नई दिल्ली (ईएमएस)। पुरातत्वविदों ने लगभग 4000 साल पुराना कारवांसराय खोजा है, जो लंबी दूरी तय करने वाले व्यापारियों के ठहरने और अपने जानवरों के साथ रुकने की सभी सुविधाओं से सुसज्जित था। इसे आधुनिक समय के “हाईवे होटल” के समान कहा जा सकता है। यह कारवांसराय गुजरात के कच्छ जिले में स्थित हड़प्पाकालीन स्थल कोटड़ा भाडली में पुरातत्वविदों को मिला है। इस खोज में पुणे के डेकन कॉलेज पोस्ट-ग्रेजुएट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, सिम्बायोसिस स्कूल फॉर लिबरल आर्ट्स और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की संयुक्त टीम ने हिस्सा लिया। खुदाई में केंद्रीय इमारत, कई कमरे, बुर्जों से घिरी दीवारें और बड़े खुले आंगन मिले हैं, जिनमें ऊंट, बैल और अन्य बोझ ढोने वाले जानवरों को रखा जाता था। इसके अलावा खाद्य अवशेष, मिट्टी के बर्तन और दूर-दराज़ से आए आयातित सामान भी प्राप्त हुए। ये सभी संकेत देते हैं कि यह स्थल व्यापारिक यात्रा का प्रमुख पड़ाव था। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, यह अब तक का सबसे प्राचीन कारवांसराय माना जा रहा है और यह 2300 से 1900 ईसा पूर्व, यानी सिंधु घाटी सभ्यता के उत्कर्ष काल का है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में संगठित व्यापारिक ढांचे की शुरुआत बहुत पहले हो गई थी। मुख्य शोधकर्ता प्रबोध शिर्वलकर ने बताया कि कोटड़ा भाडली की खुदाई 2010 से 2013 के बीच गुजरात राज्य पुरातत्व विभाग के सहयोग से हुई थी। हाल ही में आधुनिक तकनीकों जैसे ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार, सैटेलाइट सर्वे, मैग्नेटिक एनालिसिस और लिपिड टेस्टिंग के माध्यम से साइट की पुनः जांच की गई। इससे स्पष्ट हुआ कि यह केवल एक बस्ती नहीं, बल्कि एक किलेबंद ग्रामीण ठहराव केंद्र था, यानी हड़प्पा युग का व्यवस्थित व्यापारिक “हाईवे होटल”। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह खोज सिंधु घाटी के व्यापार नेटवर्क का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जो अब तक रहस्य बना हुआ था। यह दर्शाता है कि हड़प्पावासी केवल शहरों और बंदरगाहों तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि उनके पास एक मजबूत लॉजिस्टिक सिस्टम था, जिसमें व्यापारी अपने जानवरों के साथ रुकते, भोजन करते और फिर अगले गंतव्य की ओर निकलते थे। इतिहासकारों के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता का व्यापार मेसोपोटामिया और भारत के अन्य हिस्सों तक फैला था, लेकिन यह व्यापार कैसे संचालित होता था, यह लंबे समय तक रहस्य बना हुआ था। अब यह अध्ययन साबित करता है कि हड़प्पावासी किलेबंद स्टॉपओवर बनाते थे, जो व्यापार मार्गों पर स्थित थे और धोलावीरा, लोथल, शिकरपुर जैसे प्रमुख हड़प्पा शहरों को जोड़ते थे। शिर्वलकर का कहना है कि यह स्थल छोटा, रणनीतिक रूप से सुरक्षित और गैर-शहरी था, जिसका उद्देश्य स्थायी निवास नहीं बल्कि अल्पकालिक ठहराव था। किलेबंदी, पशु बाड़े, खुले स्थान, खाद्य अपशिष्ट और विदेशी वस्तुएं इस कारवांसराय की विशेषताएं हैं। सुदामा/ईएमएस 26 अक्टूबर 2025