शिकायत, एफआईआर और फैसला आने में लगे 22 साल - कलेक्टर गाइडलाइन के खिलाफ किया था नीलाम - पीड़ित किसान और प्रशासन को हुआ था लाखो का नुकसान भोपाल(ईएमएस)। राजधानी में साल 2001 से 2003 के बीच बैंक में बंधक रखी गई किसानों की जमीन को कलेक्टर गाइडलाइन के खिलाफ नीलाम करने के तीन आरोपियों को कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने पर दोषी करार देते हुए 3-3 साल की सजा से दण्डित किये जाने का फैसला सुनाया है। तत्कालीन समय में आरोपी हरिहर प्रसाद मिश्रा, विनोद कुमार देवल, अशोक मुखरैया और एपीएस कुशवाहा भूमि विकास बैंक भोपाल के अधिकारी थे। अब भूमि विकास बैंक को जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के नाम से जाना जाता है। मामले की शिकायत लोकायुक्त में की गई थी। जॉच में सामने आया की आरोपियों ने 2 लाख 01 हजार रुपए कीमत की बंधक रखी गई कृषि भूमि को अन्य व्यक्ति को नीलामी के जरिए 46 हजार रुपए में बिक्री कर दी थी। इससे किसान को 1 लाख 55 हजार रुपए और सरकार को 1 लाख 55 हजार रुपए के स्टाम ड्यूटी का नुकसान हुआ था। यह फैसला विशेष न्यायाधीश मनोज कुमार सिंह की कोर्ट ने सुनाया है। मामले में विशेष लोक अभियोजक हेमलता कुशवाह ने पैरवी की। - यह था मामला जानकारी के अनुसार घटना 15 नवंबर 2001 से 11 दिसंबर 2003 के बीच की है। लोकायुक्त में मामले की शिकायत करते हुए बताया गया था की भोपाल की किसान हरबो बाई की 3.66 एकड़ जमीन बैंक के पास 1986 में रखी थी। इसके ऐवज में उन्होंने कुआं निर्माण और पंप खरीदने के लिए 18 हजार 500 रुपए का लोन लिया था। लोन का भुगतान समय पर नहीं होने के कारण आरोपियों ने नीलामी प्रक्रिया के तहत उमा चतुर्वेदी के पक्ष में जमीन दे दी थी। इसके लिए कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से जमीन की कीमत 2 लाख 01 हजार रुपए होती थी। लेकिन, आरोपियों ने इसका पालन नहीं करते हुए 46 हजार रुपए में कृषि भूमि बेच दी थी। - शिकायत, एफआईआर और फैसला आने में लगे 22 साल भूमि विकास बैंक से जुड़े चारों आरोपियो की हेराफेरी की शिकायत लोकायुक्त के पास 11 दिसंबर 2003 को पहुंची थी। शिकायतकर्ता ने बताया था, कि भूमि विकास बैंक से जुड़े चारों आरोपी ने 15 नवंबर 2001 से नीलामी प्रक्रिया के खिलाफ जाकर किसानों की बंधक जमीनों का विक्रय कर रहे हैं। आवेदन के आधार पर लोकायुक्त ने जांच शुरू की थी। जांच के बाद चारों आरोपियों के खिलाफ 8 अगस्त 2007 को मामला दर्ज किया गया था। लोकायुक्त ने 8 साल बाद 23 नवंबर 2015 को आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था। चालान पेश करने के बाद नौ साल तक चली लंबी सुनवाई के बाद आखिरकार कोर्ट ने आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा से दण्डित किया है। जुनेद / 27 अक्टूबर