(अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष लेख 11 अक्टूबर पर विशेष) बेशक प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रुप में मनाया जा रहा है मगर ऐसे आयोजन केवल मात्र औपचारिकता भर रह गए हैं। केवल मात्र एक दिन पूरे विश्व में बालिकाओं की सुरक्षा के दावे किए जातें हैं संकल्प लिए जाते हैं उसके बाद 364 दिनों तक मासूम कलियों को रौदा जाता है। समूचे विश्व में बालिका दिवस पर भाषण प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं,सैमीनार लगाए जातें हैं ,कवि सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं।मगर सुधार शून्य ही रहता है।अगर सही मायनों में बालिकाओं को सुरक्षित बनाना है तो समाज के हर वर्ग को इसमें सहयोग देना होगा तभी ऐसें आयेजन सफल हो सकते हैं अन्यथा सुधार संम्भव नही हो सकता। आज पूरे विश्व में बालिकाओं की स्थििती बहुत ही दयनीय होती जा रही है। समाज में बालिकाओं पर अत्याचार हो रहे हैं उनसे दुष्कर्म किए जा रहे हैं मासूम कलियों की हत्याएं की जा रही है। कन्या भ्रूण हत्याएं हो रही है लिंग अनुपात घटता जा रहा है। मंदिरों ,झाड़ियों में नवजात शिशु फैके जा रहे है जिनमें अधिकांश लडकियां होती है। समाज किस ओर जा रहा है वह यह क्यों नहीं सोचता कि जिसने उसे जन्म दिया वह भी एक लड़की ही थी।कन्या भू्रण हत्या के लिए समाज जिम्मेवार है।आज लड़कियां हर क्षेत्र में अपना नाम चमका रही है हर शिखर पर परचम लहरा पही है। आज धरती से लेकर आकाश तक बेटियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर समाज को बता दिया कि हम किसी से कम नहीं है। आज बेटियां एवरेस्ट पर्वत पर पहुच रहीे है ,हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही है।वंश परपरा की खातिर कोख में ही कत्ल किए जा रहे है। आज भले ही मानव 21वीं सदी में पहुच चुका है मगर उसकी सोच में कोई बदलाव नहीं आया है।इतिहास गवाह है कि देश में लड़कियों ने शिक्षा, राजनीति,से लेकर हर क्षेत्र में सफलता की इबारतें लिखी हैं।आज सरकारों द्वारा बेटी है अनमोल जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे है मगर कुछ तथाकथित दकियानूसी सोच रखने वाले लोगों के कारण ऐसे कार्यक्रमों पर बटटा लग रहा है जो लड़के की चाहत में ऐसे घिनौने कार्य कर रहे हैं ऐसे लोगों को कसाई कहना चाहिए जो जानबूझ कर ऐसे रुह कंपा देनं वाले कार्याें को बेखौफ होकर अंजाम दे रहे है।समाज को ऐसें लोगो को बहिष्कृत करना चाहिए जो लड़कियों के जन्म पर मातम मनाते हैं। समाज के लोग गैर जिमेदार होते जा रहे हैं क्योकि समाज में कोई इन घटनाओं को रोकने के लिए आगे नही आ रहा है। अगर समाज जागरुक हो जाएगा तो इस पर रोक लग सकती है।आज भारत में ऐसे मामलों में इजाफा हो रहा है। ऐसी घटनाएं सभ्य समाज का अभिशाप बनती जा रही हैं। कन्या भू्रण हत्या एक अपराध है मगर लोग निडर होकर बच्चियों को कूडेदानों व सुनसान जगहो पर फेैंक रहे है यह पतन की पराकाष्ठा है अगर समय रहते इन घिनौने कार्य पर रोक नहीं लगाई तो आने वाला कल बहुत ही विनाशकारी होगा।ऐसी वारदातो से समाज का अहित होता है। यह एक चिन्ता का विषय बनता जा रहा है समाज के बुद्विजीविओं को बालिकाओं केा बचाने ंके लिए चिंतन करना चाहिए।बेटा-बेटी के अन्तर को खत्म करना होगा। अगर हर मां-बाप यह सोच रखें की उसकी जो भी संतान होगी चाहे लड़का हो या लड़की उसका कत्ल नहीं किया जाएगा तो लिंग अनुपात में सुधार हो सकता है मगर समाज के लोगों को यह बात कौन समझायगा लोग अपनी मनमानी करते है अगर समाज के लोग सक्रिय हो जाएं जो इन लोगों पर नजर रखी जा सकती है जो लिंग जांच करवाने ंके बाद बेटियों का बेरहमी से कत्ल करवाते है समय-समय पर देश के राज्यों से ऐसे समाचार आते रहतें है ऐसे क्लिनिक चलाने वाले डाक्टरों को सजा ए मौत देनी चाहिए जो ऐसंे नीच काम करते हैं । ऐसे लोगों को जल्लाद कहना गलत नहीं होगा जो जानबूझर अजन्मी कन्ययओं मौत के घाट उतार रहे हैं ।चंद मुठठी भर लोग समाज का वातावरण खराब कर रहे है। समाज में गरीब लोग मेहनत मजदूरी करके अपनी बच्चियों का पालन-पोषण कर रहे है ऐसे घिनौने कार्यौं को सरमाएदार लोग ही अंजाम देते है। क्योकि अमीर लोगों पर कोई उगली नही उठाता।बेटियों को कोख में ही खत्म करवाने वाले राक्षसो को सूली पर टांगना चाहिए।समाज के यही तथाकथित अमीर लोग नवरात्रों में कंजको को पूजते है मगर एक दिन पूजा करे इनके पाप नही घुल सकते क्योकि इनके पापों की सजा खुदा जरुर देगा।महिलाओं को भी इस को रोकने के लिए आगे आना होगा ऐसे लोगो ंको सजा दिलवानी होगी। अगर महिलाएं इसके विरुद्ध खड़ी हो जाए तो इन पर पूर्ण रुप से रोक लग सकती है।मगर वंश पंरपरा के कारण कई महिलाएं भी दोषी है।केन्द्र सरकार को इन मामलो पर संज्ञान लेना होगा। आज की बालिका कल की स्त्री है उसके बगैर समाज की कल्पना नहीं जा सकती।समाज को जागरुक करने के लिए सरकार को संचार माघ्यमों से अभियान चलाना होगा ताकि लोगों को जागृत किया जा सके ।प्रत्येक शहर व गांवों में शिविर लगाने चाहिए। अगर यह सिलसिला ऐसे ही बदस्तूर चलता रहा तो आने वाला समय इतना भंयकर हो जाएगा कि अराजकता फैल जाएगी जब चारों तरफ बालिकाओ का चीरहरण होगा। अगर समाज का हर आदमी जागरुक हो जाएगा तभी बालिकाओं को बचाया जा सकता है और तभी ऐसे बालिका दिवस सार्थक होगें।अगर अब भी लापरवाही बरती जो एक दिन बालिकाओं का आस्तित्व मिट जाएगा फिर पछताने के सिवाए कुछ हासिल नही होगा। विश्व के देशों को इस विकराल हो रही समस्या पर लगाम लगाने के लिए सामूहिक रुप से विचार विर्मश करना होगा तभी बालिकाओं को बचाया जा सकता है।अतः समय जागने का है।आओ हम सब एकजुट होकर बालिकाओं को बचाने का संकल्प लें।बालिकाओं को बचाना हर भारतवासी का नैतिक कर्तव्य है। ईएमएस / 10 अक्टूबर 25