(11 अक्टूबर विश्व बालिका दिवस) जब तक हमारे समाज में बेटियों के प्रति ज्यादतियां होती रहेंगी, तब तक हम कितना भी समृद्ध, उदारवादी विकसित समाज होने का ढोल पीट लें हमारी वास्तविकता कुछ और ही है। 2011 की जनगणना: भारत में प्रति 1,000 पुरुषों पर 943 महिलाएँ थीं, लिंगभेद की स्थिति इसी से समझी जा सकती है। भारत में पुरुषों की साक्षरता दर 82.14% और महिलाओं की साक्षरता दर 65.46% है, जो शिक्षा में लिंग अंतर को दर्शाता है। उच्च शिक्षा में पुरुषों का अनुपात ज़्यादा है, और महिला शिक्षकों का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में कम है। पुरुष शिक्षकों और उच्च शिक्षा में कुल नामांकित छात्रों की संख्या में महिलाओं की तुलना में अधिक है। कई सामाजिक कारक, जैसे कि कम उम्र में विवाह, बाल श्रम, और आर्थिक तंगी, लड़कियों की शिक्षा में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं और उनके स्कूल छोड़ने की दर को बढ़ाती हैं। आज भी हमारे देश एवं दुनिया में बेटियों की सुरक्षा एवं उनके अधिकारों के लिहाज से स्थिति कुछ अच्छी नहीं है। भारत सहित पूरी दुनिया में लिंग भेद आज भी है, अन्यथा अमेरिका जो दुनिया को संस्कृति सिखाने का ठेकेदार बनता है, आज तक उनके देश में एक भी महिला राष्ट्रपति नहीं बन पाई। जब हम भारतीय परिपेक्ष्य में देखते हैं तो स्थिति और भी विकट है। जब हमारे देश में हाथरस, मंदसौर, कोलकाता, उन्नाव, कठुआ, बुलन्दशहर, हैदराबाद आदि से रेप की दर्दनाक खबरें आती हैं और जहां से भी छोटी - छोटी बालिकाओं पर ज्यादतियों की खबरें आती हैं, तो पूरे समाज पर प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं कि हमारे समाज में शिक्षा एवं संस्कारों मे ये कैसी गिरावट है जहां छोटी - छोटी बालिकाएं कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहीं हैं। लिंग भेद ऐसा कि अपनों के बीच भी बच्चियों को गैरों जैसा दोयम दर्जे का व्यवहार झेलना पड़ता है। जब पाकिस्तान में मलाला यूसुफज़ई ने बेटियों के शिक्षा का मुद्दा उठाया, तो कट्टरपंथी लोगों ने उन पर जानलेवा हमला किया, ऐसे-ऐसे मुद्दे जब मेन स्ट्रीम में आते हैं, तब समाज की हक़ीक़त सामने आ जाती है, दरअसल हमारे समाज में आज भी लड़कियों को लड़कों के बराबर न मानने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा है, हालांकि समाज के लिए सोचने वाले कुछ अग्रणी लोग एनजीओ के माध्यम से ही सही बालिकाओं के लिए कुछ न कुछ योगदान दे रहे हैं, परंतु ये काफ़ी नहीं है। यही कारण है कि हर साल 11 अक्टूबर को इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड यानी कि अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत यूनाइटेड नेशन ने 2012 में की थी। इस दिन को मनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य था लड़कियों के विकास के लिए अवसरों को बढ़ाना और लड़कियों की दुनियाभर में कम होती संख्या के प्रति लोगों को जागरूक करना, जिससे कि लिंग असमानता को खत्म किया जा सके। लिंग असमानता भारत सहित पूरी दुनिया की सच्चाई है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह भी है कि समाज में जागरूकता लाकर लड़कियों को वे समान अधिकार दिलाए जा सकें, जो कि लड़कों को दिए गए हैं। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को बढ़ावा देने के लिए इस दिन अलग-अलग देशों में कई तरह के आयोजन भी किए जाते हैं जिसके अंतर्गत लड़कियों की शिक्षा, पोषण, उनके कानूनी अधिकार, चिकित्सा देखभाल के प्रति उन्हें और समाजजनों को जागरूक किया जाता है। लड़कियों को सुरक्षा मुहैया कराना, उनके प्रति भेदभाव व हिंसा खत्म करना। बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाना भी इस दिन को मनाने के कारणों में शामिल है। 11 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर, 2011 को प्रस्ताव 66/170 के माध्यम से घोषित किया गया था। इसे पहली बार 11 अक्टूबर, 2012 को मनाया गया था। यह वार्षिक दिवस 1995 के बीजिंग घोषणापत्र और कार्य योजना से जुड़ा है, जिसने पहली बार दुनिया भर में बालिकाओं के विशिष्ट अधिकारों और चुनौतियों पर प्रकाश डाला था। प्लान इंटरनेशनल ने इस पहल का नेतृत्व किया, जिसमें कनाडा सरकार सहित कई देशों का मजबूत समर्थन मिला। यह कार्यक्रम बालिकाओं के सशक्तीकरण, मानवाधिकारों और उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों में उनकी भागीदारी के हित में, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, भेदभाव और हिंसा जैसी बाधाओं पर दुनिया का ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करता है। इस दिन दुनिया भर में बालिकाओं के लिए एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत भविष्य सुनिश्चित करने के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाता है। आज 11 अक्टूबर 2025 को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम है: “द गर्ल आई एम, द चेंज आई लीड: गर्ल्स ऑन द फ्रंटलाइन्स ऑफ क्राइसिस” इस थीम का मुख्य फोकस उन परिस्थितियों पर है जिनका सामना बालिकाओं को करना पड़ता है, और उनकी दृढ़ता, नेतृत्व तथा मजबूत आवाज़ों पर, जो मानवीय, सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों के खिलाफ खड़ी होती हैं। चूँकि संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और असमानताएँ बालिकाओं के खिलाफ असमान रूप से भारी पड़ती हैं, इसलिए यह विषय परिवारों, समुदायों और समाजों में परिवर्तनकारी भूमिकाएँ निभाने में उनके साहस को दर्शाता है। यह बालिकाओं को परिस्थितियों के शिकार के रूप में नहीं, बल्कि परिवर्तन के वाहक के रूप में पहचानने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। लड़कियों के अनुभवों और नेतृत्व पर प्रकाश डालते हुए, यह थीम शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और सशक्तिकरण में निवेश का आह्वान करती है ताकि वे सक्रिय रूप से एक बेहतर और अधिक समावेशी दुनिया का निर्माण कर सकें। यह नारा दुनिया को याद दिलाता है कि हर बालिका में क्षमताएँ भरपूर होती हैं और यह समाज का दायित्व है कि वह उनमें से प्रत्येक को संकट की स्थिति में अग्रणी भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करेंl (लेखक पत्रकार हैं ) ईएमएस / 10 अक्टूबर 25