भविष्यर के एक ऐसे भारत की कल्पना करें जहां मालढुलाई ट्रकों के बजाय नावों से हो, लॉजिस्टिक्स गलियारे राजमार्गों की जगह नदियों के किनारे बने हों और व्यापार बढ़ने के बाद भी कार्बन उत्स र्जन कम हो। ऐसा भविष्य कोरी कल्पना नहीं है बल्कि हमारी पहुंच के दायरे में है। देश को विकसित भारत और सही मायने में आत्मनिर्भर बनने के लिए अंतर्देशीय जल परिवहन (आईडब्यूयटी) को टिकाऊ लॉजिस्टिक्स क्रांति की रीढ़ बनना होगा। भारत 4,000 वर्षों से नदियों के माध्याम से व्यापार करता आ रहा है। नदियों ने लोथल को रोम से, बंगाल को बर्मा से और असम को शेष दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ा है। हालांकि समय के साथ सड़कों और रेलवे ने अपनी रफ्तार और स्टील की चमक से नदियों को पीछे धकेल दिया। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के चलते आर्थिक दबाव के इस दौर में हालात बदल रहे हैं। ऐसा नदियों के प्रति प्रेम की वजह से नहीं, बल्कि जरूरत के कारण हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतर्देशीय जलमार्ग पर अभूतपूर्व नीतिगत ध्या न दिया जा रहा है। राष्ट्री य जलमार्गों पर 2013-14 में कार्गो की आवाजाही 18.1 मिलियन मेट्रिक टन थी जो 2024-25 में बढ़कर 145.84 मिलियन मेट्रिक टन हो गई है। जलमार्गों से माल-ढुलाई का खर्च भी कम आता है। जलमार्ग से माल-ढुलाई का खर्च 1.20 रुपये प्रति टन-किलोमीटर है जबकि रेल से 1.40 रुपये और सड़क से 2.28 रुपये प्रति टन-किलोमीटर का खर्च आता है। जलमार्ग किफायती और ईंधन-कुशल होते हैं। जलमार्ग से परिवहन पर प्रति टन-किलोमीटर केवल 0.0048 लीटर ईंधन की खपत होती है जबकि सड़क से 0.0313 लीटर और रेल मार्ग से 0.0089 लीटर खर्च होता है। यह किसी भी सप्लाई चेन मैनेजमेंट के लिए आंखें खोलने वाली बात है। सबसे महत्वेपूर्ण यह है कि नदी परिवहन से प्रति टन-किलोमीटर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन सड़क परिवहन की तुलना में महज 20 प्रतिशत होता है। गंगा या ब्रह्मपुत्र में चलने वाला हर जहाज न केवल सामान ढो रहे हैं, बल्कि भारत के कार्बन उत्सरर्जन को कम करने की सजगता को भी स्पिष्ट, रूप से परिलक्षित कर रहा है। भारत सरकार ने 2016 में राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर जलमार्ग विकास परियोजना को मंजूरी दी थी, जिससे गंगा-भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली में कार्गो की आवाजाही बढ़ रही है। वाराणसी और साहिबगंज जैसे मल्टीमोडल लॉजिस्टिक्स हब राष्ट्री य राजमार्ग लॉजिस्टिक्स प्रबंधन लिमिटेड (एनएचएलएमएल) के साथ साझेदारी में विकसित किए जा रहे हैं तथा इंडियन पोर्ट रेल एंड रोपवे कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईपीआरसीएल) और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) के जरिये रेल लिंक बनाए जा रहे हैं ताकि नदी, रेल और सड़क को सुगमता से जोड़ा जा सके। राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र नदी) पर जोगीघोपा आईडब्यूफ टी टर्मिनल को मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्क (एमएमएलपी) से जोड़ा जा रहा है, जो भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग के जरिये कोलकाता और हल्दिया बंदरगाह को जोड़ता है। अंतर्देशीय जल परिवहन की क्षमता अब साफ़ दिखने लगी है। असम में नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (एनआरएल) की विस्तारर परियोजना का हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया था। रिफाइनरी के लिए ओवर डाइमेंशनल कार्गो (ओडीसी) और ओवर वेट कार्गो (ओडब्यूरप सी) जैसे भारी उपकरण आईडब्यू् एआई की देखरेख में भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग और ब्रह्मपुत्र नदी के जरिये ट्रांसपोर्ट किए गए थे। इसमें 24 कंसाइनमेंट शामिल थे जो एनआरएल जेट्टी तक आसानी से और सुरक्षित रूप से पहुंचाए गए। इससे भीड़भाड़ वाले राजमार्गों और बड़े कार्गो के लिए सड़क परिवहन की मुश्किलों से भी बचा गया। इस ऑपरेशन से पता चला कि नदी लॉजिस्टिक्स न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि यह भारत के सबसे मुश्किल औद्योगिक शिपमेंट को संभालने में भी पूरी तरह से सक्षम है। सही मायने में यह लागत-प्रभावी, सुरक्षा और सतत परिवहन का बेजोड़ मेल है। उद्योग के लिए यह अतीत की यादों में खोने या राष्ट्री य गर्व की ही बात नहीं है बल्कि यह मार्जिन और मार्केट के बारे में है। जलमार्ग से सामान भेजना सस्ता, ज्यािदा स्व्च्छऔ और तेज होता जा रहा है क्योंकि मल्टीमोडल हब ऑनलाइन आ रहे हैं। आज की दुनिया में वैश्विक निवेशक सप्लाई चेन को केवल दक्षता के लिहाज से ही नहीं बल्कि उनके पर्यावरणीय प्रभाव को भी देखते हैं, ऐसे में नदी परिवहन को अपनाना रणनीतिक रूप से फायदेमंद है। कार्बन उत्स र्जन घटाने पर भी जोर है, जिससे अंतर्देशीय जलमार्ग आधुनिक लॉजिस्टिक्स के लिए बेहतर और ज्यापदा टिकाऊ विकल्प बन गए हैं। जलमार्गों के जरिये माल भेजने से कम लागत, बेहतर पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस (ईएसजी) क्रेडेंशियल्स का दोहरा फायदा मिलता है। सामाजिक लाभ असली है। कम ट्रक मतलब कम दुर्घटनाएं, सड़कों के रखरखाव पर कम दबाव, स्वीच्छ हवा और मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था। नदी किनारे रहने वाले कई समुदाय जो कभी फेरी ट्रांसपोर्ट या छोटे पैमाने के व्यापार पर निर्भर थे, वे अब लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, हैंडलिंग, वेयरहाउसिंग और अंतर्देशीय पोत्त्न सेवाओं में नया रोजगार पा सकते हैं। यह व्यािपार और रोजगार को बढ़ाने का एक सुदृढ़ साधन है। ऐसा नहीं है कि इसमें कोई चुनौती नहीं है। मौसम का असर नेविगेशन पर पड़ता है। कुछ हिस्सों में लगातार ड्रेजिंग की दरकार होती है। मालवाहन बेड़े भी सीमित हैं। राज्यों, बंदरगाहों और मंत्रालयों के बीच संस्थाकगत समन्यैवय भी बड़ी चुनौती है। लेकिन सरकार एंड-टू-एंड ड्रेजिंग, मल्टी-मोडल हब का विस्तार, अंतर्देशीय पोत कानून जैसी नीतियों को लागू करके इन चुनौतियों से निपट रही है। इसके साथ ही सरकार राष्ट्री य जलमार्ग पर निजी जेट्टी बनाकार और ‘हरित नौका’ के तहत पर्यावरण मानदंडों का पालन करके इस क्षेत्र को स्वच्छ और हरित तरीकों की ओर ले जा रही है। कार-डी (कार्गो डेटा पोर्टल), जलयान और नाविक, जल-समृद्धि, पानी और नौदर्शिका (नेशनल रिवर ट्रैफिक और नेविगेशन सिस्टम) पोर्टल जैसे डिजिटल टूल परिवहन को आसान बनाते हैं और रुकावटों को कम करते हैं। पूरी दुनिया में नदी परिवहन का विस्तावर हो रहा है। डेन्यूब और राइन नदियां यूरोप का माल ढोती हैं। भारत मालवहन योग्यि नदियों के समृद्ध नेटवर्क के साथ मजबूत स्थिति में है। भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्यक रखा है, ऐसे में जलमार्ग उसके लिए विकल्पव नहीं बल्कि अनिवार्यता है। जल परिवहन दक्षता, अर्थव्यणवस्थाो और पारिस्थितिकी सभी के लिहाज से उयुक्तृ है। मुंबई में चल रहे इंडिया मैरीटाइम वीक 2025 में वैश्विक और स्था नीय नीति निर्माता, लॉजिस्टिक्स की दिग्ग्ज कंपनियों से लेकर नए लोगों तक, सरकारें, निवेशक, मैरीटाइम विशेष, पर्यावरणविद और उत्साही लोग इस दिशा में अगला कदम उठाने के लिए अपने विचार प्रस्तुनत करेंगे। यह आयोजन कार्गो-केंद्रित नदी परिवहन के भविष्य की झलक दिखाएगा कि कैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र और दूसरे जलमार्ग हरे-भरे और ज्या दा कुशल भारत की रीढ़ बन सकते हैं। नदियों ने हमारी सभ्यता बनाई है। अपनी समृद्ध विरासत को अपनाकर और दुनिया की श्रेष्ठष कार्यप्रणाली के साथ भारत एक नए और आधुनिक अंतर्देशीय जल परिवहन प्रणाली के जरिये टिकाऊ अर्थव्य्वस्थाश बनाने के लिए तैयार है। नदी की धारा आखिरकार हमारे पक्ष में बह रही है, जो हरित लॉजिस्टिक्स के भविष्य को ताकत दे रही है। (लेखक पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय में सचिव हैं) ईएमएस / 03 नवम्बर 25