लेख
03-Nov-2025
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बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद महिला मतदाताओं के खाते में पैसा ट्रांसफर करने की शिकायत चुनाव आयोग में होने से हड़कंप मच गया है। पहली बार चुनाव के दौरान मतदाताओं के खाते में सीधा भुगतान किया जा रहा है। इसके प्रमाण मौजूद हैं, जिसके कारण इस आरोप को झुठलाना सत्तापक्ष के लिए आसान नहीं होगा। चुनाव आयोग के लिए भी इसे नजरअंदाज करना मुश्किल होगा। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच, में यह एक बड़ा राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हो गया है। देश के इतिहास में ऐसा मामला पहली बार सामने आया है। चुनाव की अधिसूचना जारी होने और आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद मतदाताओं के बैंक खातों में सरकारी योजना का पैसा ट्रांसफर किया जा रहा है। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ चुनाव आदर्श आचार संहिता का सबसे बड़ा अपराध बताया है। चुनाव आयोग से तुरंत हस्तक्षेप करने और चुनाव प्रक्रिया को रोकने की मांग विपक्ष ने की है। यह मामला मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना से जुड़ा है। इस योजना में महिलाओं को 10,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है। चुनाव अधिसूचना जारी होने के कुछ दिनों पहले ही सरकार ने यह योजना घोषित की थी। योजना लागू होती, उसके पहले ही आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी थी। विपक्ष का आरोप है, कि 17, 24 और 31 अक्टूबर को लाखों महिलाओं के खातों में करोड़ों रुपए की यह राशि सरकारी खजाने से भेजी गई है। आचार संहिता 6 अक्टूबर से बिहार में लागू हो चुकी थी। विपक्ष के सांसद ने आरोप लगाया है, कि मतदाताओं को अगला पैसा ट्रांसफर 7 नवंबर को बिहार सरकार ने प्रस्तावित किया है। 6 नवंबर को बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका होगा और दूसरे चरण के मतदान की तैयारी चल रही होगी। 11 नवंबर को दूसरे चरण का मतदान है। राजद सांसद मनोज झा ने इस मामले पर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखते हुए कहा, यह आदर्श आचार संहिता का स्पष्ट और जानबूझकर किया गया उल्लंघन है। उन्होंने कहा, सत्तापक्ष द्वारा मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास है। इससे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं है। चुनाव आयोग के नियमों और आदर्श आचार संहिता का उल्लघन है। मनोज झा ने आयोग से तत्काल जांच कर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। बिहार सरकार द्वारा अभी 1 करोड़, 51 लाख महिलाओं के खातों में सैकड़ो करोड रुपए की राशि ट्रांसफर की जा चुकी है। राज्य सरकार का दावा है, भुगतान उन लाभार्थियों को किया गया है, जिनके आवेदन 6 सितंबर से पहले प्राप्त हुए थे। विपक्ष का कहना है, सरकार की यह सफाई चुनावी नैतिकता और आदर्श आचार संहिता के विपरीत है। राशि ट्रांसफर करने की कार्रवाई चुनाव अधिसूचना के बाद हुई है, जिसे किया ही नहीं जा सकता था। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार शिकायत की जांच के लिए प्रारंभिक रिपोर्ट बिहार सरकार से मांगी गई है। आयोग की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। राजनीतिक एवं विधि विश्लेषकों का कहना है, आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद महिलाओं के खाते में जो राशि ट्रांसफर की गई है वह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे गंभीर चुनावी उल्लंघन है। पूर्व में इंदिरा गांधी का चुनाव सरकारी संसाधनों के सीमित उपयोग के आरोप में रद्द किया गया था। चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने पर शिवसेना के बाल ठाकरे को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। जिसकी पुष्टि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी की थी। वर्तमान मामले को देखते हुए कहा जा रहा, कि वह मामला ऊंट के मुंह में जीरे के समान था। यह मामला कई गुना बड़ा और बहुत गंभीर है। यहां पर चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्यक्ष रूप से वित्तीय लाभ देकर मतदाताओं के वोट लेने का प्रयास है। आचार संहिता लागू होने के बाद सरकारी धन के वितरण पर चुनाव आयोग द्वारा पूर्व में भी कई बार रोक लगाई गई है। ऐसी स्थिति में चुनाव की निष्पक्षता कैसे बनी रह सकती है। सबकी निगाहें चुनाव आयोग पर टिकी हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता के स्पष्ट उल्लंघन के बाद भी जिस तरह से चुप्पी साधकर बैठा है। उसको देखते हुए ऐसा लगता है, कोई कार्रवाई होना संभव नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली सभी को संदेह में डाल रही है। न्यायालय से भी राजनीतिक दलों तथा विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को कोई सहायता नहीं मिल रही है। बिहार की एसआईआर मामले में सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से तारीख पर तारीख मिल रही हैं, इसी बीच बिहार के चुनाव भी संपन्न हो रहे हैं। मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर प्रमाणित आरोप विपक्ष द्वारा लगाए गए। चुनाव आयोग ने किसी भी आरोप की जांच नहीं कराई। कर्नाटक में अवैध रूप से मतदाताओं के नाम काटने की जांच एसआईटी द्वारा की जा रही है। केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा एसआईटी को जानकारी नहीं दी जा रही है। ऐसी स्थिति में केंद्रीय चुनाव आयोग कुछ करेगा, इसको लेकर लोंगो को विश्वास नहीं रहा। विपक्षी राजनीतिक दलों और आम जनता के बीच में यह धारणा बनने लगी है। केंद्रीय चुनाव आयोग सरकार के निर्देश पर काम कर रहा है। न्यायपालिका भी सरकार के दबाव में है। ऐसी स्थिति में राजनीतिक दल एवं सामाजिक संगठन जनता के बीच जाकर लड़ाई लड़ने की बात करने लगे हैं। महाराष्ट्र में सभी विपक्षी दलों ने हाईकोर्ट की रोक के बाद भी भारी प्रदर्शन किया। उसमें कहा गया, उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। वह जनता की न्यायालय में अपना पक्ष रखेगे। इसके पहले राहुल गांधी भी बिहार में यात्रा निकालकर वोट चोरी के आरोप में जन जागरण का काम कर चुके हैं। जिस तरह से आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद नगद राशि महिलाओं के खाते में ट्रांसफर की जा रही है, मतदाताओं को प्रलोभन देकर उनके वोट पाने का स्पष्ट प्रयास है। पहले के सैकड़ों उदाहरण हैं, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता का उल्ल्घन होने पर कार्रवाई की गई। इस चुनाव आयोग के कार्यकाल में, सत्तापक्ष की अनिमियता को जिस तरह से नजर अंदाज करता है, उसके बाद यह कहा जा सकता है, कि चुनाव तय समय पर ही होंगे। सत्तापक्ष पर किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं होगी। चुनाव आयोग नोटिस जारी कर जवाब मांग लेगा। जैसे पहले कार्यवाही नहीं हुई, भविष्य में कोई कार्रवाई होना संभव भी नहीं है। ऐसा लोग कहने लगे हैं। जिस तरह से चुनाव आयोग और चुनाव के ऊपर अविश्वास बढ़ रहा है, यह भारतीय संविधान, लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव की निष्पक्षता के लिए एक बड़ी चुनौती है। चुनाव आयोग और न्यायपालिका का इस ओर ध्यान देना जरूरी हो गया है। ईएमएस / 03 नवम्बर 25