लिए हमको आगे आने की जरूरत है। हम जिस धरती पर जन्मे हैं, जहाँ पर जी रहे हैं, यह धरती महान् है। यहाँ की संस्कृति अत्यंत गरिमा से परिपूर्ण है। हमें यहाँ की गौरवगरिमा की सुरक्षा के लिए हर समय सचेष्ट रहना है। जहाँ भी पापों की ज्वालाएँ उठें, दृढ़ता के साथ हमें उनका प्रतिकार करना है। हमारे राष्ट्र को आघात पहुँचाने वाले विषपूर्ण तत्त्व जब-तब अनधिकार चेष्टाएँ करते रहते हैं, ऐसी स्थिति में हमें पूर्ण सजगता बनाए रखना है। कभी भी किसी के द्वारा हमारे राष्ट्र को, हमारी संस्कृति को यदि आघात लगता है तो यह हम सभी के लिए लज्जा एवं दुर्भाग्य का विषय होगा। उज्ज्वल भविष्य के लिए मंगल कामना करते है एवं छात्रो को आत्मीयता के नाते यह आग्रह करते है कि आप जीवन के पथ पर पूरी जागरूकता के साथ गति-प्रगति करें। शिक्षा का उद्देश्य केवल पेटपूर्ति अथवा रोजगार मात्र नहीं है। शिक्षा वही शिक्षा है जो सुधार की समग्र दिशाओं को प्रशस्त करती है। हमें वही शिक्षा आत्मसात करनी है जिसे स्व-पर हित सम्यक प्रकार से सम्पादित हो। अभिभावकों से भी मेरा सभी विशेष रूप से यह कहना है कि आपके भी कुछ विशेष दायित्व हैं। आपको अपने दायित्वों का अत्यंत निष्ठा के साथ निर्वाहन करना है। आपकी सजगता और असजगता से बालक प्रेरित और प्रभावित होता है। आप अपने जीवन को ऐसा आदर्श बनाएँ जिससे आपके बालक को घर से ही योग शिक्षा मिलने का प्रारम्भ हो। शिक्षकों का दायित्व भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। शिक्षक का पद बहुत ही गरिमामय पद है। शिक्षक, बालक को शिक्षा देते समय पूर्ण सावधानी रखें। शिक्षा के नाम पर कभी भी बालक को कुसंस्कार देने की भूल न करें। यह भूल ऐसी भूल है, जो चिरकाल तक कदम-कदम पर शूल का कार्य करके चुभन देती रहती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सभी शिक्षा के मूल उद्देश्य को भलीभाँति समझेंगे एवं सदाचार की ओर प्रवर्तन करेंगे, यदि ऐसा हो सका तो बहुत बड़ी उपलब्धि की बात होगी। (स्वतंत्र पत्रकार, साहित्यकार-स्तम्भकार) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 7 अक्टूबर/2025